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भारत और जर्मनी दे रहे हैं आपसी रक्षा संबंध बढ़ाने पर जोर

धारवी वैद
२९ मार्च २०२४

भारत और जर्मनी के बीच बेहद कम सैन्य संबंध रहे हैं. लेकिन यूक्रेन पर रूस के हमले और चीन की बढ़ती मुखरता के चलते दोनों देश अपनी रक्षा साझेदारी पर नए सिरे से विचार कर रहे हैं.

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2023 में जर्मन रक्षा मंत्री की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच छह उन्नत स्टील्थ डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों के बारे में समझौता हुआ
2023 में जर्मन रक्षा मंत्री की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच छह उन्नत स्टील्थ डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों के बारे में समझौता हुआ तस्वीर: Imtiyaz Shaikh/AA/picture alliance

एक महत्वपूर्ण रणनीतिक बदलाव की ओर इशारा करते हुए जर्मनी ने भारत के साथ सैन्य संबंधों को बढ़ावा देने में रुचि दिखाई है. भारत में जर्मनी के राजदूत फिलिप आकरमान ने मार्च में एक इंटरव्यू में कहा था कि नई दिल्ली से रक्षा संबंधों को बेहतर बनाने के लिए बर्लिन की राजनीतिक इच्छाशक्ति अब स्पष्ट है. उन्होंने इसे एक बड़ा बदलाव बताया था.

आकरमान ने टाइम्स ऑफ इंडिया से कहा, "हम पहले बहुत झिझक रहे थे. अब जर्मनी में भारत के साथ रक्षा सहयोग बढ़ाने की स्पष्ट राजनीतिक इच्छाशक्ति है. इसे सैन्य यात्राओं, संयुक्त अभ्यासों, सह-उत्पादन और साइबर जैसे अन्य क्षेत्रों के जरिए बढ़ाया जाएगा.”

फरवरी के अंत में दोनों देशों के रक्षा सचिवों ने बर्लिन में मुलाकात की थी. इस दौरान रक्षा सहयोग विकसित करने, हिंद-प्रशांत में सुरक्षा स्थिति और क्षेत्र में संभावित संयुक्त अभ्यास पर बातचीत हुई.

इस साल अगस्त में भारतीय वायुसेना एक बहुपक्षीय अभ्यास का आयोजन करेगी. इसमें हिस्सा लेने के लिए फ्रांस, अमेरिका और दूसरे देशों के साथ जर्मनी की वायुसेना भी तैयार है. वहीं, अक्टूबर में जर्मन नौसेना का एक युद्धपोत और एक लड़ाकू सहायता जहाज भारत के पश्चिमी राज्य गोवा का दौरा करेंगे.

क्यों आ रहा है यह बदलाव?

विशेषज्ञों का कहना है कि जर्मनी इस क्षेत्र में भारत को एक स्वाभाविक साझीदार के तौर पर देखना शुरू कर रहा है. उनका मानना है कि रूस-यूक्रेन युद्ध और हिंद-प्रशांत में चीन की बढ़ती मुखरता की वजह से नई दिल्ली के प्रति बर्लिन का रवैया बदल रहा है. वे उम्मीद जताते हैं कि भारत को इससे दोहरा फायदे होगा. रूसी हथियारों पर दशकों से चली आ रही निर्भरता कम होगी और रक्षा खरीद में विविधता आएगी.

भारतीय नौसेना के पूर्व प्रमुख अरुण प्रकाश ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "बर्लिन और नई दिल्ली के बीच रक्षा संबंध अब तक बहुत कम रहे हैं, क्योंकि दोनों के बीच बहुत कम समानताएं थी. साथ ही दोनों देश एक-दूसरे की बजाय कहीं और देख रहे थे.”

वे आगे कहते हैं, "जर्मनी का ध्यान यूरोपीय संघ पर था. वहीं, भारत के मुख्य रक्षा संबंध रूस, फ्रांस और इस्राएल के साथ थे. अगर संक्षेप में कहें तो, अब तक रिश्ते काफी दूर के रहे हैं. सिवाय एक उदाहरण के, जब हमने 1980 के दशक के अंत में चार पनडुब्बियां हासिल की थीं. दुर्भाग्य से वह कार्यक्रम भी सफल नहीं हुआ.”

जर्मनी के रक्षा मंत्री बोरिस पिस्टोरियस 2023 में भारत आए थे. यह 2015 के बाद पहला मौका था, जब जर्मन रक्षा मंत्री ने किसी दक्षिण एशियाई देश का दौरा किया. इस यात्रा ने भारत और जर्मनी के बीच द्विपक्षीय रक्षा साझेदारी को नए सिरे से बल दिया. पिस्टोरियस भारत को ऑस्ट्रेलिया या जापान जैसा रणनीतिक साझेदार मानकर उसके साथ रक्षा सहयोग और हथियार सौदे को आसान बनाने के पक्ष में हैं.

भारत के रक्षा विशेषज्ञ कहते हैं कि नई दिल्ली इस बदलाव का स्वागत करेगी. अरुण प्रकाश कहते हैं, "जर्मन इंजीनियरिंग और जर्मन तकनीक हमेशा श्रेष्ठ रही है, लेकिन हम जानते थे कि जर्मनी का ध्यान यूरोपीय संघ पर था. साथ ही कानूनी प्रतिबंधों ने निर्यात को रोक दिया, जिस वजह से हमें जर्मनी से बहुत अधिक प्रस्ताव नहीं मिले.

