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कभी कांग्रेस का गढ़ रहे फूलपुर और इलाहाबाद का चुनावी माहौल

समीरात्मज मिश्र
२३ मई २०२४

फूलपुर और इलाहाबाद संसदीय सीटें कभी कांग्रेस पार्टी का गढ़ होती थीं. लेकिन पिछले 40 साल से यहां कांग्रेस पार्टी जीत के लिए तरस रही है. इस बार बीजेपी के मुकाबले कैसी है इंडिया गठबंधन की स्थिति, पढ़िए ग्राउंड रिपोर्ट में.

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यूपी समेत लगभग पूरे उत्तर भारत में चुनाव के मौसम में भीषण गर्मी पड़ रही है
यूपी समेत लगभग पूरे उत्तर भारत में चुनाव के मौसम में भीषण गर्मी पड़ रही है तस्वीर: Rajesh Kumar Singh/AP/picture alliance

शाम के करीब पांच बज रहे हैं. 45 डिग्री सेल्सियस की झुलसा देने वाली गर्मी और धूप थोड़ी मद्धिम पड़ रही है. इलाहाबाद (अब प्रयागराज) शहर के पुराने इलाके लोकनाथ में खाने-पीने की दुकानों में धीरे-धीरे भीड़ लगनी शुरू होती है. ज्यादातर लोग यहां की मशहूर लस्सी पीने के लिए दशकों पुरानी (कुछ तो करीब सौ साल पुरानी) दुकानों की ओर बढ़ रहे हैं.

यहां मतदान छठे चरण में 25 मई को होना है लेकिन चुनावी सरगर्मी बहुत ज्यादा नहीं दिख रही है. न तो पोस्टर, न बैनर, न उम्मीदवारों का प्रचार करती गाड़ियां और लाउड स्पीकर और न ही जनसंपर्क करते नेता और उनके अनुयायी. पर, चुनावी चर्चा शुरू होते ही लोग दिलचस्पी दिखाने लगते हैं. करीब अस्सी वर्षीय बुजुर्ग मोहन लाल कहते हैं, "मैंने अपनी पूरी जिंदगी में मोदी जैसा नेता नहीं देखा. इतना काम करने वाला, सबकी सुनने वाला.”

बुजुर्ग की बातों का समर्थन और लोग भी करते हैं लेकिन तभी अंकज सोनकर वहां पहुंचते हैं और कहते हैं कि जो लोग योगी-मोदी की तारीफ कर रहे हैं, वो पुलिस प्रशासन से डर रहे हैं. ऐसा क्यों? यह पूछने पर वो जवाब देते हैं, "अगले ही दिन घर तोड़ दिया जाएगा.”

अंकज सोनकर आगे कहते हैं, "सड़कें चौड़ी करने में लोगों के घरों को उजाड़ दिया गया. कोई मुआवजा नहीं दिया गया. विरोध करने पर जेल भेजने तक की धमकी दी गई. सभी लोग इस सरकार से परेशान हैं. न तो नौकरी है और न ही व्यापार.”

हालांकि पास ही में ठेले पर सब्जी की दुकान लगाए रामकिशोर गुप्ता कहते हैं, "महंगाई वहंगाई अपनी जगह है लेकिन सबसे बड़ी बात है कि इस सरकार में हम सुरक्षित हैं. किसी का डर नहीं. कोई बदमाशी करता भी है तो शिकायत करने पर तुरंत मदद मिलती है.”

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज (पहले इलाहाबाद) में छठे चरण में मतदान होना है
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज (पहले इलाहाबाद) में छठे चरण में मतदान होना हैतस्वीर: Samiratmaj Mishra/DW

राजनीतिक दांव पेंच से भरी इलाहाबाद की राजनीति

लोकनाथ का यह इलाका इलाहाबाद संसदीय सीट के तहत आने वाली विधानसभा इलाहाबाद शहर दक्षिणी के तहत आता है और मौजूदा समय में यहां के विधायक नंद लाल गुप्ता नंदी हैं जो राज्य में कैबिनेट मंत्री हैं. बीजेपी में आने से पहले वो कांग्रेस में थे और उससे पहले बहुजन समाज पार्टी में. भारतीय जनता पार्टी ने इस बार यहां से नीरज त्रिपाठी को उम्मीदवार बनाया है जबकि इंडिया गठबंधन की ओर से उज्ज्वल रमण सिंह कांग्रेस के उम्मीदवार हैं.

