500 साल तक जीने वाले इस जीव की लंबी उम्र का राज क्या है
शार्कों की एक विलक्षण प्रजाति है, ग्रीनलैंड शार्क. खूब बड़ी, खूब भारी और काफी सुस्त ग्रीनलैंड शार्क खूब जीते हैं. इनकी जिंदगी 500 साल लंबी हो सकती है. वो क्या चीज है, जो इस जीव को इतना दीर्घायु बनाती है?
शार्क, जिसके नाम में ही है ऊंघना
ग्रीनलैंड शार्क के कई प्रचलित नाम हैं, जैसे स्लीपर शार्क और ग्रे शार्क. वैज्ञानिकों का दिया नाम है, सोम्नीओसस माइक्रोसैफलस. इसका मतलब है, स्मॉलहेड स्लीपर. ये बहुत ही ज्यादा सुस्त होते हैं, सबसे धीमा तैरने वाले शार्कों में से एक. सेंट लॉरेंस शॉर्क ऑब्जरवेट्री के मुताबिक, इनकी औसत रफ्तार 0.3 मीटर प्रति सेकेंड है. ये आमतौर पर ग्रीनलैंड, आइसलैंड, नॉर्वे और कनाडा में पाए जाते हैं.
बर्फीले पानी की शौकीन
ग्रीनलैंड शार्क को रहने के लिए दो किस्म का माहौल बड़ा भाता है. बर्फीला पानी और समंदर की गहराई. यह माइनस 2 से माइनस 7 डिग्री सेल्सियस के तापमान में रह सकती है. नैशनल ओशन सर्विस के मुताबिक, ये शार्क की अकेली प्रजाति है जो आर्कटिक के ठंडे पानी को सालभर बर्दाश्त कर सकती है. गहराई में पहुंचने की ताकत तो पूछिए मत. ये 6,500 फीट तक की गहराई में गोता लगा सकते हैं.
बहुत धीमे-धीमे बढ़ता है आकार
इनकी लंबाई यूं बढ़ती है, मानो शरीर को कोई जल्दी ना हो. सालभर में एक सेंटीमीटर से भी कम. हालांकि, बढ़ते-बढ़ते ये 21 फीट तक पहुंच सकते हैं. इनकी लंबाई बढ़ने की रफ्तार मापना जरा टेढ़ी खीर है. इसलिए कि ग्रीनलैंड शार्क दोबारा बहुत दुर्लभ ही हाथ लगता है. नैशनल जिओग्रैफिक के मुताबिक, 1936 में इसके एक सदस्य को वैज्ञानिकों ने टैग लगाया था. 16 साल बाद वो फिर मिला, तो बस 2.3 इंच ही बढ़ा था.
जहरीला होता है इनका मांस
ग्रीनलैंड शार्क का मांस ताजा हो, तो जहरीला होता है. ओशन कंजरवेंसी के मुताबिक, इनका मांस खाने पर इंसानों और कुत्तों में वैसा असर देखा गया मानो शराब पी हुई हो. पहले लिवर ऑइल के लिए इनका शिकार किया जाता था, लेकिन 1960 के दशक में यह खत्म हो गया. अब तक की जानकारी में केवल स्पर्म व्हेल ही इनका शिकार करते हैं.
नजर कमजोर होती है इनकी
नैशनल जिओग्रैफिक के मुताबिक, एक खास तरह के पैरासाइट के कारण ज्यादातर ग्रीनलैंड शार्कों की नजर कमजोर होती है. पैरासाइट इसकी आंखों से चिपककर कॉर्निया को नुकसान पहुंचाते हैं. हालांकि, अपनी बाकी इंद्रियों की मदद से बर्फीली परत के नीचे घने अंधेरे में भी इन्हें कोई खास दिक्कत नहीं होती.
इतना लंबा कैसे जीते हैं ग्रीनलैंड शार्क
कुछ साल पहले वैज्ञानिकों को इस प्रजाति की एक मादा सदस्य मिली, जिसकी उम्र 400 साल थी. वैज्ञानिक जानते हैं कि ये और भी ज्यादा, करीब 500 साल तक जी सकते हैं. इतनी लंबी उम्र की वजह अब जाकर पता चली है. इसी महीने 'बायो आर्काइव' नाम के जर्नल में छपे शोध के मुताबिक, दीर्घायु होने का जवाब इनके डीएनए में छिपा है.
नकलची जीन्स से फायदा!
वैज्ञानिकों ने पाया कि ग्रीनलैंड शार्कों में बहुत बड़े जीनोम हैं. इनके शरीर में करीब 650 करोड़ डीएनए "बेस पेअर" होते हैं. इंसानों में यह संख्या लगभग 300 करोड़ ही होती है. ग्रीनलैंड शार्क के विशाल जीनोम में एक बड़ा हिस्सा रीपीटिंग जीन्स से बना है. इन "ट्रांसपोजेबल एलिमेंट्स" को सेल्फिश जेनेटिक एलिमेंट्स या पैरासिटिक डीएनए भी कहते हैं.