प्रकाश आगे कहते हैं, "वे अब अपने कानूनों को बदल रहे हैं. साथ ही हमें अपने मिलिट्री हार्डवेयर उपलब्ध कराने के बारे में खुलकर सोच रहे हैं. हम इस बात से खुश हैं.” प्रकाश कहते हैं कि भारतीय नौसेना अपने भंडार में जर्मन उपकरणों को रखना पसंद करेगी, बशर्ते स्पेयर पार्ट्स और सहायता पर भी समझौता हो.

भारत-जर्मनी के साझा हित

दीपेंद्र सिंह हुड्डा रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल और भारतीय सेना की उत्तरी कमांड के पूर्व कमांडर हैं. वे करीबी रक्षा संबंधों को दोनों देशों के लिए जीत की तरह देखते हैं. वे कहते हैं, "भारत को आधुनिक होने की जरूरत है. उसे अपने हथियारों की खरीद में विविधता लाने की जरूरत है. भारत अतिरिक्त प्रौद्योगिकी की तलाश में है और जर्मनी के पास एक मजबूत रक्षा उद्योग है. यहां सहयोग बढ़ाने की बहुत बड़ी गुंजाइश है, जिससे दोनों पक्षों को मदद मिलेगी.”

अरुण प्रकाश की राय भी इससे मिलती-जुलती है. वे कहते हैं, "वर्तमान समय में, यह दोनों देशों के हित में है कि वे एक-दूसरे के साथ संबंध स्थापित करें और देखें कि वे कैसे आगे बढ़ते हैं.”

मिलिट्री गियर के मामले में भारत दुनिया का सबसे बड़ा आयातक है. वहीं, जर्मनी सबसे बड़े निर्यातकों में शामिल है. हुड्डा कहते हैं कि भारत को हथियारों की काफी ज्यादा जरूरत है. वे आगे कहते हैं, "अगर आप भारत के सैन्य आयात को देखें तो वे हर जगह कटौती करते हैं. भारत का रक्षा उद्योग अच्छी तरह विकसित नहीं है. इसका दायरा बहुत व्यापक है क्योंकि भारत की जरूरतें काफी बड़ी हैं. दोनों पक्षों की तरफ प्रचुर मात्रा में क्षमता और अवसर मौजूद हैं.”

संयुक्त अभ्यास पर ध्यान

संयुक्त अभ्यास इस रक्षा सहयोग का एक और हिस्सा है. अगस्त में होने वाले बहुपक्षीय वायु सेना अभ्यास में जर्मनी के दर्जनों विमानों के शामिल होने की उम्मीद है. इनमें टॉरनेडो जेट, यूरोफाइटर्स, हवा में ईंधन भरने वाले टैंकर और सैन्य परिवहन विमान शामिल हैं.

अनिल गोलानी रिटायर्ड एयर वाइस मार्शल हैं और दिल्ली स्थित ‘सेंटर फॉर एयर पावर स्टडीज' में अतिरिक्त महानिदेशक हैं. वे कहते हैं, "जब जर्मन वायुसेना की टुकड़ी अभ्यास के लिए भारत में उड़ान भरेगी, तब इसका नेतृत्व उनके प्रमुख करेंगे. वे यूरोफाइटर विमान में उड़ान भरेंगे. मैंने ऐसा पहले होते हुए नहीं देखा.”

वे कहते हैं, "दुनिया भर की कई वायु सेनाएं भारतीय वायु सेना के साथ अभ्यास में भाग लेना चाहती हैं. इसकी एक वजह यह है कि हमारे पास रूसी और पश्चिमी दोनों तरह के विमान मौजूद हैं. इनमें सुखोई, राफेल और मिराज समेत कई विमान शामिल हैं. दूसरी वायुसेनाओं को कहीं और रूस में बने विमानों के खिलाफ अभ्यास करने का मौका नहीं मिलता.”

भविष्य में क्या होगा?

जर्मनी और भारत जैसे-जैसे घनिष्ठ रक्षा संबंध बनाने की राह पर बढ़ रहे हैं. पर्यवेक्षकों का कहना है कि दोनों देशों को एक-दूसरे की रणनीतिक चिंताओं को भी समझने की जरूरत है.

हुड्डा कहते हैं, "जर्मनी इस बात को संदेह की नजर से देख रहा है कि रूस-यूक्रेन युद्ध में भारत खुलकर एक पक्ष में क्यों नहीं आया है. लेकिन इसकी अपनी रणनीतिक चिंताएं हैं. हमें उन क्षेत्रों को देखना चाहिए जहां समानता है. साथ ही मतभेदों पर बैठकर चर्चा करनी चाहिए और दोनों तरफ ज्यादा स्पष्टता लानी चाहिए.”

वे आगे जोड़ते हैं, "अगर आप देखें तो पिछले कुछ सालों में भारत और अमेरिका के संबंध भी इसी तरह मजबूत हुए हैं.”

गोलानी ने कहा कि भारत-जर्मनी रक्षा संबंधों का भविष्य अच्छा और मजबूत है. वहीं, पूर्व नौसेना प्रमुख अरुण प्रकाश ने जोर देकर कहा कि भविष्य में संबंध कैसे होंगे, इसकी भविष्यवाणी करना मुश्किल है. उन्होंने कहा कि भारत और जर्मनी को सबसे पहले शुरुआत करनी चाहिए और एक प्रोजेक्ट को उसके अंजाम तक पहुंचाना चाहिए. इसी से भविष्य के संबंधों का रास्ता मिलेगा.