कारीगरों, शिल्पकारों और दस्तकारों का संगम है हुनर हाट
दिल्ली में आयोजित हुनर हाट में देश के 31 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से 600 से अधिक दस्तकार, शिल्पकार और कारीगार स्वदेशी उत्पादों के साथ शामिल हुए. हुनर हाट "वोकल फॉर लोकल" थीम पर आधारित थी.
हुनर का हाट
केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय ने दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में 26वें हुनर हाट का आयोजन किया. इस बार की थीम वोकल फॉर लोकल थी. हाट में देशभर के स्वदेशी कारीगर और शिल्पकार अपने-अपने उत्पादों के साथ शामिल हुए.
एक मंच पर कारीगार, शिल्पकार और दस्तकार
हुनर हाट में 600 से ज्यादा कारीगर एक साथ एक मंच पर जमा हुए. जम्मू-कश्मीर से लेकर उत्तराखंड और असम से लेकर कर्नाटक, हर राज्य के कारीगर के पास पेश करने को कुछ ना कुछ अनोखा उत्पाद था.
महिला कारीगर
हुनर हाट में महिला कारीगरों, दस्तकारों ने भी हिस्सा लिया. उन्होंने अपनी कला का प्रदर्शन किया साथ ही साथ उनके स्वदेशी उत्पादों की मांग भी पहले के मुकाबले बढ़ी.
रोजगार के मौके बढ़े
अल्पसंख्यक कार्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी का कहना है कि देश भर के दस्तकारों, शिल्पकारों के स्वदेशी उत्पादों को लोगों तक पहुंचाने और प्रोत्साहित करने का उत्तम मंच हुनर हाट है. उनके मुताबिक यह अब तक पांच लाख तीस हजार से ज्यादा दस्तकारों, शिल्पकारों, कलाकारों को आजीविका और रोजगार के मौकों से जोड़ चुका है.
वोकल फॉर लोकल
मुख्तार अब्बास नकवी का कहना है कि वोकल फॉर लोकल को जन आंदोलन बनाने में हुनर हाट अहम भूमिका निभा रहे हैं. हुनर हाट के जरिए लोग हाथ से बने उत्पाद को खरीद रहे हैं. स्वेदशी उत्पाद बड़े शहरों में जगह बना रहा है.
कला और रोजगार का जरिया
पश्चिम बंगाल के जूट के सामान, राजस्थान की लाख की चूड़ियां, तमिलनाडु और कर्नाटक की कलाकृतियां, उत्तर प्रदेश के कॉपर के सामान या फिर बिहार के देसी उत्पाद हो लोगों को खूब भाए.
मिल रही सराहना
हाट में आने वालों से शिल्पकारों और दस्तकारों को सराहना भी मिली. शहरों में अक्सर लोग हाथ से बने उत्पाद खरीद नहीं पाते हैं और ऐसे मौकों में उन्हें इन चीजों को खरीदने का अच्छा विकल्प मिलता है.
गांव का एहसास
हुनर हाट को इस तरह से बनाया गया कि वह किसी गांव का हाट लगे. कहीं चौपाल बनाया गया तो कहीं बैलगाड़ी का मॉडल लगाया गया. लोगों को गांव जैसा अनुभव देने के लिए अलग-अलग तरह के इंतजाम किए गए.
हुनर के साथ इनोवेशन
उत्तर प्रदेश के रामपुर के शोएब बताते हैं कि वे कोराई घास से बनी चटाई के साथ यहां आए हैं. इस चटाई की खासियत यह है कि गद्दे की तरह भी इस्तेमाल की जा सकती है और काम ना हो तो इसे मोड़ कर रखा जा सकता है. वे बताते हैं कि हाट के कारण उनकी इस अनोखी चटाई की मांग बढ़ी है.
समय बिताने का अच्छा मौका
कोरोना काल में लोगों के पास मनोरंजन के विकल्प सीमित हो गए हैं. ऐसे में हुनर हाट में आकर लोग तनाव मुक्त होते हैं, भले ही वे खरीदारी नहीं करे लेकिन गांव जैसा माहौल उन्हें भागदौड़ वाली जिंदगी से थोड़ी देर के लिए दूर ले जाता है.