1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

क्या बदला जा सकता है आम चुनावों का समय

रामांशी मिश्रा
२५ मई २०२४

क्या प्रचंड गर्मियों में ही आम चुनाव कराए जाने जरूरी हैं या इनका समय थोड़ा बदला जा सकता है. यह जानने के लिए डीडब्ल्यू ने बात की आम मतदाताओं और चुनाव विशेषज्ञों से.

https://p.dw.com/p/4gHUZ
मतपेटियां ले जाते चुनाव कर्मी
प्रचंड गर्मियों में चुनाव कराने से ना सिर्फ मतदाताओं बल्कि चुनाव अधिकारियों को भी समस्या होती हैतस्वीर: Manish Swarup/AP

"हर बार आम चुनाव भयंकर गर्मी के मौसम में होते हैं. तेज धूप होने के कारण लोग घर से निकलने से कतराते हैं क्योंकि मतदान स्थलों पर लंबी लाइन में कोई खड़ा नहीं होना चाहता." यह कहना है, लखनऊ के अंकित सिंह का, जो तपती गर्मी को मतदान में कमी की अहम वजह मानते हैं.

भारत में अभी तक छह चरणों के चुनाव संपन्न हो चुके हैं, लेकिन हर जगह मतदान में गिरावट दर्ज की जा रही है. लखनऊ में भी पांचवें चरण में मतदान संपन्न हुआ, जहां 2019 के मुकाबले मतदान प्रतिशत 2.55 प्रतिशत अंक घटकर 52.12 प्रतिशत रहा. इस सीट पर बीजेपी के टिकट से रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह एक बार फिर सबसे प्रमुख चेहरा हैं.

पूर्व राष्ट्रपति ने की मौसम अनुकूल चुनाव की वकालत

घटते मतदान के पीछे बढ़ती गर्मी को भी एक बड़ी वजह माना जा रहा है. इस समय उत्तर भारत के तमाम इलाकों में पारा तकरीबन 50 डिग्री को छूने को तैयार है. कुछ दिन पहले चुनाव प्रचार अभियान के दौरान केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी भी गर्मी के चलते मंच पर बेहोश हो गए थे. करीब 98 करोड़ मतदाताओं वाले भारतीय लोकसभा चुनाव सात चरणों में हुए हैं. उत्तर प्रदेश की 80 सीटों पर सभी सातों चरणों के दौरान मतदान हो रहा है. जहां अप्रैल के मुकाबले अब गर्मी ज्यादा बढ़ चुकी है.

बढ़ती गर्मी और हीटवेव स्थिति की गंभीरता को देखते हुए भारत के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अखबारों में एक आलेख लिखा है कि भारत में मौसम अनुकूल चुनाव कराए जाने का समय आ गया है और अब इससे जुड़ी संभावनाओं को तलाशा जाना चाहिए. पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद एक राष्ट्र-एक चुनाव पर गठित समिति के प्रमुख भी हैं.

चुनाव आयोग को फॉर्म 17सी जारी करने का आदेश देने से सुप्रीम कोर्ट का इंकार

मतदान कर्मी भी परेशान

गर्मी में परेशानियों से सिर्फ मतदाता ही नहीं बल्कि मतदान स्थल पर कार्यरत पीठासीन अधिकारियों को भी दो चार होना पड़ता है. रजत राज रस्तोगी चुनावों में पीठासीन अधिकारी की भूमिका में हैं. वह कहते हैं, "भीषण गर्मी में ईवीएम को लेकर आने के लिए तेज धूप में ही घंटों रहना पड़ता है. हमारी चार-पांच लोगों की टीम होती है. सभी लोग गर्मी में ईवीएम की रखवाली भी करें, अपना भी ख्याल रखें और मतदान भी सुचारु रूप से करवाएं, यह जिम्मेदारी निभाना काफी मुश्किल है."

मतदान स्थल ज्यादातर सरकारी स्कूलों में बनाए जाते हैं जहां पर बिजली और पानी की बहुत उचित व्यवस्था नहीं होती है. उनकी मांग है कि सुबह से शाम तक भीषण गर्मी में रहकर मतदान करवाने वाले कर्मियों के लिए भी उचित व्यवस्था की जानी चाहिए.

छाता और अखबार लेकर खुद को धूप से बचाते स्थानीय मतदाता
कई अनुमान कहते हैं कि बढ़ती गर्मी के चलते भारत के आम चुनावों में हो रहे मतदान में कमी आई हैतस्वीर: Sahiba Chawdhary/REUTERS

मौसम विभाग ने दिए बचाव के उपाय

तेज गर्मियां का मौसम मुख्य रूप से उत्तर पश्चिमी भारत, मध्य, पूर्व और उत्तर प्रायद्वीपीय भारत के मैदानी इलाकों में मार्च से जून के दौरान होता है. ये गर्म हवाओं का महीना होता है.

