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ऐसी फिल्म कि थिएटर छोड़कर भागने लगे लोग

२५ मई २०२२

कनाडा के फिल्मकार डेविड क्रोनेनबर्ग की नई फिल्म ‘क्राइम्स ऑफ द फ्यूचर’ को कान महोत्सव में दिखाया गया तो लोग डर के मारे सिनेमा छोड़कर भाग गए. क्रोनेनबर्ग कहते हैं कि उन्हें बड़ा मजा आया.

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फिल्म क्राइम्स ऑफ द फ्यूचर
फिल्म क्राइम्स ऑफ द फ्यूचरतस्वीर: Neon

डरावनी, हैरतअंगेज, परेशान कर देने वाली और सिहरन पैदा करने से लेकर घिन आने की हद तक हिला देने वाली फिल्में बनाने के लिए मशहूर फिल्मकार डेविड क्रोनेनबर्ग की नई फिल्म को जब कान फिल्म महोत्सव में दिखाया गया, तो बहुत से लोग थिएटर छोड़कर भाग निकले. साई-फाई यानी साइंस फिक्शन फिल्में बनाने वाले क्रोनेनबर्ग की नई फिल्म ‘क्राइम्स ऑफ द फ्यूचर’ ने लोगों को बहुत अलग तरह का अनुभव दिया. 

 ‘क्राइम्स ऑफ द फ्यूचर’ में सेक्स के भविष्य पर बात की गई है. एक्टर क्रिस्टन स्टीवर्ट, ली सेडो और वीगो मॉर्टेन्सन के साथ मिलकर क्रोनेनबर्ग ने अपनी फिल्म में दिखाया है कि भविष्य में सेक्स किस तरह का रूप ले ले लेगा. लेकिन यह रूप देखना बहुत से दर्शकों के लिए भारी हो गया. कुछ तो इस हद तक सिहर उठे कि थिएटर ही छोड़ गए. 

भविष्य की कहानी 

फिल्म भविष्य में कभी घटती एक कहानी कहती है, जिसमें लोग यौन संतुष्टि के लिए तरह-तरह के तरीके खोजते हैं. 79 वर्षीय क्रोनेनबर्ग कई बेहद चर्चित हॉरर और साइंस फिक्शन फिल्मों के लिए जाने जाते हैं जिनमें द फ्लाई, क्रैश, एक्जिस्टेंज आदि शामिल हैं. ‘क्राइम्स ऑफ द फ्यूचर’ के बारे में वह कहते हैं कि मानव समाज में जिस तरह अर्थ को लेकर विचार बदल रहे हैं, उन्हीं को उन्होंने शारीरिक रूप में दिखाया है. 

रेड कार्पेट पर मीडिया से बातचीत में क्रोनेनबर्ग ने कहा, “शरीर वास्तविकता है. मेरा हमेशा यही मंत्र रहा है, चाहे वह किसी भी रूप में हो. यौनिकता जीवन का बहुत अहम हिस्सा है क्योंकि इसमें हमेशा राजनीति, संस्कृति, विज्ञान और दर्शन का मिश्रण होता है. हम जानवरों की तरह सेक्स नहीं कर सकते क्योंकि यह बहुत जटिल होता है.” 

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हाल की जेम्स बॉन्ड फिल्मों में नजर आ चुकीं ली सीडो ने इस फिल्म में मॉर्टेन्सन के साथ अपना किरदार निभाया है जिसमें कलाकारों को भविष्य के इंसानों की भाव-भंगिमाएं दिखानी पड़ी हैं. भविष्य के ये इंसान ऐसे हैं कि अपने शरीर के विभाजन को नियंत्रित कर सकते हैं. 

क्या है फिल्म? 

फिल्म दिखाती है कि मॉर्टेन्सन का किरदार सॉल अपने ही अंदर नए अंग उगाता है ताकि अपने शरीरा का विकास कर सके. सॉल की जीवनसाथी कैप्रिस ने ऐसी तकनीक विकसित कर ली है जिसके जरिए वह बिना दर्द किए सॉल के शरीर में घुस सकती है. इस तरह वह सॉल के अंदर उग रहे नए अंगों को टैटू बनाकर उनकी खूबसूरती लोगों को दिखाती है. 

ली सेडो (सबसे बाएं)
ली सेडो (सबसे बाएं)तस्वीर: Joel C Ryan/Invision/AP/picture alliance

क्रोनेनबर्ग कहते हैं, “लोग कहते हैं कि इस फिल्म में कोई सेक्स नहीं है लेकिन सर्जरी अगर नया सेक्स है तो फिल्म में बहुत सेक्स है. यह बस वैसा नहीं है जिसकी आप आमतौर पर उम्मीद करते हैं.” 

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फिल्म के तीसरे अहम किरदार टिमलिन को मशहूर एक्टर स्टीवर्ट ने निभाया है. टिमलिन नेशनल ऑर्गन रजिस्ट्री की एक जांचकर्ता है जो शारीरिक विकास को सीमाओं से बाहर जाने पर निगाह रखती है. वह सॉल और कैप्रिस की जांच करते करते उनसे प्यार कर बैठती है और फिर तिहरी लव स्टोरी शुरू हो जाती है. 

63 वर्षीय मॉर्टेन्सन कहते हैं कि यह फिल्म एकदम ताजा किस्म का रोमांस है. क्रोनेनबर्ग के साथ ‘अ हिस्ट्री ऑफ वायलेंस’ और ‘ईस्टर्न प्रॉमिसेज’ जैसी सफल फिल्में कर चुके मॉर्टेन्सन की उनके निर्देशन में यह चौथी फिल्म है. फिल्म में उन्होंने अपना शरीर तो दिखाया ही है, साथ ही कृत्रिम अंग भी धारण किए हैं. 

डराने में मजा आता है 

मॉर्टेन्सन बताते हैं कि क्रोनेनबर्ग ने उन्हें अपनी सीमाओं की हद जांचने के लिए पूरी तरह से आजाद छोड़ दिया था. वह कहते हैं, “सबसे बढ़कर तो हम दोस्त हैं. हमारे बीच एक भरोसा है, जिसके बूते पर नई चीजें आजमाने की जगह मिलती है. ऐसी चीजें जो असामान्य हैं और शायद मैं दूसरे निर्देशकों के साथ इतनी आसानी से ना कर पाऊं.” 

फिल्मकार डेविड क्रोनेनबर्ग
फिल्मकार डेविड क्रोनेनबर्गतस्वीर: Joel C Ryan/Invision/AP/picture alliance

फिल्म में हद से ज्यादा खुलेपन और सर्जरी के दृश्यों के बारे में मॉर्टेन्सन क्रोनेनबर्ग कहते हैं कि उनका मकसद दर्शकों को डराना नहं था लेकिन विवाद पैदा करके उन्हें वैसा ही मजा आया, जैसा 1996 में उनकी फिल्म क्रैश के साथ हुआ था, जिसमें लोग कार हादसों के जरिए खुद को यौन संतुष्टि पहुंचाते हैं.  

क्रोनेनबर्ग ने कहा, “मैंने जब वह फिल्म दिखाई थी तो बहुत से लोग सिनेमा छोड़कर चले गए थे. एक आदमी उठता तो सीट के बंद होने की आवाज आती. फिर दो और उठते तो दो बार आवाज आती. और फिर एक साथ कई लोग उठकर चल देते तो भड़भड़भड़ की कई आवाजें आतीं. अब सिनेमा की सीटों में आवाज नहीं आती. यह बहुत निराशाजनक बात है.” 

वीके/एए (एएफपी)

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