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समाज

चीन के साथ सीमा विवाद से परेशान कोलकाता का चाइना टाउन

प्रभाकर मणि तिवारी
२३ जून २०२०

भारत और चीन के बीच बढ़ते विवाद से मिनी चाइना कहे जाने वाले कोलकाता के चाइना टाउन में रहने वाले बेहद आशंकित हैं. उनको डर है कि कहीं 1962 वाली स्थिति न पैदा हो जाए.

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Indien chinesische Gemeinschaft in Kalkutta
तस्वीर: DW/P. Samanta

तब युद्ध के दौरान और उसके बाद उपजे हालात की वजह से हजारों की तादाद में यहां के चीनी विदेशों में बस गए थे. यहां रहने वाले ज्यादातर लोग यहीं पैदा हुए हैं और कभी चीन नहीं गए हैं. चीनी मूल के भारतीय होने के कारण दोनों देशों के बदलते आपसी रिश्तों का इन पर खासा असर पड़ता है. बीती फरवरी में चीन में कोरोना का संक्रमण तेज होने के बाद लजीजी चीनी व्यंजनों के लिए मशहूर इस इलाके के रेस्तराओं में अचानक ग्राहकों का आना थम गया था. लगभग चार महीने बाद भी हालात जस के तस हैं. बीती फरवरी से ही चीनी मूल के लोगों को कोरोना वायरस कहा जाने लगा था. आम तौर पर बुद्धिजीवी वर्ग में शुमार कोलकाता का बंगाली समुदाय भी इस मामले में संकीर्णता का परिचय दे रहा है. पहले यहां के लोगों को कोरोना वायरस कहा गया और अब चीन के साथ विवाद बढ़ने पर भी स्थानीय लोगों ने अपनी निगाहें टेढ़ी कर ली हैं.

सहमे हुए हैं चीनी मूल के लोग

चाइना टाउन में रहने वाले लोग बीते सप्ताह से ही सहमे हुए हैं. अभी कोरोना का कहर थमा भी नहीं है कि अब सीमा विवाद और सैनिकों की मौत की खबरें सामने आ गई हैं. इलाके में एक रेस्तरां चलाने वाले जॉन ली कहते हैं, "1962 की लड़ाई के समय मैं नौ साल का था. तब हमारे घरों पर पथराव हुआ था और लोगों ने हमें भारत छोड़ने की धमकी दी थी. मेरे दादा, पिता और चाचा को जेल में डाल दिया गया था. मां मुझे और छोटे भाई को लेकर दार्जिलिंग चली गई थी. हम नहीं चाहते कि दोबारा ऐसा हो. अब भारत ही हमारा देश है.” इंडियन चाइनीज यूथ एसोसिएशन के पी चुंग कहते हैं, "1962 की लड़ाई ने यहां सब कुछ हदल दिया. हम नहीं चाहते कि वैसे हालात दोबारा पैदा हों.”

1962 की भारत-चीन लड़ाई के दौरान चीनी समुदाय के ज्यादातर लोगों को गिरफ्तार तो नहीं किया गया. लेकिन उनको स्थानीय थाने में नियमित रूप से हाजिरी देने का निर्देश दिया गया था और इलाके से बाहर नहीं निकलने के निर्देश दिए गए थे. 1980 के दशक में इन पाबंदियों में ढील दी गई और दस साल बाद इनको खत्म कर दिया गया. चुंग बताते हैं कि उस लड़ाई का कोलकाता के चीनी समुदाय पर बेहद गहरा असर पड़ा था. नौकरियां नहीं मिलने की वजह से उसके बाद बड़े पैमाने पर विदेशो में पलायन शुरू हुआ और बाकी लोग होटलों के कारोबार की ओर मुड़ गए. चाइना टाउन में दुर्गापूजा, होली और दीवाली जैसे त्योहार भी धूमधाम से मनाए जाते हैं. इलाके में काली का एक मशहूर मंदिर भी है जहां प्रसाद के तौर पर चाउमीन चढ़ाया जाता है.

चीन को भारत का जवाब

"मुंहतोड़ जवाब दे भारत"

कोलकाता में दशकों से रहने वाले चीनी समुदाय के लोगों का कहना है कि भारत को चीन के अतिक्रमण का मुंहतोड़ जवाब देना चाहिए. इस मांग में इन लोगों ने बीते सप्ताह एक रैली भी निकाली थी. स्थानीय चीनियों का कहना है कि भले ही उनके पूर्वज चीन के रहने वाले थे लेकिन भारत ही उनका देश है. चीनी मूल के होने की वजह से इस समुदाय ने अपनी संस्कृति को जीवित भले रखा है लेकिन यह लोग स्थानीय त्योहार भी मनाते हैं. इनमें से ज्यादातर लोगों ने तो कभी चीन देखा तक नहीं है. पहले यहां चीनी समुदाय के लोगों की काफी तादाद थी. लेकिन 1962 के युद्ध के बाद उनका पलायन शुरू हुआ और तब ज्यादातर युवा कनाडा और आस्ट्रेलिया जैसे देशो में जाकर बस गए. 82 साल के चांग कहते हैं, "हम दिल से भारतीय हैं. चीन की हिमाकत के लिए उसे सबक सिखाना जरूरी है.”

