अम्फान तूफान की तबाही के बाद सुंदरबन
शक्तिशाली चक्रवात अम्फान ने पश्चिम बंगाल के सुंदरबन को करीब-करीब बर्बाद कर दिया है. मैंग्रोव के हजारों पेड़ जड़ से उखड़ गए हैं. अब बस तबाही के बाद का मंजर बचा है. घरों के साथ सपने भी टूट गए हैं.
कुछ नहीं बचा
टूटी फूटी सड़क के किनारे बैठी इस 70 वर्षीय महिला ने अम्फान में अपना घर खो दिया. वह बताती है कि तूफान के कारण उसके रिश्तेदारों की भी मौत हो गई है. अब उसके पास सिर्फ एक भेड़ बची है.
गांव के अंदर तक नदी
सुंदरबन अपनी जैविक विविधता के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है. चाहे बात मैंग्रोव के जंगल की हो या फिर रॉयल बंगाल टाइगर की. इन्हीं विविधताओं की वजह से इसका नाम यूनेस्को की विश्व धरोहरों की सूची में भी शामिल है.अम्फान ने अब इसकी शक्ल ही बदल डाली है.
गांव के गांव बर्बाद
ज्वार-भाटा के समय नदी का पानी गांवों के अंदर तक घुस जाता है. खारे पानी से खाने-पीने का सामान बर्बाद हो जाता है. खेती की जमीन को भी नुकसान पहुंचा है.
मलबा
यह अम्फान के आने से पहले तक गांव हुआ करता था. तूफान के साथ हवा और पानी ने सबकुछ तहस नहस कर दिया. खारा पानी घुस जाने की वजह से निकट भविष्य में खेती करना असंभव है. क्षेत्र के ज्यादातर बांध या तो टूट चुके हैं या फिर बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुके हैं.
तालाब में खारा पानी
तालाब के ताजे पानी में मछली की खेती की जाती थी, लेकिन अम्फान के बाद तालाबों में खारा पानी आ गया और मछलियां मर गईं. मछली पालन करने वालों के सामने रोजगार का संकट पैदा हो गया है.
जीवन का अंत !
सुंदरबन में पहले लॉकडाउन फिर अम्फान ने वहां रहने वाले लोगों के सामने रोजगार को लेकर नई चुनौती पैदा कर दी है. अब यहां के लोग खेती कर पाने में भी असक्षम होते दिख रहे हैं.
हैंडपंप में भी खारा पानी
गांव के कई हैंडपंपों में खारा पानी आने लगा है. राहत की बात यह है कि इस हैंडपंप में पानी थोड़ा अच्छा है.
राहत का काम
सुंदरबन में सरकारी और निजी पहल से राहत कार्य चल रहे हैं. लोग अनाज के लिए कतारों में लगते हैं लेकिन लोगों की संख्या के सामने संसाधन कम पड़ जाते हैं.
मौत का डर खत्म!
अम्फान के पहले लोग कोरोना वायरस को लेकर सहमे हुए थे लेकिन अब लोग कोरोना वायरस को भूल गए हैं और जीवन को फिर से पटरी पर लाने के लिए जुटे हुए हैं.
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