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समाज

तालाबंदीः लाखों बुनकरों के रोजगार पर संकट

आमिर अंसारी
२२ अप्रैल २०२०

लॉकडाउन के कारण बुनकरों के आय के रास्ते बंद हो गए हैं. देश के बुनकर पहले विद्युतकरघों के कारण बेरोजगार हुए तो अब उन्हें लॉकडाउन बेरोजगार कर रहा है.

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तस्वीर: DW/J. Akhtar

भारत में कोरोना वायरस पर काबू पाने की कोशिशों के तहत जारी तालाबंदी बुनकरों के लिए बड़ी मुसीबत लेकर आई है. लॉकडाउन की वजह से बुनकर तबका भी बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है. देशव्यापी लॉकडाउन की वजह से लाखों बुनकर मजदूर बेरोजगार हो गए हैं. भारत सरकार द्वारा करीब एक दशक पहले किए गए सर्वेक्षण के अनुसार, देश में पावरलूम बुनकरों की संख्या 43 लाख थी. हालांकि, उनकी वास्तविक संख्या बहुत अधिक बताई जाती है. इस पेशे में दो तरह के लोग शामिल हैं. एक वो जिन्होंने अपने घरों में दो-चार पावरलूम मशीनें लगाईं हैं और दूसरे वो जो इन पावरलूम में बतौर मजदूर काम करते हैं. उनके अलावा एक बहुत बड़ी आबादी महिलाओं की है जो कपड़े की तैयारी के अन्य चरणों में हाथ बंटाती है. लॉकडाउन हो जाने से यह सभी लोग बेरोजगार हो गए हैं और उनके सामने रोजी-रोटी की समस्या पैदा हो गई है.

उत्तर प्रदेश बुनकर यूनियन के पूर्व सचिव जावेद अख्तर भारती ने डीडब्ल्यू से बातचीत करते हुए कहा, "लॉकडाउन के कारण आमदनी बंद है. माल नहीं आ पा रहा है. जो बड़े कारोबारी हैं, जिनके पास बहुत सारे पावर लूम हैं, वे किसी तरह से अपना काम चला ले रहे हैं. लेकिन छोटे कारोबारी, जो दो या तीन पावरलूम चलाते हैं, उनके सामने बहुत समस्याएं हैं." जावेद भारती उत्तर प्रदेश के मऊ जिले में रहते हैं, जहां 70 फीसदी लोग बुनकर पेशे से जुड़े हुए हैं यहां लगभग 45 हजार पावरलूम हैं.

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बंद पड़ी पावरलूम की मशीनें.तस्वीर: DW/J. Akhtar

जावेद भारती बताते हैं कि मऊ में सिर्फ 10-12 बड़े कारोबारी हैं. बाकी लोगों के पास सिर्फ दो-तीन मशीनें हैं. जावेद भारती के मुताबिक, "ऐसे में सबसे ज्यादा खराब हालत उन छोटे कारोबारियों की है. गरीब बुनकरों के सामने पहले से ही रोजी-रोटी के लाले पड़े थे, लेकिन लॉकडाउन ने तो उनकी कमर ही तोड़ दी है." मुमताज अहमद के घर पर पावरलूम की दो मशीनें लगी हैं और घर की औरतें इन मशीनों पर काम करती हैं. मुमताज कहते हैं कि यह एक ऐसा कारोबार है जो प्रदूषण से मुक्त हैं. मुमताज कहते हैं, "लॉकडाउन की वजह से सबकुछ बंद हो गया है. ना तो कपड़ा तैयार करने के लिए कच्चा माल मिल रहा है और ना ही तैयार माल बिक रहा है." मुमताज बुनकरों को लेकर सरकार के रवैये पर भी नाराज हैं. देश के सामाजिक-आर्थिक विकास में हथकरघा उद्योग के महत्व के बारे में जागरुकता फैलाने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने जुलाई, 2015 में 7 अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस घोषित किया था.

मुमताज अहमद कहते हैं ऐलान के बावजूद बुनकरों की हालत में कोई सुधार नहीं हो सका है. यह हालत सिर्फ मऊ तक ही सीमित नहीं है बल्कि देश के अन्य राज्यों में भी हालत ऐसे ही हैं. महाराष्ट्र के भिवंडी और मध्य प्रदेश के बुरहानपुर में भी यही हाल है. भिवंडी में पावरलूम पर कम से कम 6,00,000 कर्मचारी काम करते हैं. इनमें असम, झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों के मजदूर शामिल हैं. वहां मजदूर 12 घंटे काम करने के बाद 300 से लेकर 500 रुपये तक कमा पाता है, लेकिन वहां भी पावरलूम बंद हैं.

बुरहानपुर में  लगभग 2,00,000 मजदूर पावरलूम पर काम करते हैं. 1990 के दशक में बुरहानपुर भारत में पावरलूम के केंद्र के रूप में उभरा. यहां का माल चीन समेत अन्य देशों में निर्यात किए जाने लगा था, लेकिन नोटबंदी और उसके बाद जीएसटी के कारण पावरलूम उद्योग की कमर टूट गई. बुनकर चाहते हैं कि अगले छह महीने के लिए उनका बिजली बिल माफ कर दिया जाए.

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