चीन से बढ़ते आयात पर भारत खुश हो या चिंतित!
१९ सितम्बर २०२४पिछले हफ्ते जब भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि भारत और चीन के बीच आर्थिक संबंधों में संतुलन की कमी है और व्यापार घाटा बढ़ रहा है, तब भारत सरकार चीनी कंपनियों को भारत में निवेश और निर्यात करने के लिए और ज्यादा सुविधाएं देने पर विचार कर रही थी.
जयशंकर ने जिनेवा में ग्लोबल सेंटर फॉर सिक्योरिटी पॉलिसी में एक भाषण के दौरान कहा, "हमें लगता है कि चीन के साथ आर्थिक संबंध बहुत ही अन्यायपूर्ण और असंतुलित रहे हैं. वहां हमारे समान को बाजार में पहुंच नहीं मिलती, जबकि चीन को भारत में बहुत बेहतर बाजार पहुंच प्राप्त है.”
जयशंकर की यह शिकायत आंकड़ों में बहुत साफ नजर आती है. बीते वित्त वर्ष में चीनी आयात 100 अरब डॉलर को पार कर गया और इस साल इसके और बढ़ने की संभावना है. इसके उलट पिछले वित्त वर्ष में भारत ने चीन को मुश्किल से 16 अरब डॉलर का निर्यात किया था. वित्त वर्ष 2024-25 के पहले सात महीनों में चीन से आयात 60 अरब डॉलर को पार कर चुका है, जो पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में 10 फीसदी ज्यादा है.
बढ़ते व्यापार घाटे से चिंता
इस व्यापार घाटे को लेकर भारत चिंतित तो है लेकिन इसके बावजूद सरकार चीन पर हाल के सालों में लगाए गए कई प्रतिबंधों को ढीला करने की योजना बना रही है. हाल ही में समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने खबर दी थी कि भारत सरकार अब एक नई योजना पर काम कर रही है जिसमें 10 फीसदी तक चीनी हिस्सेदारी वाले निवेशक को अब सरकारी मंजूरी की जरूरत नहीं होगी. इससे बहुराष्ट्रीय कंपनियों को आसानी से भारत में निवेश करने में मदद मिलेगी.
सरकार सुरक्षा चिंताओं को दूर करने के लिए एक ‘पोस्ट-इन्वेस्टमेंट मॉनिटरिंग' ढांचा भी स्थापित करने की योजना बना रही है. इस कदम से भी चीनी निवेशक भारत की ओर आकर्षित होंगे, जो विशेषज्ञों के मुताबिक भारत को उच्च-प्रौद्योगिकी क्षेत्रों जैसे सौर सेल, ईवी और बैटरी निर्माण में वैश्विक सप्लाई चेन में शामिल होने के लिए महत्वपूर्ण है.
भारत ने पहले ही चीनी नागरिकों के लिए वीजा जारी करने की प्रक्रिया को आसान किया है और उन क्षेत्रों के लिए चीनी इंजीनियरों की वीजा मंजूरी की रफ्तार बढ़ाई है जिन्हें स्थानीय उत्पादन के लिए केंद्रीय सब्सिडी मिलती है.
दुविधा के दौर में भारत
दरअसल, चीन को लेकर भारत इस समय दुविधा के दौर में है. एक तरफ उसके भू-राजनीतिक विवाद हैं जो उसे चीन से दूरी बढ़ाने और प्रतिबंध लगाने पर मजबूर करते हैं, जबकि दूसरी तरफ उसकी ग्लोबल फैक्ट्री बनने की महत्वाकांक्षाएं हैं जिनके लिए उसे कच्चा माल, निवेश और आधुनिक तकनीक तीनों की जरूरत है, जिसका सबसे बड़ा और सस्ता सप्लायर चीन है.
इंटरनेशनल काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इकोनॉमिक रिलेशंस (आईसीआरआईईआर) में प्रोफेसर और अंतरराष्ट्रीय व्यापार विशेषज्ञ डॉ. शाउन रे कहती हैं कि चीन के बिना तो फिलहाल काम नहीं चल सकता. डीडब्ल्यू हिंदी से बातचीत में डॉ. रे ने कहा, "भारत के घरेलू बाजार में मांग बढ़ रही है. और विदेशों में भी भारत में बने माल की मांग बढ़ रही है. खासतौर पर सौर ऊर्जा, बैटरी, इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और इलेक्ट्रिक व्हीकल जैसे उत्पादों में. उसके लिए भारत को ना सिर्फ कच्चा माल चाहिए बल्कि निवेश और तकनीक भी चाहिए. समस्या यह है कि इस वक्त चीन सबसे सस्ता सप्लायर है और व्यापार का सिद्धांत है कि लागत कम करो. इसलिए चीन पर निर्भरता एक मजबूरी है.”
चीन पर निर्भरता बहुत से देशों की चिंता है और इसे कम करने के लिए जर्मनी जैसे देशों की कंपनियांकई उपाय कर रही हैं. हाल के सालों में भारत ने अपने यहां निर्माण और उत्पादन की क्षमता में तेजी से वृद्धि की है. जुलाई में खत्म हुई तिमाही में औद्योगिक उत्पादन में सालाना आधार पर 4.8 फीसदी की वृद्धि हुई. मैन्युफैक्चरिंग में 4.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जिसमें विशेष रूप से इलेक्ट्रिकल उपकरण (28.3 प्रतिशत), मशीनरी और उपकरणों को छोड़कर तैयार धातु उत्पाद (11 फीसदी) और अन्य परिवहन उपकरण (25.5 फीसदी) में बड़ी वृद्धि देखी गई.
