1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

सरकारी मदद से गरीब कैदियों की रिहाई होगी आसान

आमिर अंसारी
३ फ़रवरी २०२३

भारतीय जेलों की हालत बहुत खराब है. जेलों में क्षमता से ज्यादा कैदी सालों से बंद हैं. ऐसा इसलिए कि उनके पास जमानत भरने या जुर्माना भरने के लिए पैसे नहीं हैं.अक्सर ऐसे कैदी पैसों की तंगी से खुली हवा में सांस नहीं ले पाते.

https://p.dw.com/p/4N36V
दिल्ली की तिहाड़ जेल
दिल्ली की तिहाड़ जेलतस्वीर: Anindito Mukherjee/EPA/dpa/picture alliance

भारतीय जेलों में बंद ऐसे गरीब कैदियों की फिक्र अब सरकार को भी होने लगी है जो जमानत या जु्र्माने की राशि नहीं भर पाते हैं और सालों साल जेल में ही सड़ने को मजबूर होते हैं. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक ऐसे कैदियों की हालत पर चिंता जता चुके हैं. गरीब कैदियों की रिहाई का मामला सुप्रीम कोर्ट भी सुन रहा है और वह राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण यानी नालसा से सलाह मशविरा भी कर रहा है.

क्या कहती है नालसा की रिपोर्ट

एक फरवरी को आम बजट पेश होने से एक दिन पहले नालसा ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि ताजा आंकड़ों के मुताबिक अदालतों द्वारा जमानत दिए जाने के बावजूद लगभग 5,029 विचाराधीन बंदी देश की जेलों में थे, जिनमें से 1,417 को रिहा कर दिया गया है.

नालसा की रिपोर्ट के आंकड़ों से पता चलता है कि 2,357 कैदियों को कानूनी सहायता दी गई थी. दिसंबर 2022 के अंत तक महाराष्ट्र में 703 बंदी थे जो जमानत की शर्तों को पूरा करने में असमर्थता के कारण जेल में बंद थे. इनमें से 215 बंदियों को कानूनी सहायता प्रदान की गई और 314 को रिहा कर दिया गया. वहीं दिल्ली में ऐसे कैदियों की संख्या 287 थी, जिनमें से 217 को कानूनी मदद दी गई और 71 लोगों को रिहा कर दिया गया.

नालसा का कहना है कि वह यह सुनिश्चित करने के लिए प्रयास कर रहा है कि और विचाराधीन कैदियों को रिहा किया जा सके. उसकी रिपोर्ट कहती है, "जहां भी, रिहाई न होने का कारण बॉन्ड या जमानत पेश करने में असमर्थता है, नालसा उन मामलों को संबंधित एसएलएसए/डीएलएसए (राज्य और जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण) के साथ उठाएगा और उम्मीद है कि अगले 1-2 महीनों में अधिक विचाराधीन कैदी जेल से बाहर निकलने में सक्षम होंगे."

बजट से कैसे जगी गरीब कैदियों की उम्मीद

जेलों में बंद गरीब कैदियों का मामला पिछले कई महीनों से चर्चा के केंद्र में है. राष्ट्रपति, सुप्रीम कोर्ट और देश के प्रधानमंत्री भी इस मामले पर अपना विचार रख चुके हैं. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एक फरवरी को बजट भाषण में कहा कि गरीब व्यक्तियों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी जो जेल में हैं और जुर्माना और जमानत राशि देने में असमर्थ हैं. उन्होंने कहा, "ऐसे कैदी जो गरीब हैं और जुर्माना या जमानत नहीं भर सकते हैं, जिन्हें आर्थिक मदद की जरूरत है, उन्हें यह मदद दी जाएगी."

पिछले साल मुख्यमंत्रियों और हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों के संयुक्त सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने उनसे अपील की थी कि वे जेलों में बंद विचाराधीन कैदियों से संबंधित मामलों को प्राथमिकता दें और मानवीय संवेदनाओं पर कानून के आधार पर उन्हें रिहा करें.

मोदी ने कहा था कि हर जिले में जिला न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक समिति होती है, ताकि इन मामलों की समीक्षा की जा सके और जहां संभव हो ऐसे कैदियों को जमानत पर रिहा किया जा सके.

