1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
समाजभारत

महिला मतदाताओं पर बड़ा खर्च कर रहे हैं राजनीतिक दल

विवेक कुमार
१४ नवम्बर २०२४

भारत में राजनीतिक दल चुनाव जीतने के लिए महिला मतदाताओं को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं. इसके लिए नकद मदद के कदम भी उठाए जा रहे हैं. क्या इसका कोई लाभ होता है?

https://p.dw.com/p/4mxZ2
मई 2024 में कर्नाटक में मतदान करतीं महिलाएं
तस्वीर: MANJUNATH KIRAN/AFP

झारखंड विधानसभा चुनावों से कुछ ही हफ्ते पहले अक्टूबर में झारखंड सरकार ने लगभग 50 लाख महिलाओं को मिलने वाले मासिक भत्ते को 1,000 रुपये से बढ़ाकर 2,500 रुपये कर दिया. यह तब हुआ जब भारतीय जनता पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में महिलाओं को 2,100 रुपये प्रति माह देने का वादा किया था.

विश्लेषक कहते हैं कि भारत में राजनीतिक पार्टियां चुनाव के समय महिला मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए नकद लाभ देने की रणनीति अपना रही हैं. इसका उद्देश्य महंगाई और बेरोजगारी की चिंता को कम करना है.

पिछले दशक में भारत में महिलाओं के वोट डालने का प्रतिशत बढ़ा है. इससे अब पुरुषों की तुलना में महिलाओं का संख्या बल बढ़ रहा है. इस वजह से, राजनीतिक पार्टियों में महिलाओं को अपनी ओर खींचने की होड़ मची हुई है. खासकर अक्टूबर में महंगाई 14 महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई और बेरोजगारी दर भी 8.9 फीसदी पर है.

एक्सिस बैंक के आर्थिक शोध विभाग की एक रिपोर्ट कहती है कि ज्यादातर राजनीतिक दल महिला मतदाताओं को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं और उन्हें नकद लाभ देना इसी कोशिश का एक हिस्सा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पार्टी बीजेपी और विपक्षी दलों द्वारा चलाई जा रही कई क्षेत्रीय सरकारें भारत की करीब 67 करोड़ महिलाओं में से करीब पांचवें हिस्से को लुभाने के लिए ऐसी योजनाएं पेश कर रही हैं.

एक्सिस बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री नीलकंठ मिश्रा ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया, "यह सरकारी खजाने पर बड़ा बोझ है. फंडिंग कहां से आ रही है? कुछ हिस्सा बढ़ते घाटे से आ रहा है."

महिलाओं को लाभ देने के लिए योजनाएं पेश कर रहे लगभग सभी राज्यों का बजट घाटा पांच साल पहले की तुलना में बढ़ा है, और कई राज्यों ने इन योजनाओं को लागू करने के लिए अपने पूंजीगत खर्च में कटौती की है.

महिलाओं पर बड़ा खर्च

एक्सिस का अनुमान है कि भारत के 36 में से एक-तिहाई राज्य या संघीय क्षेत्र महिलाओं के लिए इस तरह की लाभ योजनाओं पर हर साल करीब 2 लाख करोड़ रुपये खर्च कर रहे हैं, जो कि भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 0.6 फीसदी है.

पिछले एक साल में कई ऐसी घोषणाएं राष्ट्रीय या स्थानीय चुनावों के समय की गई हैं. झारखंड में हुए एलान इसी का एक उदाहरण हैं. भारत की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस, जो झारखंड में सत्ताधारी गठबंधन का हिस्सा है, कहती है कि चुनाव के समय राजनीतिक पार्टियां अक्सर वादे कर लाभ उठाती हैं, भले ही वे उन्हें पूरा न करें.

कांग्रेस के प्रवक्ता उदित राज ने कहा, "महिलाओं या आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के लोगों को राजनीतिक पार्टियों द्वारा एक आसान लक्ष्य माना जाता है."
अगले हफ्ते पश्चिमी भारत के सबसे अमीर राज्य महाराष्ट्र में चुनाव होने हैं. सत्ताधारी बीजेपी गठबंधन ने अगस्त से निम्न-आय वर्ग की महिलाओं को 1,500 रुपये देने शुरू किए थे, लेकिन विपक्ष ने इस राशि को दोगुना करने का वादा किया है.

बीजेपी प्रवक्ता शाजिया इल्मी ने कहा कि मोदी के नेतृत्व में उनकी पार्टी महिलाओं के कल्याण पर ध्यान दे रही है, जिसमें रियायती रसोई गैस और महिलाओं के लिए शौचालय बनाना शामिल है.

