दार्जिलिंग और सिक्किम पर भी जोशीमठ जैसे हादसे का खतरा
१६ जनवरी २०२३जोशीमठ में मकानों में रही दरार के बाद पूर्वोत्तर के इलाकों में इसी तरह की स्थिति बनने की आशंका है. वैज्ञानिकों का कहना है कि उत्तराखंड की घटना से सबक लेकर फौरन एहतियाती कदम नहीं उठाए गए, तो दार्जिलिंग और सिक्किम की हालत भी जोशीमठ जैसी हो सकती है. उत्तराखंड के जोशीमठ और उसके बाद कर्णप्रयाग में जमीन धंसने के कारण मकानों और सड़कों पर दरारें पड़ने की घटना से स्थानीय लोगों में भारी आतंक है.
इलाके में सेना की छावनियां भी इससे अछूती नहीं हैं. वहां हजारों लोगों को दूसरी सुरक्षित जगहों पर ले जाया गया है. विशेषज्ञों का कहना है कि दार्जिलिंग और पड़ोसी सिक्किम की हालत भी जोशीमठ से अलग नहीं है. इन दोनों इलाकों में हाल के दशकों में पर्यटन के दबाव में अनियंत्रित शहरीकरण, वाहनों की तादाद और आबादी में बेतहाशा वृद्धि हुई है.
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बचाव के लिए ग्राम समितियों का गठन
तिनधारिया शहर, सिलीगुड़ी से दार्जिलिंग जाने वाली नेशनल हाई-वे संख्या 55 के किनारे बसा है. यहां मकानों में दरारें पड़ने का सिलसिला कुछ साल पहले ही शुरू हो गया था. यह इलाका सिंकिंग जोन में शामिल है. स्थानीय निवासी केशव लामा बताते हैं, "कुछ महीनों के अंतराल पर हमें दरवाजों और खिड़कियों की चिटकनी दुरुस्त करानी पड़ती है. जमीन धंसने के कारण दरवाजे और खिड़कियां बंद ही नहीं होते. यहां की आबादी भी तेजी से बढ़ी है. इस इलाके में जमीन के नीचे कोयले की खुदाई ने भी संकट को गंभीर कर दिया है.”
इस क्षेत्र को धंसने से बचाने के लिए कुछ साल पहले ग्राम कल्याण समिति का गठन किया गया था. समिति के सचिव प्रमोद थापा बताते हैं, "कोयले का अवैध खनन जारी रहने पर संकट और गंभीर हो जाएगा. लोगों को जागरूक बनाना भी जरूरी है. साथ ही प्रशासन को भी इस मामले को गंभीरता से लेना होगा.”
दार्जिंलिंग हिमालय रेलवे के एक अधिकारी बताते हैं, "तिनधरिया स्थित रेलवे वर्कशॉप इलाके में पहले कई बार जमीन धंस चुकी है. जमीन धंसने की वजह से अक्सर रेलवे की पटरियां नए सिरे से बिछानी पड़ती हैं.”
सबसे आबादी वाला पर्वतीय शहर
दार्जिलिंग नगरपालिका से रिटायर होने वाले एक पूर्व इंजीनियर टी सी शेरपा बताते हैं, "सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, दार्जिलिंग नगरपालिका इलाके में आबादी का घनत्व 15,554 प्रति वर्ग किलोमीटर है. इस लिहाज से यह दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला पर्वतीय शहर है. लेकिन बावजूद इसके सरकार ने अब तक कोई एहतियाती कदम नहीं उठाए हैं. पहले आने वाले भूकंप और भूस्खलन की तमाम घटनाएं भी प्रशासन और आम लोगों में भावी खतरे के प्रति जागरूकता नहीं पैदा कर सकी हैं.”
जुलाई 2016 में दार्जिलिंग शहर में एक चार मंजिला मकान ढहने के कारण सात लोगों की मौत हो गई थी. शेरपा के मुताबिक, जोशीमठ की तरह जमीन खिसकना ही उस हादसे की प्रमुख वजह था. वह मकान एक झरने के पास बना था. उस हादसे के बाद भी इस पर्वतीय शहर में अनियंत्रित निर्माण जस-का-तस है. साल 2015 में नगरपालिका ने दार्जिलिंग के 32 में से महज आठ वॉर्डों में ही 337 अवैध बहुमंजिला इमारतों की शिनाख्त की थी.
जमीन में धंसता जा रहा है उत्तराखंड का जोशीमठ
बीते साल नगरपालिका चुनाव में जीतने वाली हामरो पार्टी के अजय एडवर्ड्स कहते हैं, "हमने अवैध निर्माण पर अंकुश लगाने का प्रयास किया था, ताकि यहां भी जोशीमठ जैसी घटना ना हो. लेकिन कुछ सत्तारूढ़ लोगों ने ही इस काम में बाधा पहुंचाने का प्रयास किया. नतीजतन यह मुहिम ठप हो गई.”
इलाके को फौरी खतरे से इंकार
गोरखालैंड टेरीटोरियल एडमिनिस्ट्रेशन (जीटीए) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अनीत थापा बताते हैं, "जमीन धंसने के हादसों के बाद समय-समय पर इलाके का सर्वेक्षण किया गया है. फिलहाल कोई बड़ा खतरा तो नहीं है, लेकिन जोशीमठ की घटना को ध्यान में रखते हुए हम सरकार को इस मामले की विस्तृत रिपोर्ट भेजेंगे.”
दार्जिलिंग के जिलाशासक एस पुन्नमवलम कहते हैं, "तिनधरिया में जमीन धंसने के मामलों की विस्तृत जांच के बाद विशेषज्ञों से सलाह-मशविरा किया जाएगा.” पर्यावरणविद रंजन राय कहते हैं, "दार्जिलिंग और सिक्किम पर्वतीय क्षेत्र में हालात बेहद खतरनाक हैं. उत्तराखंड की घटना से सबक लेकर फौरन एहतियाती कदम उठाए जाने चाहिए.”
जोशीमठ में अब घरों को गिराने का फैसला
विशेषज्ञों का कहना है कि दार्जिलिंग भूकंप के प्रति संवेदनशीलता के लिहाज से सेस्मिक जोन चार में शामिल है. इंजीनियर मनोज कुमार घोष बताते हैं, "दार्जिलिंग और सिक्किम में पहाड़ों की खुदाई का सिलसिला अनवरत जारी है. इलाके में जारी पनबिजली परियोजनाओं और देश के बाकी हिस्सों से सिक्किम को जोड़ने वाली नेशनल हाई-वे संख्या 10 पर उनके असर का एक विस्तृत अध्ययन किया जाना चाहिए. इसके आधार पर ठोस कदम उठाए जाने चाहिए ताकि निकट भविष्य में इलाके को जोशीमठ में तब्दील होने से रोका जा सके.”