‘मेक इन इंडिया' योजना के तहत भारत ने विदेशी कंपनियों को भारत में निर्माण के लिए पूरे जोर-शोर से आमंत्रित किया है. इसमें कामयाबी भी मिली है. जैसे कि एप्पल के आईफोन को भारत में बनाने के लिए तैयार किया गया. लेकिन इस तरह की योजनाओं में भी पृष्ठभूमि में चीन की मौजूदगी रही है. एप्पल भारत में निर्माण के लिए तब राजी हुआ जब चीनी सप्लायरों और भारतीय कंपनियों के बीच संयुक्त उपक्रमों को मंजूरी मिली. इसके चलते एप्पल ने आईफोन असेंबली का 14 फीसदी कारोबार भारत में स्थानांतरित कर दिया.
इस बात को अब उद्योग जगत भी समझ रहा है जो काफी समय तक चीन से आयात पर सख्ती बरतने का समर्थक रहा है. जिंदल स्टील एंड पावर के प्रमुख और सांसद नवीन जिंदल ने चीनी स्टील पर टैक्स का समर्थन किया है लेकिन व्यापार के लिए एक व्यावहारिक नजरिया अपनाने की बात कही है. हाल ही में मीडिया से बातचीत में जिंदल ने कहा, "बहुत सी स्टील कंपनियां चीन से उपकरण और टेक्नॉलोजी आयात करती हैं. चीन स्टील का सबसे बड़ा उत्पादक है और कुछ क्षेत्रों में वे बहुत अच्छे हैं.”
एक तरह का निवेश है व्यापार घाटा
विशेषज्ञ मानते हैं कि इस वक्त अगर चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा बढ़ रहा है तो इसे भविष्य के लिए एक निवेश भी माना जा सकता है. डॉ. शाउन रे सौर ऊर्जा उद्योग की मिसाल देती हैं, जिसमें भारत ने उत्पादन बढ़ाने पर विनिर्माताओं को अतिरिक्त सुविधाएं देने के लिए प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) जैसी योजना लागू कर रखी है.
डॉ. रे कहती हैं, "सौर ऊर्जा बढ़ाने के लिए हमें सोलर सेल, बैटरी और मॉड्यूल की जरूरत है. पहले हम यह सब चीन से मंगाते थे. अब जबसे पीएलआई आई है, भारत में उत्पादन बढ़ा है. लेकिन सच्चाई यह भी है कि घरेलू निर्माण भी मांग को पूरा नहीं कर पा रहा है और अब हम सुन रहे हैं कि इस क्षेत्र में चीनी निवेश को मंजूरी देने पर विचार किया जा रहा है.”
डॉ. रे इस बात की ओर भी इशारा करती हैं कि चीन से निर्यात भले ही बढ़ गया हो लेकिन उसकी प्रकृति में बदलाव हुआ है. वह कहती हैं, "पहले हम घरेलू बाजार की मांग पूरी करने के लिए आयात करते थे. जैसे प्लास्टिक का सामान, इलेक्ट्रॉनिक्स सामान और छोटे-मोटे पुर्जे भी आयात होते थे. अब जो आयात हो रहा है, वह निर्माण से जुड़ा है. यह निर्माण चीन को भले ना निर्यात होता हो, पर भारत अन्य देशों के साथ समझौते कर रहा है, जिनसे उन देशों को भारत का निर्यात बढ़ेगा. इस लिहाज से देखा जाए तो शॉर्ट टर्म में बजट घाटा इतनी बुरी बात नहीं है.”
भविष्य की चुनौतियां
चीन के साथ बढ़ते व्यापार घाटे को लेकर विशेषज्ञ दो चुनौतियों की ओर ध्यान दिलाते हैं. एक तो भारतीय बाजार में चीनी मांग का लगातार बढ़ते जाना. 2020 में सीमा पर हुए तनाव के बाद भारत ने चीनी कंपनियों पर कई तरह की पाबंदियां लगाई थीं. लेकिन उससे भारतीय बाजार में चीनी उत्पादों की मांग कम नहीं हुई, उलटा भारत में निवेश कम हो गया. दूसरी चुनौती चीन पर लंबे समय तक निर्भरता से जुड़े खतरे हैं, क्योंकि कोविड महामारी में दुनिया ने यह सीखा है कि सप्लाई चेन के लिए एक ही देश पर निर्भर रहना खतरनाक हो सकता है. इसके अलावा सुरक्षा के खतरे भी हैं, जिस कारण विभिन्न देश चीनी उत्पादों पर प्रतिबंध लगा रहे हैं. जैसे कि भारत ने चीन से ड्रोन विमानों के पुर्जे आयात करने पर पिछले साल प्रतिबंध लगा दिया था.
डॉ. रे कहती हैं, "भारत को शॉर्ट टर्म और लॉन्ग टर्म फायदे और नुकसान के लिहाज से सोचना होगा. जरूरत इस बात की है कि उसे अपनी क्षमताएं बढ़ाने पर ध्यान देन होगा. जरूरी यह है कि भारत की अपनी क्षमताएं बढ़ें और तभी चीन पर निर्भरता कम हो सकेगी. और ऐसा एक सिलसिलेवार तरीके से करना होगा, ना कि अचानक यह कह देना कि अब हम ऐसा नहीं करेंगे.”