नीरज त्रिपाठी इलाहाबाद हाईकोर्ट में वकील हैं, राज्य के अपर महाधिवक्ता रहे हैं, राजनीति में नए हैं लेकिन उनके पिता केसरीनाथ त्रिपाठी बीजेपी के बड़े नेता थे. यूपी में मंत्री और विधानसभा अध्यक्ष रहे और बाद में पश्चिम बंगाल के गवर्नर. पिछले साल उनका निधन हो गया था. उज्ज्वल रमण सिंह यूपी में मंत्री रहे हैं. उनके पिता रेवती रमण यूपी के बड़े समाजवादी नेताओं में गिने जाते हैं. कई बार विधायक, सांसद और राज्य में मंत्री रहे हैं.

रमेश पुरवार कहते हैं, "नीरज त्रिपाठी के पास अपना कोई वोट नहीं है. इन्हें सिर्फ बीजेपी का ही वोट मिलेगा. लड़ाई कठिन है. बीजेपी के भीतर भी तमाम लोग उनके विरोध में हैं.” पुरवार की बात इसलिए मायने रखती है क्योंकि वो जिस इलाके में रहते हैं वो बीजेपी का गढ़ कहा जाता है. लेकिन यदि लड़ाई को यहां भी ‘कठिन' के तौर पर देखा जा रहा है तो लड़ाई को समझा जा सकता है.

इलाहाबाद सीट के तहत इलाहाबाद शहर दक्षिणी के अलावा बारा, मेजा, करछना और कोरांव विधानसभा सीटें आती हैं. मौजूदा समय में तीन सीटों पर बीजेपी, एक पर उसकी सहयोगी अपना दल और एक सीट समाजवादी पार्टी के पास है. इलाहाबाद संसदीय सीट से मौजूदा समय में बीजेपी की रीता बहुगुणा जोशी सांसद हैं जिन्हें पार्टी ने इस बार टिकट नहीं दिया. यहां मुख्य लड़ाई समाजवादी पार्टी के उज्ज्वल रमण सिंह, बीजेपी के नीरज त्रिपाठी और बीएसपी के रमेश पटेल के बीच है.

कैसी है कांग्रेस की हालत

कभी कांग्रेस का गढ़ रहे इस इलाके में कांग्रेस की स्थिति का अनुमान उसके पार्टी कार्यालय से लगाया जा सकता है जो पार्टी से भी ज्यादा बदहाल है. हालांकि लोकनाथ के इलाके में लोग बीजेपी की चर्चा भले ही कर रहे थे लेकिन शहर के सिविल लाइंस इलाके में ट्रेड यूनियन के नेता सुभाष पांडेय कहते हैं कि यहां बीजेपी की दाल नहीं गलेगी क्योंकि इलाहाबाद पढ़े-लिखे लोगों का क्षेत्र है. वो कहते हैं, "इस संसदीय सीट के तहत हाईकोर्ट, एजी ऑफिस, तमाम और ऑफिस आते हैं और उनमें काम करने वाले लोग यहां के वोटर हैं. कर्मचारी और व्यापारी के अलावा छात्र भी परेशान हैं और ये लोग वोट के जरिए बीजेपी को तगड़ी चोट देने की तैयारी में हैं.”

इलाहाबाद संसदीय सीट से देश के कई दिग्गज नेता चुनाव लड़ चुके हैं और कुछ तो देश के प्रधानमंत्री भी बने हैं. लालबहादुर शास्त्री और विश्वनाथ प्रताप सिंह के अलावा जनेश्वर मिश्र, हेमवती नंदन बहुगुणा, अमिताभ बच्चन, मुरली मनोहर जोशी जैसे दिग्गज यहां से चुनाव जीत चुके हैं. 1984 में अमिताभ बच्चन के बाद कांग्रेस पार्टी यहां से कोई चुनाव नहीं जीत सकी. इसके बाद से इस संसदीय सीट पर या तो बीजेपी का कब्जा रहा या फिर समाजवादी पार्टी. उज्ज्वल रमण सिंह समाजवादी पार्टी में ही रहे लेकिन इस बार वो कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर यहां से प्रत्याशी हैं.

