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विज्ञानसंयुक्त राज्य अमेरिका

बन गई अब तक की सबसे सटीक घड़ी

१७ फ़रवरी २०२२

अमेरिकी वैज्ञानिकों ने अब तक की सबसे सटीक घड़ी बनाई है. यह घड़ी मिलीमीटर के हिसाब से टाइम का फर्क बता सकती है. और आइंस्टाइन का सिद्धांत एक बार फिर सबसे सटीकता से साबित हुआ.

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प्रतीकात्म तस्वीर, लंदन का मशहूर बिग बेन
प्रतीकात्म तस्वीर, लंदन का मशहूर बिग बेन तस्वीर: Martin Pope/Getty Images

आइंस्टाइन का सापेक्षता सिद्धांत कहता है कि पृथ्वी जैसी विशाल वस्तु सीधे नहीं बल्कि घुमावदार रास्ते पर चलती है जिससे समय की गति भी बदलती है. इसलिए अगर कोई व्यक्ति पहाड़ी की चोटी पर रहता है तो उसके लिए समय, समुद्र की गहराई पर रहने वाले व्यक्ति की तुलना में तेज चलता है.

अमेरिकी वैज्ञानिकों ने इस सिद्धांत को अब तक के सबसे कम स्केल पर मापा है, और सही पाया है. उन्होंने अपने प्रयोग में पाया कि अलग-अलग जगहों पर ऊंचाई के साथ घड़ियों की टिक-टिक मिलीमीटर के भी अंश के बराबर बदल जाती है.

नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ स्टैंडर्ड्स एंड टेक्नोलॉजी (NIST) और बोल्डर स्थित कॉलराडो यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाले जुन ये कहते हैं कि उन्होंने जिस घड़ी पर यह प्रयोग किया है, वह अब तक की सबसे सटीक घड़ी है. जुन ये कहते हैं कि यह नई घड़ी क्वॉन्टम मकैनिक्स के लिए कई नई खोजों के रास्ते खोल सकती है.

जुन ये और उनके साथियों का शोध प्रतिष्ठित विज्ञान पत्रिका नेचर में छपा है. इस शोध में उन्होंने बताया है कि कैसे उन्होंने इस वक्त उपलब्ध एटोमिक क्लॉक से 50 गुना ज्यादा सटीक घड़ी बनाने में कामयाबी हासिल की.

कैसे साबित हुआ सापेक्षता का सिद्धांत

एटोमिक घड़ियों की खोज के बाद ही 1915 में दिया गया आइंस्टाइन का सिद्धांत साबित हो पाया था.  शुरुआती प्रयोग 1976 में हुआ था जब ग्रैविटी को मापने के जरिए सिद्धांत को साबित करने की कोशिश की गई.

इसके लिए एक वायुयान को पृथ्वी के तल से 10,000 किलोमीटर ऊंचाई पर उड़ाया गया और यह साबित किया गया कि विमान में मौजूद घड़ी पृथ्वी पर मौजूद घड़ी से तेज चल रही थी. दोनों घड़ियों के बीच जो अंतर था, वह 73 वर्ष में एक सेकंड का हो जाता.

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इस प्रयोग के बाद घड़ियां सटीकता के मामले में एक दूसरे से बेहतर होती चली गईं और वे सापेक्षता के सिद्धांत को और ज्यादा बारीकी से पकड़ने के भी काबिल बनीं. 2010 में NIST के वैज्ञानिकों ने सिर्फ 33 सेंटीमीटर की ऊंचाई पर रखी घड़ी को तल पर रखी घड़ी से तेज चलते पाया.

कैसे काम करती है यह घड़ी

दरअसल, सटीकता का मसला इसलिए पैदा होता है क्योंकि अणु गुरुत्वाकर्षण से प्रभावित होते हैं. तो, सबसे बड़ी चुनौती होती है कि उन्हें गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से मुक्त किया जाए ताकि वे अपनी गति ना छोड़ें. इसके लिए NIST के शोधकर्ताओं ने अणुओं को बांधने के लिए प्रकाश के जाल प्रयोग किए, जिन्हें ऑप्टिकल लेटिस कहते हैं. 

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जुन ये की बनाई नई घड़ी में पीली धातु स्ट्रोन्टियम के एक लाख अणु एक के ऊपर एक करके परतों में रखे जाते हैं. इनकी कुल ऊंचाई लगभग एक मिलीमीटर होती है. यह घड़ी इतनी सटीक है कि जब वैज्ञानिकों ने अणुओं के इस ढेर को दो हिस्सों में बांटा तब भी वे दोनों के बीच समय का अंतर देख सकते थे.

सटीकता के इस स्तर पर घड़ियों सेंसर की तरह काम करती हैं. जुन ये बताते हैं, "स्पेस और टाइम आपस में जुड़े हुए हैं. और जब समय को इतनी सटीकता से मापा जा सके, तो आप समय को वास्तविकता में बदलते हुए देख सकते हैं.”

वीके/एए (एएफपी)

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