गोंडा के जिलाधीश की बाल मजदूरी के खिलाफ अनोखी पहल
२३ जनवरी २०१७भारत और खासकर उत्तर प्रदेश में बाल श्रम का अभिशाप चरम पर है. यूनिसेफ के आंकड़ों के हिसाब से उत्तर प्रदेश पूरे देश में बाल श्रम के मामले में सबसे आगे है. ऐसे में प्रदेश के पूर्वांचल में स्थित एक पिछड़े हुए जनपद गोंडा के जिलाधिकारी की पहल बहुत अहम है. जिलाधिकारी आशुतोष निरंजन ने बाल श्रमिकों को गोद लेने का जिम्मा उठाया है. इसके लिए उन्होंने जिला स्तर के सभी अधिकारियों से मीटिंग कर के अपील की है कि गोंडा जनपद में जो बाल श्रमिक हैं, उन्हें गोद लेने के लिए आगे आएं. अपील का असर भी दिख रहा है. अधिकारी ऐसे बच्चों को अपना रहे हैं.
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यूनिसेफ के अनुसार भारत में 5 से 14 वर्ष तक के 1.02 करोड़ बाल श्रमिक हैं. इनमें 45 लाख लड़कियां हैं. उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा 21 लाख बाल मजदूर हैं. ऐसे में प्रदेश में बाल श्रम के उन्मूलन की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है.गोंडा जनपद में लगभग 500 बाल मजदूर हैं. इन बच्चों ने स्कूल छोड़ दिया है और घर की गरीबी के कारण काम करने को मजबूर हैं.
जिलाधिकारी आशुतोष निरंजन के अनुसार सबसे पहले उपश्रमायुक्त शमीम अख्तर ने 'सर्वोदय' नाम से इस कार्यक्रम को शुरू करने का विचार रखा. उन्होंने कहा, "अब हमने गोंडा जनपद में इसे लागू किया है. हमने सभी स्तरों के अधिकारियों से आग्रह किया है कि वे बाल मजदूरों को गोद लें. ऐसा करने से वे मजदूरी करने से बच जाएंगे और उनका जीवन भी संवर जायेगा."
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जिलाधिकारी ने शादाब नाम के बच्चे की जिम्मेदारी ली है. शादाब को स्कूल में दाखिला दिलाया गया है और उसे कॉपी, किताबें, यूनिफॉर्म आदि दिये गए हैं. शादाब के परिवार को वैकल्पिक रोजगार भी मुहैया कराया गया है. श्रमायुक्त शमीम अख्तर कहते हैं, "जब जिला स्तर के अधिकारी किसी बच्चे को गोद लेते हैं और उसकी मदद करते हैं तो उसके घर वाले भी बहुत प्रभावित होते हैं. बहुत से परिवारों ने अपने बच्चों को स्कूल भेजने का वादा किया है."
इस मुहिम से एक फायदा और हुआ है कि बड़े अधिकारी अब बच्चों से मिलने के बहाने उनके घर तक जा रहे हैं. इस तरह वे लोगों की वास्तविक परेशानियों से रूबरू हो रहे हैं. थोड़ी बहुत सड़क, गरीबों के लिए आवास, सरकारी योजनाओं का लाभ, स्थानीय सरकारी काम में मजदूरी इत्यादि का समाधान तुरंत हो जा रहा है.