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गुलबर्ग सोसायटी: फैसले का फायदा किसे होगा?

२ जून २०१६

न्याय का पहिया धीरे-धीरे घूमता है लेकिन घूमता जरूर है. आखिरकार इंसाफ मिल ही गया, कहना है कुलदीप कुमार का.

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Indien Ahmadabad Beschuldigter Massaker im Bundesstaat Gujarat
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/A. Solanki

गोधरा में 27 फरवरी 2002 को साबरमती एक्सप्रेस के डिब्बे में आग लाग्ने के दूसरे दिन अहमदाबाद के चमनपुरा इलाके में स्थित गुलबर्ग हाउसिंग सोसायटी में हुए सामूहिक हत्याकांड के दोषियों को एक विशेष अदालत ने सजा सुना दी है. अदालत ने 66 अभियुक्तों में से 36 को बरी कर दिया है और 24 को दोषी करार किया है. मुकदमा चलने के दौरान छह अभियुक्तों की मौत हो गई थी. जो लोग बरी हुए हैं उनमें भारतीय जनता पार्टी के पार्षद बिपिन पटेल भी शामिल हैं जो उस समय भी पार्षद हुआ करते थे.

इस हत्याकांड में कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी समेत 69 लोग मारे गए थे. अनेक अड़चनों का सामना करने के बाद भी जाफरी की विधवा जकिया जाफरी ने हिम्मत नहीं हारी और वे गुजरात सरकार के विरोध की परवाह किए बिना इंसाफ के लिए लड़ती रहीं. अदालत का फैसला आने पर उन्होंने निराशा जताई है और कहा है कि वह इसके खिलाफ अपील करेंगी. उनके पुत्र ने फैसला आने में इतनी देरी होने पर सवाल उठाया है और कहा है कि उन्हें समझ में नहीं आ रहा कि 24 लोग इतने बड़े हत्याकांड को अंजाम कैसे दे सकते हैं. इस मामले में आरोप था कि एहसान जाफरी के बार-बार फोन करने पर भी पुलिस सहायता के लिए नहीं आई और क्रुद्ध भीड़ ने सोसायटी में आग लगा दी. अभी अदालत ने दोषियों को सजा नहीं सुनाई है.

Indien Ahmedabad Verdächtiger Massaker im Bundesstaat Gujarat in 2002
तस्वीर: Reuters/A. Dave

मोदी की अमेरिका यात्रा

हालांकि सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित विशेष जांच दल की तरह ही अदालत ने भी माना है कि गुजरात की तत्कालीन नरेंद्र मोदी सरकार ने मुस्लिमविरोधी हिंसा को रोकने के लिए सभी आवश्यक उपाय किए लेकिन उसके फैसले से एक बार फिर राज्य सरकार की भूमिका पर सवाल उठेंगे. जिस समय गुजरात में व्यापक पैमाने पर मुस्लिमविरोधी हिंसा भड़की थी, तब प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने मोदी को 'राजधर्म' निभाने की सलाह दी थी जो एक प्रकार से उनकी आलोचना ही थी क्योंकि इसमें यह निहित था कि वह अपना राजधर्म यानी सभी समुदायों को एक नजर से देखने और सुरक्षा प्रदान करने का दायित्व ठीक से नहीं निभा रहे.

दुनिया भर में गुजरात की घटनाओं की व्यापक प्रतिक्रिया हुई थी और अमेरिका समेत कई देशों ने तो मोदी को वीसा तक देने से मना कर दिया था लेकिन सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के कारण मोदी ने गुजरात में लगातार विधानसभा चुनाव जीते. फैसले में भले ही राज्य सरकार को दोषमुक्त कर दिया गया हो लेकिन इसकी आंच भारतीय जनता पार्टी पर जरूर आएगी. अगले सप्ताह नरेंद्र मोदी अमेरिका की यात्रा पर जा रहे हैं. निश्चित रूप से इस फैसले की छाया उनके दौरे पर पड़ेगी क्योंकि अमेरिका में आज भी उनके आलोचकों की कमी नहीं है. इस दौरे के दौरान ही अमेरिकी कांग्रेस का एक आयोग भारत में मानवाधिकारों पर एक सुनवाई करेगा.

Indien Ahmadabad Beschuldigte / Verurteilte für Massaker im Bundesstaat Gujarat
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/A. Solanki

एक बड़ी सफलता

उत्तर प्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. वहां सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी को सांप्रदायिक ध्रुवीकरण से फायदा होने की उम्मीद है. गुलबर्ग सोसायटी के बारे में फैसला आने से इस प्रक्रिया को बल मिल सकता है. लेकिन इसके साथ ही यह भी सही है कि इस फैसले के सकारात्मक पक्ष की अनदेखी भी नहीं की जा सकती. आजाद भारत में अनेक सांप्रदायिक दंगे हुए हैं. लेकिन ऐसा बहुत कम होता है जब इनमें सक्रिय भूमिका निभाने वालों को सजा मिलती हो. गुलबर्ग सोसायटी के मामले में अनेक अभियुक्तों को बरी कर दिया गया है लेकिन 24 अभियुक्तों का दोषी पाया जाना भी कोई कम बड़ी उपलब्धि नहीं है.

जिन्हें छोड़ा गया है उन्हें भी पर्याप्त सुबूत के अभाव में छोड़ा गया है. अब यह बात सर्वविदित है कि स्वयं गुजरात सरकार ने 2002 में हुई हिंसा के मामले से जुड़े अनेक दस्तावेजों को नष्ट करवाया है क्योंकि ऐसे नियम हैं जिनके अनुसार समय-समय पर गैर-जरूरी दस्तावेज नष्ट किए जाते हैं. इसके बावजूद 24 लोगों को सजा सुनाई जाएगी और यह एक बड़ी सफलता है. आशा की जानी चाहिए कि इससे भविष्य में इस प्रकार की हिंसा पर लगाम लगेगी. लेकिन अदालत के फैसले का आने वाले दिनों की राजनीति पर क्या असर पड़ेगा, यह देखना दिलचस्प होगा.

ब्लॉग: कुलदीप कुमार