क्या कहते हैं सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देश

नालसा की रिपोर्ट आने के बाद अपने ताजा निर्देश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जेल अधीक्षक को सभी विचाराधीन कैदियों को ई-मेल द्वारा जमानत आदेश की एक कॉपी या तो फैसले के दिन या अगले दिन देनी होगी. सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्देश में कहा, "जेल अधीक्षक को ई-जेल सॉफ्टवेयर या कोई अन्य सॉफ्टवेयर जो जेल विभाग द्वारा इस्तेमाल किया जा रहा है उसमें जमानत देने की तारीख दर्ज करने की आवश्यकता होगी."

सुप्रीम कोर्ट आगे अपने दिशा निर्देश में कहता है कि अगर विचाराधीन कैदी जमानत मिलने के सात दिनों के भीतर रिहा नहीं होते हैं तो जेल अधीक्षक को जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव को सूचित करना होगा. अदालत का कहना सचिव "कैदी के साथ बातचीत करने और उसकी रिहाई के लिए हर तरह से संभव मदद करने के लिए पैरा लीगल वॉलंटियर या जेल विजिटिंग एडवोकेट की प्रतिनियुक्ति कर सकता है."

अदालत ने कहा कि नेशनल प्रीजन पोर्टल, जिसके पास देश भर की 1,300 जेलों का डेटा है, विचाराधीन कैदियों की जमानत और रिहाई की तारीखों पर नजर रखने के लिए काम कर रहा है. अगर विचाराधीन कैदियों को सात दिनों में जेल से बाहर नहीं निकलने दिया जाता है, तो जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव को डिफॉल्ट रूप से एक ई-मेल भेजने का प्रावधान किया जा सकता है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सचिव कैदी की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों पर एक रिपोर्ट तैयार कर सकता है और जमानत की शर्तों में ढील देने के लिए संबंधित अदालत के समक्ष रख सकता है.

राष्ट्रपति ने उठाया था मुद्दा

दरअसल पिछले साल 26 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट में अपने पहले संविधान दिवस संबोधन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने गरीब आदिवासियों के जेलों में बंद रहने का मुद्दा उठाया था. उन्होंने आदिवासी इलाकों में उनकी दुर्दशा पर रोशनी डालते हुए कहा था कि जमानत राशि भरने के लिए पैसे की कमी के कारण वे जमानत मिलने के बावजूद जेलों में बंद हैं. राष्ट्रपति ने न्यायपालिका से गरीब आदिवासियों के लिए कुछ करने का आग्रह किया था.

राष्ट्रपति के भाषण के तीन दिन बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर बड़ा कदम उठाया था . कोर्ट ने विचाराधीन कैदियों की शीघ्र रिहाई सुनिश्चित करने के लिए सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को ऐसे कैदियों पर डेटा इकट्ठा करने का निर्देश दिया, जिन्हें जमानत तो मिल गई है, लेकिन वे इसकी शर्तों का पालन करने में असमर्थता के कारण जेल से बाहर नहीं आ सकते हैं.

बढ़ रही है विचाराधीन कैदियों की संख्या

गृह मंत्रालय द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट प्रिजन स्टैटिस्टिक्स इंडिया 2021 के अनुसार 2016-2021 के बीच जेलों में बंदियों की संख्या में 9.5 प्रतिशत की कमी आई है जबकि विचाराधीन कैदियों की संख्या में 45.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. रिपोर्ट के मुताबिक चार में से तीन कैदी विचाराधीन हैं. 31 दिसंबर 2021 तक लगभग 80 प्रतिशत कैदियों को एक वर्ष तक की अवधि के लिए जेलों में बंद रखा गया. रिपोर्ट में कहा गया है कि 2021 में रिहा किए गए 95 प्रतिशत विचाराधीन कैदियों को अदालतों ने जमानत दे दी थी, जबकि अदालत द्वारा बरी किए जाने पर केवल 1.6 प्रतिशत को रिहा किया गया था.

ऐसा माना जा रहा है कि राष्ट्रपति के भावुक भाषण के बाद सरकार ने बजट में गरीब कैदियों की सुध ली है और ऐसे में उनकी जेलों से बाहर आने का रास्ता भविष्य में आसान हो सकता है.