विरोध के बावजूद चीन के साथ मुक्त व्यापार क्यों चाहता है भारत
१० अक्टूबर २०१९भारतीय अधिकारियों ने कहा है कि घरेलू विरोध के बावजूद भारत और चीन दोनों देश मुक्त व्यापार को लेकर आगे बातचीत कर रहे हैं. इस साल के अंत तक मुक्त व्यापार क्षेत्र को अंतिम रूप देने के उद्देश्य से बातचीत के लिए 16 देशों की क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) के वार्ताकार थाइलैंड की राजधानी बैंकॉक में जुटे हैं. भारत के वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल भी चीन, जापान, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और सिंगापुर के वाणिज्य मंत्रियों के साथ बातचीत में इस सप्ताह के अंत में भारतीय प्रतिनिधियों के साथ शामिल होंगे.
भारतीय उत्पादकों को डर है कि डेयरी और अन्य उत्पादों पर टैरिफ में कटौती से सस्ते चीनी समानों के भारत आने का रास्ता खुलेगा. इससे भारत के बड़े कृषि क्षेत्र पर खतरा हो सकता है. खुद आरएसएस भी इसका विरोध कर रहा है. राष्ट्रवादी राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ ने इस समझौते के खिलाफ शुक्रवार 11 अक्टूबर को राष्ट्रीय स्तर पर विरोध जताने का आह्वान किया है. आरएसएस का कहना है कि टैरिफ में इस तरह का बदलाव देश में सुस्त आर्थिक वृद्धि के दौरान उद्योगों और खेती को पंगु बना देगा. आरएसएस की आर्थिक इकाई के नेता अश्विनी महाजन कहते हैं, "आरसीईपी विनिर्माण और कृषि को मजबूत करने के लिए आवश्यक नीतिगत उपाय करने से सरकार के हाथों को रोकता है."
दूसरी ओर इस समझौते का समर्थन करने वालों का कहना है कि भारतीय कृषि को व्यापार क्षेत्र में शामिल करना अच्छा होगा. कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण वाणिज्य मंत्रालय के अधीन है. प्राधिकरण के निदेशक एके गुप्ता कहते हैं, "भारत को एक खुले दृष्टिकोण की जरूरत है. कृषि क्षेत्र भी रूढ़िवादी दृष्टिकोण अपनाने के बजाय विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धा कर सकता है." मुक्त व्यापार वार्ता पर नजर रख रहे एक अधिकारी का कहना है कि डंपिंग की स्थिति में सुरक्षा के लिए भारत ने अन्य देशों के साथ एक तंत्र बनाने पर सैद्धांतिक सहमति की है.
आरसीईपी में दक्षिणी पूर्वी एशियाई देशों के आसियान समूह के 10 देश और एशिया-प्रशांत के छह देश चीन, भारत, जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रलिया तथा न्यूजीलैंड शामिल हैं. आलोचकों का कहना है कि कृषि उत्पादों के अलावा भारतीय बाजार में सस्ते चीनी मोबाइल फोन, स्टील, इंजीनियरिंग सामान और खिलौनों की भरमार हो सकती है. वहीं अधिकारियों का कहना है कि समझौते से भारतीय उद्योग की वैश्विक सप्लाई चेन तक पहुंच आसान हो जाएगी और वे आसानी से इंजीनियरिंग और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे सामान प्राप्त कर सकेंगे. विदेशी बाजारों में पहुंच बढ़ने से देश को आर्थिक मंदी का सामना करने में मदद मिलेगी.
आरआर/एमजे (रॉयटर्स)
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