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भारतीय भाषा की किताब को पहली बार मिला बुकर

२७ मई २०२२

पहली बार एक हिंदी उपन्यास को अनुवाद श्रेणी में प्रतिष्ठित बुकर पुरस्कार मिला है. हिंदी लेखिका गीतांजलि श्री के उपन्यास ‘रेत समाधि’ के अंग्रेजी अनुवाद ‘टूंब ऑफ सैंड’ को यह पुरस्कार मिला है.

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गीतांजलि श्री
गीतांजलि श्रीतस्वीर: David Parry/PA Wire/empics/picture alliance

‘रेत समाधि' का अंग्रेजी अनुवाद जानीमानी अनुवादक डेजी रॉकवेल ने किया है. यह किसी भी भारतीय भाषा में लिखी गई पहली किताब है जिसने अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीता है. पुरस्कार में 50 हजार पाउंड यानी लगभग 50 लाख रुपये की राशि दी जाती है, जिसे लेखक और अनुवादक के बीच आधा-आधा बांटा जाएगा.

अनुवादक फ्रैंक वाएन उस निर्णायक मंडल के अध्यक्ष थे, जिसने पुरस्कृत रचना चुनी. वाएन ने कहा कि निर्णायकों ने एक जोश भरी बहस के बाद पूरे उत्साह के साथ ‘टूंब ऑफ सैंड' को पुरस्कार के लिए चुना. ‘रेत समाधि' 80 बरस की उम्र पार कर चुकी एक महिला की कहानी है, जो परंपराओं की बेड़ियां तोड़कर 1947 के बंटवारे के दौरान के अपने अनुभवों का सामना करती है. वाएन ने कहा कि भले ही इस किताब में बेहद दर्दनाक अनुभवों का वर्णन है, लेकिन "यह अद्भुत रूप से प्रफुल्लित कर देने वाली किताब है."

वाएन ने कहा, "यह किताब मातम, खोने और मृत्यु जैसे बेहद गंभीर मुद्दों को उठाती है और आवाजों के शोर को एक समूहगान में तब्दील कर देती है. यह अप्रत्याशित रूप से मजेदार और मजाकिया किताब है."

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रेत समाधि ने रचा इतिहास

‘रेत समाधि' के साथ पांच और किताबें इस पुरस्कार के लिए दौड़ में थीं, जिनमें पोलैंड की नोबेल पुरस्कार विजेता ओल्गा तोकारश्चुक के अलावा अर्जेंटीना की क्लाउडिया पिन्योरो और दक्षिण कोरिया के बोरा चुंग भी शामिल हैं. पुरस्कार समारोह लंदन में हुआ.

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पुरस्कार स्वीकार करते वक्त लेखिका गीतांजलि श्री ने कहा, "मैंने कभी बुकर पुरस्कार जीतने की कल्पना भी नहीं की थी. कभी सोचा ही नहीं कि मैं ऐसा भी कुछ कर सकती हूं. यह एक बड़ा सम्मान है. मैं हैरान, प्रसन्न, सम्मानित और विनम्र महसूस कर रही हूं."

उन्होंने कहा, "मैं और यह किताब दक्षिण एशियाई भाषाओं में एक समृद्ध साहित्यिक परंपरा से जुड़े हैं. विश्व साहित्य इन भाषाओं के कुछ अद्भुत लेखकों को जानकर और समृद्ध होगा."

हिंदी में ‘रेत समाधि' को राजकमल प्रकाशन ने छापा है. गीतांजलि श्री लंबे समय से हिंदी लेखन में सक्रिय हैं. उनका पहला उपन्यास 'माई' था जो 1990 के दशक में छपा था. 'हमारा शहर उस बरस' भी उसी दौरान प्रकाशित हुआ. वह 'तिरोहित' 'खाली जगह' के लिए भी चर्चित हो चुकी हैं.

उनके कई कहानी संग्रह भी छप चुके हैं और उनकी रचनाओं का भारतीय भाषाओं के अलावा अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन आदि में भी अनुवाद हो चुका है. 'माई' का अंग्रेजी अनुवाद 'क्रॉसवर्ड अवॉर्ड' के लिए भी नामित हुआ था.

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इसका अंग्रेज़ी अनुवाद मशहूर अनुवादक डेजी रॉकवेल ने किया है. 50,000 पाउंड यानी करीब 50 लाख रुपये के साहित्यिक पुरस्कार के लिये पांच अन्य किताबों से इसकी प्रतिस्पर्धा हुई. पुरस्कार की राशि लेखिका और अनुवादक के बीच बराबर बांटी जाएगी.

अनुवाद की दुनिया में बुकर

अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार हर साल ऐसी किताबों को दिया जाता है जो किसी अन्य भाषा से अनुवादित है और युनाइटेड किंग्डम या आयरलैंड में प्रकाशित हुई हो. इस पुरस्कार की स्थापना उन अनुवादकों के काम को सम्मानित करने के लिए की गई थी जो विभिन्न भाषाओं के साहित्य को अंग्रेजी में उपलब्ध करवाते हैं. वाएन ने कहा कि यह पुरस्कार देने का मकसद यह साबित करना भी है कि "अनुवाद में उपलब्ध साहित्य किसी मछली के तेल जैसी चीज नहीं है जो आपके लिए अच्छा होना चाहिए."

‘टूंब ऑफ सैंड' को ब्रिटेन के बहुत छोटे से प्रकाशक ‘एक्सिस प्रेस' ने छापा है. यह प्रकाशन समूह अनुवादक डेब्रा स्मिथ ने स्थापित किया था, जो खुद 2016 में अनुवाद के लिए बुकर पुरस्कार जीत चुकी हैं. उन्होंने हान कंग के उपन्यास ‘द वेजिटेरियन' के लिए यह पुरस्कार जीता था. स्मिथ का कहना है कि उनके प्रकाशन समूह का मकसद एशिया की किताबों को अंग्रेजी में उपलब्ध कराना है.

‘टूंब ऑफ सैंड' अभी अमेरिका में प्रकाशित नहीं हुआ है लेकिन वाएन का कहना है कि बुकर जीतने के बाद पुस्तक के पास अमेरिका से भी कई पेशकश होंगी. उन्होंने कहा, "मैं हैरान रह जाऊंगा अगर अगले हफ्ते तक ब्रिटेन में इस किताब की बिक्री 1,000 प्रतिशत या शायद उससे भी ज्यादा नहीं बढ़ी तो."

रिपोर्टः विवेक कुमार (रॉयटर्स)

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