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क्या जर्मन लोग काम पर सुस्त हो गए हैं?

इंसा व्रेडे
१८ मई २०२४

लंबे समय से जर्मन लोग मेहनती, जिम्मेदार, भरोसेमंद और काम में बहुत अच्छे माने जाते रहे हैं. लेकिन एक हालिया रिसर्च कहती है कि जर्मन लोग कम घंटे काम कर रहे हैं. वैसे यह इस कहानी का पूरा सच नहीं है.

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दफ्तर में कम काम
जर्मन लोग के काम के कम औसत घंटों के पीछे एक दूसरा गणित काम कर रहा हैतस्वीर: Monkey Business 2/Shotshop/imago images

दुनिया के 38 देशों के संगठन ओईसीडी ने कामकाजी लोगों के काम के औसत घंटों पर आंकड़े जारी किए हैं. 2022 में एक औसत अमेरिकी ने साल में 1,800 घंटे से भी ज्यादा काम किया. वहीं जर्मन लोगों के लिए यह आंकड़ा सिर्फ 1,340 घंटे है. लेकिन जर्मन श्रम बाजार पर रिसर्च करने वाले एंजो वेबर इस बात को खारिज करते हैं कि कभी बहुत मेहनती माने जाने वाले जर्मन लोग अब सुस्त हो गए हैं या फिर कम काम कर रहे हैं.

उन्होंने डीडब्ल्यू के साथ बातचीत में कहा, "बाकी ज्यादातर देशों के मुकाबले जर्मनी में कामकाजी लोगों में महिलाओं की हिस्सेदारी बहुत ज्यादा है." वह बताते हैं कि अन्य देशों की तुलना में जर्मनी में अंतर यह है कि यहां हर दूसरी महिला पार्ट टाइम काम करती है, जिससे लोगों के सालाना औसत घंटों का आंकड़ा कम हो जाता है.

मिसाल के तौर पर, अगर किसी एक देश में दो पुरुष हर दिन दस घंटे काम करते हैं, तो काम के औसत घंटे 10 हुए, यानी (10+10)/2 = 10. लेकिन अगर दूसरे देश में दो पुरुष हर दिन 10 घंटे काम करते हैं और एक महिला चार घंटे काम करती है, तो (10+10+4)/3 = 8 के हिसाब से उनके काम करने का औसत समय आठ घंटे होता है.

न्यूरेमबर्ग के इंस्टीट्यूट ऑफ एम्प्लॉयमेंट रिसर्च (आईएबी) से जुड़े वेबर यह भी कहते हैं कि ओईसीडी के आंकड़ों का यह मतलब नहीं है कि जर्मनी में कम काम हो रहा है. उनके मुताबिक, "ज्यादा काम हो रहा है, वरना इन महिलाओं को आंकड़ों में कहीं शामिल नहीं किया जाएगा." वह कहते हैं कि खुद ओएसीडी ने भी सावधान किया है कि ये आंकड़े अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तुलना करने के नजरिए से सीमित तौर पर ही इस्तेमाल किए जा सकते हैं.

होम ऑफिस
बच्चों और परिवार की जिम्मेदारियों को देखते हुए बहुत सी महिलाएं पार्ट टाइम नौकरी करती हैंतस्वीर: Julian Stratenschulte/dpa/picture alliance

काम में बदलाव और जेन जी

वेबर कहते हैं कि जर्मनी में वह समय बहुत पहले बीत चुका है जब पुरुष फुल टाइम नौकरी करते थे और महिलाएं घर पर रहती थीं. इस समय देश में 77 प्रतिशत महिलाएं काम कर रही हैं. बीते 30 सालों में कामकाजी महिलाओं की संख्या में बहुत वृद्धि हुई है, हालांकि इनमें से ज्यादातर पार्ट टाइम ही काम करती हैं.

आईएबी के सर्वे के अनुसार जर्मनी में जो महिलाएं फुल टाइम काम करती हैं, उनमें से करीब आधी अपने काम के घंटों को प्रति सप्ताह छह घंटे घटाना चाहती हैं. वहीं फुल टाइम काम करने वाले 60 फीसदी पुरुष प्रति हफ्ते 5.5 घंटे की कटौती करना चाहते हैं. जर्मनी में महिलाओं और पुरुषों के बीच कम काम करने की चाहत दशकों से रही है, लेकिन तथाकथित जेन जी पीढ़ी के आने के बाद यह नई ऊचाइयों को छू रही है. यानी वह पीढ़ी जिसका जन्म 1995 से 2010 के बीच हुआ है और जो हाल के सालों में कामकाजी दुनिया में कदम रखने लगी है.

जेन जी की छवि कुछ इस तरह की बन रही है कि उन्हें सैलरी भी ऊंची चाहिए और फ्री टाइम भी जितना ज्यादा हो सके, उतना बेहतर. लेकिन वेबर मानते हैं कि यह छवि ठीक नहीं है. उनके मुताबिक जेन जी पीढ़ी के लिए सफल करियर उतना ही अहम है, जितना उनसे पहले वाली पीढ़ी के लिए था.

 

ट्रेन में ऑफिस

कम लोगों के साथ कम काम कैसे करें?

वैसे कम काम और काम के फ्लेक्सिबल समय को लेकर जेन जी की जो चाहत है. वह इस बीच जर्मनी में पारंपरिक रूप से मजबूत मानी जाने वाली मुख्य धारा की लेबर यूनियनों की मांग बन गई है. दक्ष कर्मचारियों की कमी और कोरोना महामारी के दौरान घर से काम करने की आजादी ने उनकी इस मांग को मजबूती दी है.

यही कारण है कि मौजूदा कर्मचारी अपनी बातें मनवा सकते हैं और दफ्तर में काम की स्थितियों में बदलाव लाने के मामले में पहले के मुकाबले ज्यादा दबाव डाल सकते हैं. लेकिन एक तरफ कम घंटे काम करने की चाहत है और दूसरी तरफ दक्ष कर्मचारियों की कमी है. क्या ये दोनों बातें एक साथ चल सकती हैं? और आपको सैलरी भी ऊंची चाहिए. माना जाता है कि 2035 तक आबादी में होने वाले बदलावों की वजह से जर्मनी में काम करने वाले लोगों की तादाद 70 लाख कम होगी.

इस समस्या से निपटने का एक तरीका यह हो सकता है कि कर्मचारियों की उत्पादकता को बढ़ाया जाए. वेबर कहते हैं कि काम के दौरान लोगों को पूरी तरह से निचोड़ लेना समझदारी नहीं होगी. इसकी बजाय वह ट्रेनिंग और डिजिटाइजेशन, खासकर आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस में निवेश के जरिए काम की गुणवत्ता को सुधारने पर जोर देते हैं.

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