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समाजभारत

नक्सली इलाके में हौसलों को उड़ान दे रहा आईपीएस अफसर

मनीष कुमार, पटना
२३ दिसम्बर २०२१

रोहतास जिले के पुलिस कप्तान आशीष भारती ने नक्सल प्रभावित इलाकों में अनूठे प्रयास किए हैं. वह युवाओं को शिक्षा की ओर ले जाने की कोशिश कर रहे हैं.

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तस्वीर: Manish Kumar/DW

बिहार का एक जिला है रोहतास, जहां डेढ़ दशक पहले तक नक्सलियों का आतंक था. इसी जिले में कैमूर पहाड़ी पर स्थित नौहट्टा प्रखंड के रेहल गांव में 15 फरवरी 2002 में डीएफओ (जिला वन पदाधिकारी) की नक्सलियों ने नृशंस हत्या कर दी थी. इस जिले के कई इलाके अभी भी नक्सलियों के प्रभाव में हैं.

नक्सली आतंक के कारण ग्रामीण इलाके की शिक्षा व्यवस्था चरमरा गई थी. स्कूल से शिक्षक व छात्र नदारद हो गए, भवन का इस्तेमाल नक्सली रात में ठहरने के लिए करते थे.

सरकार की दृढ़ इच्छाशक्ति से स्थिति बदली, कई इलाकों में नक्सली प्रभाव में कमी आई. बदलते परिवेश में यहां के बच्चों में भी पढ़ने-लिखने की ललक जगी. अब इनके हौसलों को उड़ान देने में साथ दे रहे हैं 2011 बैच के भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के अधिकारी व रोहतास जिला पुलिस के कप्तान आशीष भारती.

तस्वीरेंः 

एक बेहतर पहल करते हुए एसपी आशीष भारती ने यहां सबसे पहले अपने दफ्तर में एक पुस्तकालय की स्थापना की. एसपी के दफ्तर में लाइब्रेरी और वह भी उन युवाओं के लिए जो प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे, आखिर क्यों. इस प्रश्न के जवाब में वह कहते हैं, ‘‘कई बच्चे प्रतियोगी परीक्षाओं या अन्य सेवाओं के लिए कैरेक्टर सर्टिफिकेट बनवाने आते थे. इसकी प्रक्रिया पूरी करने के तहत उन बच्चों का काफी समय बर्बाद होता था. इसे महसूस कर मैंने सोचा कि क्यों न यहां एक लाइब्रेरी खोल दी जाए, जहां अध्ययन कर वे अपने इस समय का सदुपयोग कर सकें.''

अगर छात्रों को जरूरत होती है तो वे किताबें घर भी ले जाते हैं. इसके लिए उन्हें कोई शुल्क नहीं देना पड़ता है. इसका असर यह हुआ कि कई बच्चे अब तो नियमित रूप से पढ़ने आने लगे. यहां रवीन्द्रनाथ टैगोर व मुंशी प्रेमचंद आदि बड़े लेखकों की साहित्यिक पुस्तकें भी उपलब्ध हैं.

Public library set up by IPS Officer Ashish Bharti at Bihar's Rohtas district police head quarter
तस्वीर: Manish Kumar/DW

लाइब्रेरी के लिए स्थल चयन के संबंध में वह कहते हैं, ‘‘रोहतास के रेहल व धनसा में 2017 में पुलिस संवाद कक्ष बनाया गया था जो वर्तमान में किसी वजह से उपयोग में नहीं था. हमने उसी में पुस्तकालय खोला है. हमारी योजना जिले में कई जगहों पर लाइब्रेरी खोलने की है. कई लोग इसके लिए कह भी रहे हैं. शिक्षा से ही गरीबी व नक्सलवाद को दूर किया जा सकता है.''

नक्सली व दूरस्थ इलाकों पर जोर

आशीष कहते हैं, ‘‘नक्सल इलाकों में जब ऑपरेशन में हम लोग जाते हैं तो वहां के लोगों द्वारा कई तरह की मदद का अनुरोध किया जाता है, क्योंकि अन्य संसाधनों से ऐसे इलाकों में अपेक्षाकृत कम मदद पहुंच पाती है.''

आशीष मानते हैं कि जहां ऐसे प्रयास होते हैं वहां नक्सल गतिविधियों में कमी आती है, हालांकि यह इकलौता फैक्टर नहीं है. वह बताते हैं, "हम नक्सली इलाकों में मेडिकल कैंप, फुटबॉल टूर्नामेंट का आयोजन या फिर युवाओं को रोजगार की व्यवस्था के लिए ड्राइविंग सिखाने जैसा काम भी करते हैं. वैसे रोहतास में नक्सल प्रभाव काफी कम हुआ है, किंतु जो पहाड़ी क्षेत्र हैं या यूपी व झारखंड की सीमा से लगे इलाके हैं, वहां से कभी-कभी नक्सली गतिविधि की सूचना मिलती रहती है.”