लोगों में डर भी है. उन्हें लगता है कि कहीं चीन के साथ युद्ध छिड़ने की स्थिति में उनको स्थानीय लोगों की नाराजगी का सामना ना करना पड़े. चाइनीज इंडियन एसोसिएशन के अध्यक्ष बीन चिंग लॉ कहते हैं, "हम युद्ध नहीं, शांति चाहते हैं. हमारे समुदाय के बुजुर्गों के जेहन में 1962 की लड़ाई की यादें एकदम ताजा हैं. हम तो यहीं जन्मे और पले-बढ़े हैं. सिर्फ नाम और शक्ल-सूरत की वजह से हमारे साथ भेदभाव उचित नहीं है.” हालांकि इलाके के तृणमूल कांग्रेस नेता स्वपन समाद्दार ने समुदाय को सुरक्षा का भरोसा दिया है. वे कहते हैं, "चीनी समुदाय के लोग मौजूदा विवाद से आतंकित हैं. मैंने उनसे शांत रहने और सरकार की ओर से सुरक्षा मुहैया कराने का भरोसा दिया है.”

चाइना टाउन अपने शानदार रेस्तरां और लजीज चीनी व्यंजनों के लिए मशहूर रहा है. लेकिन बीती फरवरी से ही कोरोना संक्रमण के डर से यहां ग्राहकों का टोटा है. कभी देर रात तक गुलजार रहने वाले इस इलाके में चार महीने से वीरानी छाई है. एक रेस्तरां के मालिक मैथ्यू चेन बताते हैं, "हमें रोजाना भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है.” चाइना टाउन के गेट के पास स्थित बिग बास और किम लिंग जैसे मशहूर और बड़े रेस्तरां में तो वीकेंड के दौरान भारी भीड़ जुटती थी लेकिन अब वहां भी वीरानी ही नजर आती है. इन रेस्तरां में लंच या डिनर के लिए पहुंचने वाले ग्राहकों को खाली टेबल के लिए औसतन एक घंटे इंतजार करना पड़ता था लेकिन अब वीकेंड के दौरान भी ज्यादातर टेबलें खाली रहती हैं.

भारतीय फौज गलवान घाटी की ओर रवाना

चाइना टाउन का इतिहास

कोलकाता में चीनी समुदाय की जड़ें लगभग ढाई सौ साल पुरानी हैं.  ब्रिटिश भारत के पहले गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स के कार्यकाल के दौरान वर्ष 1778 में चीनियों का पहला जत्था कोलकाता से लगभग 65 किलोमीटर दूर डायमंड हार्बर के पास उतरा था. बाद में उन लोगों ने कलकत्ता बंदरगाह में मजदूरों के तौर पर काम शुरू किया था. उसके बाद रोजगार की तलाश में धीरे-धीरे और लोग कोलकाता आए और फिर ववे लोग यहीं के होकर रह गए. इन लोगों ने आगे चल कर डेंटिस्ट, चमड़े और सिल्क का व्यापार शुरू किया.

कई चीनियों ने महानगर के पूर्वी छोर पर अपनी टैनरियां खोल लीं. एक चीनी नागरिक यांग ताई चाओ उर्फ ने तो यहां चीनी की फैक्टरी भी लगा ली थी. वह मूल रूप से चाय का व्यापारी था. वारेन हेस्टिंग्स ने कोलकाता से लगभग 30 किलोमीटर दूर बजबज इलाके में गन्ने की खेती और चीनी मिल लगाने के लिए उसे काफी जमीन किराए पर दे दी थी. ईस्ट इंडिया कंपनी के वर्ष 1778 के रिकॉर्ड के मुताबिक टोंग को हुगली के किनारे 45 रुपये सालाना पर लगभग 650 बीघा जमीन दी गई थी.

उसने फैक्टरी में काम करने के लिए धीरे-धीरे अपने गांव से दूसरे लोगों को भी बुला लिया. यह लोग मूल रूप से दो इलाकों में बसे. कोलकाता का तिरट्टी बाजार और पूर्वी छोर पर बसा टेंगरा जो आगे चल कर चाइना टाउन के नाम से मशहूर हुआ. 2001 की जनगणना के मुताबिक कोलकाता में 1,640 चीनी थे. धीरे-धीरे यह तादाद 20 हजार से ऊपर हो गई. लेकिन 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद तस्वीर बदलने लगी. उस समय सैकड़ों चीनियों को यहां से वापस भेज दिया गया. बाकी लोग रोजगार की तलाश में यूरोप और अमेरिका का रुख करने लगे.

अब कोलकाता में चीनी मूल के लोगों की तादाद घट कर दो हजार से भी कम रह गई है. अस्सी साल के मिंग कहते हैं, "मिनी चाइना के नाम से मशहूर यह इलाका संक्रमण के गहरे दौर से गुजर रहा है. कभी यहां हमेशा चहल-पहल बनी रहती थी. लेकिन हाल के वर्षों में खासकर युवा लोगों के रोजगार की तलाश में पश्चिमी देशों में पलायन की प्रक्रिया तेज होने के कारण अब इसकी रौनक फीकी पड़ गई है.”

दरअसल, बीते चार-पांच दशकों से कोलकाता में रोजगार के लगातार घटते अवसरों की वजह से खास कर तमाम युवा किसी तरह विदेश जाने की जुगत में जुटे रहते हैं. हर महीने इनमें से कुछ लोग अमेरिका और कनाडा चले जाते हैं. अब इलाके में चीनी व्यंजनों के कुछ रेस्तरां खाने-पीने के शौकीनों में काफी लोकप्रिय हैं. लेकिन कोरोना की मार से तमाम ऐसे होटल और रेस्तरां बंदी के कगार पर पहुंच गए हैं. कोरोना वायरस के बढ़ते प्रकोप के बाद अब खाज में कोढ़ की तर्ज पर चीन के साथ बढ़ते सीमा विवाद ने इनका जीवन और मुश्किल बना दिया है.

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