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विज्ञानफ्रांस

क्या इंसान के जीते रहने की कोई सीमा है?

२४ जनवरी २०२३

विश्व की सबसे उम्रदराज व्यक्ति की 118 वर्ष की आयु में मौत के बाद सदियों पुरानी बहस फिर से जिंदा हो गई है कि इंसान कितना लंबा जी सकता है.

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लूसिल रैंडोन 118 वर्ष तक जीती रहीं.
लूसिल रैंडोन 118 वर्ष तक जीती रहीं.तस्वीर: Florian Escoffier/abaca/dpa/picture alliance

क्या इंसान के जीने की कोई सीमा है? वह अधिकतम कितने साल तक जी सकता है? फ्रांस की लूसिल रैंडोन का पिछले हफ्ते निधन हुआ तो यह सवाल फिर से चर्चा में आ गया है. चर्च में नन रहीं रैंडोन अपने निधन के वक्त 118 साल की थीं और उन्हें दुनिया की सबसे उम्रदराज व्यक्ति होने का तमगा हासिल था. गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स के मुताबिक अब यह उपाधि स्पेन की मरिया ब्रानयास मोरेरा के पास चली गई है जो 115 साल की हैं.

18वीं सदी में फ्रांसीसी नैचरलिस्ट जॉर्जेस-लुआ लेसलेर्क ने एक सिद्धांत दिया था कि यदि कोई व्यक्ति ताउम्र बीमार ना हो और उसके साथ कोई हादसा ना हो तो वह अधिकतम 100 वर्ष तक जी सकता है. उस बात को सदियां बीत गई हैं और तब से चिकित्सा विज्ञान ने अद्भुत प्रगति की है. इस कारण मनुष्य की जीवन अवधि करीब दो दशक तक बढ़ गई है.

1995 में मानवजाति ने मील का एक नया पत्थर पार किया था जब फ्रांस की जीन कैलमें ने अपना 120वां जन्मदिन मनाया था. दो साल बाद उनकी 122 वर्ष की आयु में मौत हुई और वह अब तक सबसे अधिक जीने वाली इंसान हैं.

बढ़ रहे हैं ज्यादा जीने वाले

संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि 2021 में 5,93,000 लोग ऐसे थे जिनकी उम्र 100 को पार कर चुकी थी. एक दशक पहले यह संख्या 3,53,000 थी. यानी एक दशक में ही सौ साल से ज्यादा जीने वालों की संख्या में खासी वृद्धि हो चुकी है. डेटा एजेंसी स्टैटिस्टा के मुताबिक अगले दशक में ऐसे लोगों की संख्या दोगुनी हो जाएगी जो सौ वर्ष से ज्यादा जीते हैं.

लूसिल रैंडोन जब 116 वर्ष की हुईं
लूसिल रैंडोन जब 116 वर्ष की हुईंतस्वीर: Valerie Le Parc/MAXPPP/dpa/picture alliance

1980 के दशक से ही सौ साल से ज्यादा जीने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है और लेसलेर्क आज होते तो इस बात पर खासे हैरान होते कि कितनी बड़ी तादाद में लोग 110 साल तक जी रहे हैं. लिहाजा, यह सवाल बड़ा हो चला है कि हम कितने साल तक जी सकते हैं.

कई वैज्ञानिकों का मत है कि इंसान के जीने की एक सीमा है और उसके शारीरिक कारण हैं. यानी इंसान का शरीर एक सीमा से ज्यादा काम करता नहीं रह सकता. 2016 में नेचर पत्रिका में एक शोध छपा था जिसमें वैज्ञानिकों ने कहा था कि 1990 के दशक से मनुष्य की जीने की अवधि में कोई बदलाव नहीं हुआ है.

घट रही है संभावना

दुनिया की जनसंख्या के आंकड़ों का विश्लेषण करने पर इन शोधकर्ताओं ने पाया कि कैलमें की मौत के बाद इंसान की जीने की अवधि असल में कम हुई है, जबकि अब दुनिया में पहले से ज्यादा बुजुर्ग हैं. फ्रांसीसी जनसंख्या-विज्ञानी जीन-मरी रोबीन कहती हैं, "उन शोधकर्ताओं का निष्कर्ष था कि मनुष्य के जीने की एक कुदरती सीमा है और वह 115 वर्ष के आसपास है. लेकिन कई अन्य वैज्ञानिकों ने इस निष्कर्ष पर आपत्ति जताई है.” रोबीन फ्रांस के INSERM मेडिकल रिसर्च इंस्टिट्यूट में काम करती हैं और सौ वर्ष से ऊपर जीने वाले लोगों के अध्ययन में विशेषज्ञ हैं.

2018 में हुई एक रिसर्च में पता चला कि मृत्युदर आयु के साथ-साथ बढ़ती जाती है लेकिन 85 वर्ष के बाद यह धीमी पड़ने लगती है. 107 वर्ष के आसपास मृत्युदर हर साल 50-60 फीसदी की अधिकतम ऊंचाई को छू लेती है. रोबीन कहती हैं, "इस सिद्धांत पर चलें तो 110 साल के 12 लोगों में से छह 111 साल तक जिएंगे और तीन 112 साल तक.”

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लेकिन जितने ज्यादा लोग 110 साल की आयु पार करेंगे, किसी के रिकॉर्ड आयु तक जीने की संभावना भी उतनी ही कम होती जाएगी. रोबीन समझाती हैं कि अगर 100 लोग 110 साल के होते हैं तो 50 ही 111 तक जाएंगे और 112 तक जाने में इनकी संख्या भी आधी रह जाएगी. हालांकि वह स्पष्ट करती हैं कि ‘वॉल्यूम इफेक्ट' के कारण अधिकतम जीने की कोई सीमा नहीं होगी. यानी, चूंकि अधिक लोग सौ को पार कर रहे हैं इसलिए अधिकतम सीमा तक जाने के लिए कुछ लोग हमेशा बचे रहेंगे.

क्या वाकई एक सीमा है?

इसका एक पहलू और है जो रोबीन और उनकी टीम की रिसर्च में सामने आया है. इसी साल प्रकाशित होने वाला यह शोध दिखाता है 105 साल के बाद मृत्युदर में लगातार वृद्धि हो रही है. यानी ज्यादा लोगों के ज्यादा जीने की संभावना लगातार कम हो रही है.

तो क्या इसका अर्थ यह है कि इंसान के जीने की वाकई एक अधिकतम सीमा है? रोबीन इससे भी त्तेफाक नहीं रखतीं. वह कहती हैं, "हम लगातार नई खोजें करते रहेंगे, जैसा कि हमने हमेशा किया है. और धीरे-धीरे बूढ़े लोगों की सेहत बेहतर होती जाएगी.”

फिर भी, कुछ विशेषज्ञ हैं जो किसी निष्कर्ष पर पहुंचने से बचना चाहते हैं. फ्रांसीसी जनसंख्या अध्ययन संस्थान INED की फ्रांस मेज्ले कहती हैं, "फिलहाल तो कोई सुनिश्चित जवाब नहीं है. अगर (सौ साल से ज्यादा जीने वाले लोग) बढ़ भी रहे हैं तो भी उनकी संख्या बहुत कम है और हम अब भी कोई ठोस सांख्यिकीय अनुमान नहीं लगा सकते.” यानी संभव है कि इस बात का इंतजार किया जाए कि ज्यादा से ज्यादा लोग सौ को पार करने लगें.

वीके/एए (एएफपी)

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