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मनीष सिसोदिया को 17 महीनों बाद मिली जमानत

९ अगस्त २०२४

दिल्ली के पूर्व उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को सुप्रीम कोर्ट ने कथित आबकारी घोटाला मामले में जमानत दे दी है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सुनवाई में देर ना हो यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आजादी का ही एक पहलू है.

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जून, 2022 में एक प्रेस वार्ता करते हुए मनीष सिसोदिया
मनीष सिसोदिया 17 महीनों से जेल में हैंतस्वीर: Qamar Sibtain/IANS

सिसोदिया को जमानत दो लाख के बॉन्ड पर दी गई. न्यायमूर्ति बीआर गवई और केवी विश्वनाथन की पीठ ने जमानत देते हुए कहा कि सुनवाई में हुई देरी की वजह से सिसोदिया के अधिकार का उल्लंघन हुआ है और शीघ्र सुनवाई का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत स्वतंत्रता का एक पहलू है.

पीठ ने कहा कि इस मामले में ट्रायल समय से पूरा हो जाएगा इसकी कोई संभावना नहीं है. पीठ ने यह भी कहा उच्च अदालतें और ट्रायल अदालतें अक्सर जमानत ठुकरा कर "सुरक्षित रहना चाह रही हैं" लेकिन अब समय आ गया है कि अदालतें इस बात को समझें कि "जेल नहीं बल्कि जमानत" ही नियम है.

क्या है यह मामला

सिसोदिया को सीबीआई ने रविवार 26 फरवरी की शाम आठ घंटे की पूछताछ के बाद हिरासत में ले लिया था. जिस आबकारी नीति की जांच के तहत सीबीआई ने यह कार्रवाई की है उसे बतौर आबकारी मंत्री सिसोदिया के ही नेतृत्व में नवंबर 2021 में लाया गया था.

लेकिन एक साल के अंदर अगस्त 2022 में नीति को रद्द भी कर दिया गया. इन नौ महीनों में इस नीति के कार्यान्वयन में एक बड़े घोटाले का आरोप लगाया गया. नई नीति के तहत आम आदमी पार्टी की सरकार ने राज्य को दिल्ली में शराब की बिक्री के व्यापार से पूरी तरह बाहर निकालने की योजना बनाई थी.

इसके उद्देश्यों में सरकार के लिए राजस्व बढ़ाना, शराब की काला बाजारी खत्म करना, बेचने के लाइसेंस लेने वालों के लिए नियमों को लचीला बनाना और उपभोक्ताओं के लिए शराब खरीदने को एक बढ़िया अनुभव बनाना था.

नई नीति के तहत शराब की दुकानें सुबह तीन बजे तक खुली रखने और शराब की होम डिलीवरी करवाने जैसे नए कदमों का भी प्रस्ताव था. शराब विक्रेताओं को उपभोक्ताओं के लिए शराब के दामों में छूट देने की इजाजत भी दी गई थी.

कुछ महीनों तक विक्रेताओं ने भारी छूट दी भी जिससे दुकानों के बाहर लंबी कतारें लग गईं. एक रिपोर्ट के मुताबिक नई नीति को लागू किए जाने के बाद दिल्ली सरकार के राजस्व में 27 प्रतिशत बढ़ोतरी भी हुई. सरकार ने करीब 8,900 करोड़ रुपए कमाए.

इस मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) अलग से जांच कर रहा है. मार्च, 2024 में ईडी ने इस मामले में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को भी गिरफ्तार कर लिया था. जून में ईडी की हिरासत में से सीबीआई ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया. इससे पहले आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह को भी गिरफ्तार किया जा चुका है. सिंह पहले से जमानत पर बाहर हैं.

क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने

सिसोदिया को जमानत देते हुए अदालत ने कहा, "ट्रायल तेजी से हो यह एक रक्षणीय अधिकार है. हाल ही में जावेद गुलाम नबी शेख मामले में हमने इस संबंध में कहा था कि जब अदालत, सरकार या एजेंसी तेज ट्रायल के अधिकार की रक्षा नहीं कर सकती है तो यह कह कर जमानत का विरोध नहीं किया जा सकता है कि अपराध गंभीर है. अपराध कैसा भी हो, अनुच्छेद 21 सब पर लागू होता है."

मार्च, 2024 में दिल्ली सरकार के अधिकारियों के साथ मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उपराज्यपाल वीके सक्सेना
इस मामले में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में दिल्ली की चुनी हुई सरकार और उपराज्यपाल वीके सक्सेना के बीच में ठनी हुई हैतस्वीर: Raj K Raj/Hindustan Times/Sipa USA/picture alliance

पीठ ने यह भी कहा कि सिसोदिया की समाज में "गहरी जड़ें" हैं और वो कहीं भाग नहीं सकते हैं. पीठ ने आगे कहा कि जहां तक सबूतों के साथ छेड़छाड़ का सवाल है, यह मामला मोटे तौर पर डॉक्यूमेंटेशन पर निर्भर है और सारे कागजात जब्त किए जा चुके हैं और उनसे छेड़छाड़ की कोई संभावना ही नहीं है.

सिसोदिया लंबे समय से जमानत की लड़ाई लड़ रहे हैं लेकिन इससे पहले बार-बार उनकी अपीलें ठुकरा दी गई थीं. खुद सुप्रीम कोर्ट ने 2023 में उनकी अपील ठुकराते हुए यह कहा था कि अगर सुनवाई बहुत धीरे चलती है तो वो दोबारा जमानत के लिए याचिका डाल सकते हैं.

इसी उम्मीद में सिसोदिया ने जून, 2024 में दोबारा याचिका दायर की, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने फिर से जमानत देने से इनकार कर दिया, क्योंकि ईडी ने अदालत में कहा था कि वो तीन जुलाई तक चार्जशीट दायर कर देगी. चार्जशीट दायर होने के बाद सिसोदिया ने तीसरी बार जमानत याचिका दायर की और अब जाकर अदालत ने उन्हें जमानत दी.

ईडी का यह भी कहना था कि सुनवाई में देर इसलिए हो रही है क्योंकि सिसोदिया ने कई तरह के कागजात मांगते हुए ट्रायल अदालत में कई अर्जियां डाली हुई हैं. सुप्रीम कोर्ट ने इस दलील को ठुकराते हुए कहा कि ट्रायल अदालत ने इनमें से किसी भी अर्जी को हल्का (फ्रीवोलस) नहीं बताया है.