उन्होंने कहा, "विपक्ष द्वारा लाभ की घोषणा करना बीजेपी द्वारा महिलाओं के लिए किए गए कामों की नकल करने की कोशिश है."

आर्थिक मदद का असर

ब्रोकर कंपनी एलारा सिक्योरिटीज ने चेतावनी दी है कि राज्यों में होने वाली वित्तीय ढील अंततः राष्ट्रीय बजट पर असर डाल सकती है. हालांकि, महिला वर्ग में अधिक नकद राशि पहुंचने से पारंपरिक पुरुष-प्रधान समाज में कुछ सकारात्मक प्रभाव भी हो सकते हैं.

मिश्रा ने कहा, "खाने-पीने का सामान, आना-जाना, घरेलू चीजें और स्वास्थ्य जैसी सुविधाओं की मांग बढ़ सकती है. इन योजनाओं से लक्षित आबादी की आय में 5 से 40 प्रतिशत की वृद्धि होती है."

महिलाओं सहित अन्य लाभों ने बीजेपी को हाल ही में उत्तरी राज्य हरियाणा में अप्रत्याशित रूप से सत्ता में बने रहने में मदद की. हालांकि, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि महाराष्ट्र में बीजेपी को जीतने में कठिनाई होगी. 
इस साल अप्रैल से जून के बीच हुए आम चुनावों में बीजेपी ने अपना संसदीय बहुमत खो दिया था और मोदी तीसरी बार सत्ता में बने रहने के लिए छोटे सहयोगियों पर निर्भर रहे हैं. इन चुनावों से पहले नरेंद्र मोदी ने महिला दिवस के मौके पर जोर देकर कहा था कि महिला मतदाता उनकी ढाल हैं. 

क्या महिलाओं का समर्थन मिला?

बीजेपी ने पिछले कुछ सालों में महिलाओं के वोट पाने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं, जो घर-परिवार, कामकाजी अधिकार और सुरक्षा पर केंद्रित हैं. 2016 में शुरू हुई उज्ज्वला योजना इसी का हिस्सा है, जिसके तहत हर घर को खाना पकाने के लिए गैस सिलेंडर उपलब्ध कराए गए ताकि लकड़ी और कोयले पर निर्भरता कम हो. योजना ने बड़े पैमाने पर सफलता पाई, लेकिन सिलेंडर दोबारा भरवाने का खर्च अभी भी एक समस्या है. 

2017 में, बीजेपी ने कानूनी संशोधन के जरिए महिलाओं के लिए मैटरनिटी लीव को दोगुना कर दिया, पर भारत के असंगठित क्षेत्रों में काम करने वाली अधिकतर महिलाएं अभी भी इस सुविधा से वंचित हैं. उत्तर प्रदेश में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर भी बीजेपी का दावा है कि उनके शासन में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में दोषियों को सजा मिलने की दर सबसे अधिक है, लेकिन राज्य में महिलाओं के खिलाफ अपराधों की कुल संख्या भी बढ़ी है.

2023 में महिला आरक्षण बिल पास हुआ, जिसमें संसद और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए कम से कम 33 फीसदी सीटें सुरक्षित की गईं. हालांकि, इसके लागू होने में देरी और असमंजस है.

बीजेपी ने तीन तलाक पर भी रोक लगाई, इसे मुस्लिम महिलाओं को सशक्त बनाने का कदम बताया गया, पर आलोचकों का मानना है कि इससे मुस्लिम समुदाय को गलत तरीके से पेश किया जा रहा है. इन सभी नीतियों पर मिले-जुले विचार हैं, लेकिन सभी के केंद्र में महिला मतदाताओं को लुभाने की कोशिश नजर आती है.

लोकसभा चुनाव के बाद लोकनीति के एक सर्वे के अनुसार, इन प्रयासों का महिलाओं पर खास असर नहीं पड़ा. संसद में बीजेपी को सबसे ज्यादा 240 सीटें और 37 फीसदी वोट मिले, लेकिन इनमें पुरुषों के वोट ज्यादा थे.

लोकसभा चुनाव में 37 फीसदी पुरुष मतदाताओं ने बीजेपी को वोट दिया, जबकि महिलाओं की संख्या 36 फीसदी रही. 2019 के लोकसभा चुनाव में भी यह आंकड़ा 36 का ही था. वहीं, विपक्षी पार्टी कांग्रेस को 22 फीसदी महिलाओं का वोट मिला, जो 2019 से 2 फीसदी ज्यादा है. कांग्रेस को इस बार 21 फीसदी पुरुषों का वोट मिला.