नेहरू की फूलपुर सीट का राजनीतिक तराजू

प्रयागराज जिले की ही दूसरी महत्वपूर्ण सीट है फूलपुर. इस सीट से पहले सांसद के तौर पर देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू सांसद बने थे और वो आजीवन इसी सीट से चुनाव लड़े. इस सीट ने कई बार अप्रत्याशित परिणाम भी दिए हैं और कई दिग्गजों को धूल भी चटाई है. भारतीय जनता पार्टी को यहां पहली बार 2014 में जीत हासिल हुई थी. हालांकि उपचुनाव में यह सीट फिर उसके हाथ से चली गई लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने दोबारा यहां जीत हासिल की.

बीजेपी ने इस सीट पर भी उम्मीदवार बदल दिया है और फूलपुर से ही विधायक प्रवीण पटेल को अपना उम्मीदवार बनाया है जबकि इंडिया गठबंधन से समाजवादी पार्टी के अमरनाथ मौर्य और बीएसपी से जगन्नाथ पाल उम्मीदवार हैं.

1962 में जवाहर लाल नेहरू का विजय रथ को रोकने के लिए प्रख्यात समाजवादी नेता डॉक्टर राम मनोहर लोहिया खुद फूलपुर से लड़ने आए लेकिन उनकी करारी हार हुई. इलाहाबाद के कांग्रेस नेता और इलाहाबाद विश्वविद्यालय में छात्र नेता रहे अभय अवस्थी उस चुनाव के बारे में बताते हैं, "लोहिया जी को यह पता था कि नेहरू के खिलाफ वो चुनाव नहीं जीतेंगे लेकिन लोकतंत्र में वैचारिक विरोध का क्या महत्व है, यह बताने के लिए उन्होंने नेहरू के खिलाफ चुनाव लड़ा. नतीजा वही हुआ. लोहिया चुनाव हार गए लेकिन नेहरू ने ही उन्हें राज्यसभा पहुंचाने में मदद की. नेहरू का मानना था कि लोहिया जैसे आलोचक का संसद में होना बेहद जरूरी है, तभी लोकतंत्र मजबूत बनेगा. आज की राजनीति में विरोध और समर्थन की यह राजनीति दुर्लभ हो गई है."

नेहरू के बाद इस सीट का संसद में प्रतिनिधित्व विजय लक्ष्मी पंडित, कमला बहुगुणा, जनेश्वर मिश्र, विश्वनाथ प्रताप सिंह जैसे नेताओं ने किया और ज्यादातर यहां से कांग्रेस के ही नेता जीतते रहे. इस सीट से हारने वाले दिग्गजों की भी कमी नहीं है. राम मनोहल लोहिया के अलावा जनेश्वर मिश्र, बीएसपी के संस्थापक कांशीराम, अपना दल के संस्थापक सोनेलाल पटेल जैसे दिग्गज यहां से चुनाव हार भी चुके हैं.

सन 1984 में हुए चुनाव में कांग्रेस के रामपूजन पटेल ने कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर इस सीट पर आखिरी जीत हासिल की थी. हालांकि रामपूजन पटेल कांग्रेस से चुनाव जीतने के बाद जनता दल में शामिल हो गए और 1989 और 1991 का चुनाव उन्होंने जनता दल के टिकट पर ही जीता. लेकिन 1989 के बाद से कांग्रेस पार्टी आज तक इस सीट को जीत नहीं पाई. हां, पंडित नेहरू के बाद इस सीट पर लगातार तीन बार यानी हैट्रिक लगाने का रिकॉर्ड रामपूजन पटेल ने ही बनाया था.

फाफामऊ के रहने वाले मनोज कुमार शुक्ल कहते हैं कि यहां लड़ाई तो बीजेपी और समाजवादी पार्टी के बीच ही है लेकिन छुट्टियों के कारण तमाम लोग घर चले गए हैं और इसमें ज्यादातर बीजेपी के ही वोटर हैं. ऐसे में बीजेपी को वोट हो सकता है कम पड़ें और समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार को फायदा मिले.

वहीं फाफामऊ इलाके के ही रहने वाले सूरज पटेल कहते हैं कि अखिलेश यादव और राहुल गांधी की जनसभा में आई भीड़ और उत्साह देखकर लगता है कि इंडिया गठबंधन इस बार भारी पड़ रहा है.

यह पूछने पर कि क्या मोदी के नाम पर लोग बीजेपी को वोट नहीं देंगे? सूरज पटेल का जवाब था, "जो वोट मिलेगा वो उन्हीं के नाम पर मिलेगा. इसके अलावा लोगों को इस सरकार से ऐसा क्या मिला है जो उन्हें वोट करें?”