बेस पेअर क्या होता है?
आपने अगर डीएनए की तस्वीरें देखी हो, तो उसमें एक घुमावदार सीढ़ीनुमा आकृति होती है. इस सीढ़ी के दो लंबे डंडों के बीच जो पांव रखने वाले डंडे होते हैं, वो बेस पेअर को दर्शाते हैं. इन्हीं से जेनेटिक कोड बनता है. ये जिस सीक्वेंस में होंगे, उसी के आधार पर एक खास प्रोटीन बनेगा. ये ही प्रोटीन हमारे शरीर की अनूठी संरचना बनाते हैं.
ट्रांसपोजेबल एलिमेंट्स
पैरासिटिक डीएनए, ऐसे अनुवांशिक हिस्से हैं जो जीनोम के अन्य जीन्स की कीमत पर अपना प्रसार बढ़ा लेते हैं. रुअर यूनिवर्सिटी, बोखुम की प्रेस रिलीज के मुताबिक, ग्रीनलैंड शार्कों में 70 फीसदी से ज्यादा जीनोम ऐसे ही ट्रांसपोजेबल एलिमेंट्स से बना है. आमतौर पर जीन्स का इतना ज्यादा दोहराव जीनोम की स्थिरता को कम कर सकता है, लेकिन ग्रीनलैंड शार्क का केस दिलचस्प है.
डीएनए रीपेयरिंग में निभा रहे हैं भूमिका
इन शार्कों के जीनोम में इतने ज्यादा दोहराव से उनकी उम्र कम होती नजर नहीं आती. बल्कि, पाया गया कि कई डुप्लीकेटेड (नकल या प्रतिकृति) जीन्स डीएनए के नुकसान की मरम्मत का काम कर रहे हैं. हमारी हर एक कोशिका में, हर दिन हजारों बार डीएनए क्षतिग्रस्त होते हैं और विशेष मॉलिक्यूलर मैकेनिज्म्स लगातार उनकी मरम्मत करते हैं.
कहां के रिसर्चर हैं शामिल
रुअर यूनिवर्सिटी के मुताबिक, जीनोमों के तुलनात्मक अध्ययनों में पाया गया है कि लंबा जीने वाली प्रजातियों में डीएनए की यह मरम्मत असाधारण रूप से प्रभावशाली होती है. ग्रीनलैंड शार्कों की लंबी उम्र के राज खोलती इस स्टडी के मुख्य लेखक आर्ने जा, जर्मनी की रुअर यूनिवर्सिटी बोखुम के बायोलॉजी और बायोटेक्नॉलजी विभाग में प्रोफेसर हैं.
विकासक्रम में हाथ लगा एक तोड़!
आर्ने जा और उनके सहकर्मियों का अनुमान है कि ग्रीनलैंड शार्कों के इतना दीर्घायु होने में सेल्फिश जीन्स के विस्तार की भूमिका हो सकती है. टीम का अनुमान है कि क्रमिक विकास के दौरान ग्रीनलैंड शार्कों को ट्रांसपोजेबल एलिमेंट्स द्वारा डीएनए की स्थिरता पर पड़ने वाले नकारात्मक असर का तोड़, या कहें कि संतुलन बनाने का एक तरीका मिल गया. और ये तरीका है, ट्रांसपोजेबल एलिमेंट्स की मशीनरी को ही अगवा कर लेना.
गार्डियन ऑफ दी जीनोम
शोध में ग्रीनलैंड शार्कों के भीतर प्रोटीन पी53 में भी एक खास फेरबदल मिला. इसे "गार्डियन ऑफ दी जीनोम" भी कहा जाता है क्योंकि ये क्षतिग्रस्त डीएनए की मरम्मत कर अनुवांशिक स्थितरता बनाए रखने में बेहद अहम है. इंसानों और अन्य प्रजातियों के भीतर डीएनए में हुए नुकसानों की देखरेख के मामले में यह एक नियंत्रण केंद्र जैसी भूमिका निभाता है. इसे "ट्यूमर सप्रेसर" भी कहा जाता है.
अभी और रिसर्च की जरूरत
नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसीन के मुताबिक, पी53 की गतिविधि ट्यूमरों को बनने से रोकती है. अगर किसी इंसान को अपने माता-पिता से मिले जीन्स में पी53 जीन की एक ही सक्रिय कॉपी मिले, तो उसे कैंसर होने की आशंका बहुत बढ़ जाती है. यानी, लंबी उम्र के लिए यह बहुत अहम जीन है. हालांकि, ग्रीनलैंड शार्कों के भीतर पी53 के खास बदलाव उसकी लंबी उम्र में क्या भूमिका निभाते हैं, इसे समझने के लिए और रिसर्च की जरूरत है.