गाइडेंस व काउंसिलिंग भी

आशीष प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे युवाओं को गाइडेंस और काउंसलिंग भी देते हैं. वह कहते हैं, ‘‘अगर हम अपने युवाओं को सही दिशा की ओर ले जाने में कामयाब हो जाते हैं तो उनका भटकाव कदापि नहीं होगा. परीक्षाओं के लिए हम उन्हें गाइड करते हैं, उनकी काउंसलिंग भी करते हैं जिसका भी खासा प्रभाव होता है. कई बच्चे सब इंस्पेक्टर या अन्य परीक्षाओं में सफल भी हुए हैं. जब भागलपुर में मेरी तैनाती थी तो मैं वहां गाइडेंस प्रोग्राम के तहत उन बच्चों को पढ़ाता था जो प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते थे. वहां खुले मैदान में करीब हजार-बारह सौ बच्चे बैठते थे. पता चला है कि उन बच्चों में से 50-55 बच्चों का सब इंस्पेक्टर के लिए फाइनल सेलेक्शन हुआ है.''

लाइब्रेरी के लिए पुस्तकों की व्यवस्था के संबंध में आशीष कहते हैं कि अभी तक मैं ही पुस्तक उपलब्ध करवाता हूं. वह कहते हैं, "मुझे किताबों का शौक है. मेरी खुशकिस्मती है कि मेरे पास बहुत सारी किताबें हैं. दूसरी, मेरे पिताजी की किताब की दुकान है तो बहुत सारी किताबें हम वहां से ले लेते हैं. खुशी की बात है कि कई लोग अब पुस्तकें भेजने लगे हैं. एक रिटायर्ड आइएएस अधिकारी हैं, उन्होंने इस प्रयास को देखकर अपनी बहुत सारी गणित व विज्ञान की पुरानी-पुरानी किताबों को लाइ्ब्रेरी के लिए दिया.”

आशीष स्पष्ट करते हैं कि किसी से कोई वित्तीय सहायता अब तक न तो ली है और न ही आगे ली जाएगी.' हां, कोई पुस्तक देना चाहें तो वे दे सकते हैं. पुस्तकालय के संचालन की व्यवस्था पर आशीष कहते हैं, ‘‘हम लोगों ने इसके लिए एक कमेटी बना दी है. रेहल व धनसा में लाइब्रेरी जिस स्कूल के पास है, वहां के एक शिक्षक, एक स्थानीय युवक और जिस थाना में वह इलाका आता है, वहां के एसएचओ इसे मैनेज करेंगे.''

Public library set up by IPS Officer Ashish Bharti at Bihar's Rohtas district police head quarter
तस्वीर: Manish Kumar/DW

एक रोहतास थाना में हैं और दूसरा नौहट्टा थाना में आता है. यहां रोहतास में एसपी दफ्तर में जो पुस्तकालय है, उसका संचालन पुलिस लाइन के पदाधिकारी करते हैं. आशीष इससे पहले मुंगेर जिले के नक्सल प्रभावित धरहरा में भी थाने में लाइब्रेरी की स्थापना कर चुके हैं. उनके आने के बाद आज भी वहां एसएचओ की देखरेख में लाइब्रेरी चल रही है.

डिजीटल युग में लाइब्रेरी कितनी प्रासंगिक

आशीष भारती कहते हैं, ‘‘लाइब्रेरी का अपना एक महत्व है और यह बरकरार रहेगा. मोबाइल, टैबलेट पर पढ़ने में डिस्ट्रैक्शन बहुत होता है. लेकिन किताबों को आप बिना अवरोध के पढ़ते हैं. मेरा मानना है कि बेसिक बुक से आप कॉन्सेप्ट क्लियर करें और वैल्यू एडिशन के लिए डिजिटल माध्यम का उपयोग करें तो आपको ज्यादा फायदा होगा, दोनों का समावेश जब तक नहीं होगा तब तक ऑप्टिमम रिजल्ट नहीं मिलेगा.”

एसपी ऑफिस में बनाई गई लाइब्रेरी में पढ़ने वाले कुब्बा गांव निवासी गुलेशर अंसारी कहते हैं, ‘‘परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण बाहर जाकर परीक्षा की तैयारी करना हमारे लिए संभव नहीं है. अगर हमें हमारे गांव में ही सुविधा मिल जाए तो हम अपनी योग्यता अवश्य साबित कर देंगे.''

Public library set up by IPS Officer Ashish Bharti at Bihar's Rohtas district police head quarter
तस्वीर: Manish Kumar/DW

पत्रकार रितेश कुमार कहते हैं, ‘‘यहां के बच्चे भी उतने ही योग्य हैं. तभी तो पिछले साल नक्सल प्रभावित दूरवर्ती पहाड़ी इलाके तेलकप की रहने वाली रसूलपुर उच्च विद्यालय की छात्रा प्रिया कुमारी ने मैट्रिक परीक्षा के टॉप टेन में अपनी जगह बनाई थी. वह अफसर बनना चाहती है. ऐसे बच्चों के लिए एसपी साहब का यह प्रयास तो वरदान ही साबित होगा.''  

यह पूछने पर कि आपके स्थानांतरण के बाद इस प्रोजेक्ट का क्या होगा, आशीष भारती कहते हैं कि यह तो आने वाले व्यक्ति पर निर्भर करेगा. वह बताते हैं, "भागलपुर में जो हमारे पूर्ववर्ती थे, उन्होंने गाइडेंस का प्रोग्राम शुरू किया था. हमने इसे बढ़ाया और इसका बेहतर परिणाम सामने आया. अगर आपके थोड़े प्रयास से कई लोगों को फायदा पहुंचता है और उसकी उपयोगिता है तो उस प्रयास को जारी रखना चाहिए. लेकिन यह भी सच है कि ऐसे प्रयास प्राय: ऑफिसर ड्रिवेन ही होते हैं.''