लखनऊ स्थित आंचलिक मौसम विज्ञान विभाग के निदेशक डॉ. मनीष रानाल्कर कहते हैं, "हम लगातार जिला प्रशासन के संपर्क में रहते हैं और उन्हें रोज का पूर्वानुमान भेजते हैं. बढ़ती गर्मी को देखते हुए मतदान स्थल पर भी लू से बचाव के लिए सुझाव पट्टी और कुछ अन्य व्यवस्था की सलाह भी दी गयी है.” मतदान स्थलों पर बुजुर्गों और गर्भवतियों के लिए बैठने की व्यवस्था और लू लगने पर पास के अस्पताल में आकस्मिक व्यवस्था का भी सुझाव दिया गया है.

लोकसभा चुनाव: शेयर कारोबारियों की सट्टा बाजार पर नजर

पार्टियां सहमत हों तो बदल जाए चुनावों का मौसम

पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त ओपी रावत बताते हैं कि लोकसभा का कार्यकाल खत्म होने से पहले चुनाव संपन्न हो जाना जरूरी होता है. इस साल 16 जून को यह कार्यकाल समाप्त होने वाला है. ऐसे में उससे पहले चुनाव होने जरूरी है. ऐसे में हीटवेव के दौरान मतदान होने या न होने पर कोई नियंत्रण नहीं किया जा सकता.

ओपी रावत कहते हैं, "पहले चुनाव फरवरी में और एक दिन पर हो जाते थे लेकिन अब सभी पार्टियों की मांग सेंट्रल पैरामिलेट्री फोर्स की होती है जो कि सीमित है. ऐसे में कई चरणों में मतदान किए जाते हैं." उनके मुताबिक वर्तमान में भी चुनाव फरवरी या मार्च में कराए जा सकते हैं, लेकिन सभी पार्टियों की सहमति होनी जरूरी है."

क्या ई-वोटिंग बन सकती है विकल्प?

2024 में युवा मतदाताओं की संख्या भी सबसे अधिक है. ऐसे में कई लोग मानते हैं कि ई-वोटिंग भी एक विकल्प हो सकता है. इसपर रावत कहते हैं, "निर्वाचन आयोग 2015 से ही वोटिंग करवाने की कोशिश कर रहा है. तब से ही वॉलंटियरी बेसिस पर आधार और मतदाता पहचान पत्र को जोड़ने की कवायद शुरू हो गई थी और 20 करोड़ मतदाताओं का वोटर कार्ड, आधार कार्ड से लिंक हो भी गया था.”

इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर निजता के उल्लंघन के आधार पर यह रोक दिया गया. कोर्ट के आदेश के बाद फिर संसद से निजता के अधिकार एक्ट में जरूरी बदलाव के बाद यह प्रक्रिया शुरू की गई है. इसका उद्देश्य यही है कि कहीं भी आधार कार्ड से मतदाता की बायोमेट्रिक पहचान सुनिश्चित कर ई-वोटिंग कराई जा सके. हालांकि उनके मुताबिक ऐसा कोई कदम सभी पार्टियों की सहमति होने के बाद ही उठाया जा सकेगा.

मतदाताओं के लिए सुविधा पर जागरूकता नहीं

2017 में मतदाताओं की सुविधा के लिए निर्वाचन आयोग ने ‘क्यू मैनेजमेंट सिस्टम' नाम का एक ऐप बनाया था जिसमें पोलिंग स्टेशन पर कितनी भीड़ है, इसके बारे में जानकारी मिल सकती थी. रावत कहते हैं, "अभी भी निर्वाचन आयोग की ओर से 'क्यू मैनेजमेंट सिस्टम' और 'सी-विजिल' समेत कई ऐसी व्यवस्थाएं हैं, लेकिन इसके बारे में लोगों में जागरूकता की कमी है. इस वजह से लोग हीटवेव या अन्य बातों के बारे में सोचकर मतदान करने नहीं जाते.”

गर्मी के अलावा लोग, मतदान स्थलों पर समान रखने के लिए पर्याप्त प्रबंध ना होने को भी समस्या मानते हैं. लखनऊ निवासी 27 वर्षीय इलेक्ट्रिकल इंजीनियर अंकित कहते हैं, "जो व्यक्ति अकेले ही मतदान स्थल पर जाता है उसे मोबाइल और पर्स जैसे जरूरी सामानों को रखने की कोई सुविधा नहीं मिलती और इन्हें मतदान स्थल के अंदर ले जाने की अनुमति नहीं होती. इस वजह से भी लोग जाने से कतराते हैं."

भारत के चुनावों में मुद्दा बन रहा बेरोजगारी