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कानून और न्यायभारत

म्यांमार में तख्तापलट के बाद नशे का गढ़ बनता पूर्वोत्तर भारत

प्रभाकर मणि तिवारी
२४ मई २०२४

म्यांमार में तख्तापलट के बाद नशीली वस्तुओं का केंद्र बनता पूर्वोत्तर भारत. नए-नए तरीके ईजाद कर रहे हैं नशे के कारोबारी.

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मेघालय के चेरापूंजी की विश्व प्रसिद्ध गुफाओं की तस्वीर
मेघालय के चेरापूंजी में स्थित विश्व प्रसिद्ध गुफाओं की तस्वीरतस्वीर: Prabhakar Mani Tewari/DW

म्यांमार में करीब तीन साल पहले सैन्य तख्तापलट के बाद सीमा पार से पूर्वोत्तर में अवैध तरीके से पहुंचने वाले शरणार्थियों की भारी तादाद के कारण इलाके में नशीली वस्तुओं की तस्करी में काफी वृद्धि दर्ज की गई है. खासकर बीते साल मणिपुर में शुरू हुई हिंसा के बाद तो यह समस्या और जटिल हो गई है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, बीते सात साल में नशीली वस्तुओं की तस्करी के आरोप में करीब तीन हजार लोगों को गिरफ्तार कर 7,887 करोड़ की नशीली वस्तुएं जब्त की गई हैं.

पुलिस का कहना है कि तस्कर गिरोह अब मादक पदार्थों की तस्करी के लिए नए रास्ते अपना रहे हैं. मणिपुर पुलिस ने बीते महीने कद्दू में भर कर साढ़े तीन करोड़ की ब्राउन शुगर की तस्करी करने वाले एक गिरोह के कुछ लोगों को गिरफ्तार कर साढ़े तीन करोड़ की मादक वस्तुएं जब्त की थी. उस समय मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने तस्वीरों के साथ इस बारे में एक ट्वीट किया था.

मणिपुर और मिजोरम में शायद ही कोई सप्ताह ऐसा गुजरता है जब नशीली वस्तुओं की कोई बड़ी खेप नहीं पकड़ी जाती है. मिजोरम सरकार ने भी राज्य में नशीली वस्तुओं की बढ़ती तस्करी के लिए मणिपुर की हिंसा को जिम्मेदार ठहराया है.

मणिपुर सरकार ने बीते सात वर्षो के दौरान सीमा पार से पहुंचने वाली करीब आठ हजार करोड़ की नशीली वस्तुएं जब्त की हैं. इन मामलों में करीब तीन हजार लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है. राज्य सरकार की ओर से जारी एक बयान में इसकी जानकारी देते हुए बताया गया है कि राज्य में जातीय हिंसा शुरू होने के बाद ऐसे मामले तेजी से बढ़े हैं. राज्य सरकार ने बीते साल मणिपुर के पर्वतीय इलाको में 16 हजार एकड़ से ज्यादा इलाके में लगी अफीम की फसलें नष्ट कर दी थीं.

राज्य सरकार के एक अधिकारी नाम नहीं छापने की शर्त पर डीडब्ल्यू से कहते हैं, "म्यांमार से नशीली वस्तुओं की तस्करी का सिलसिला तो दशकों पुराना है. लेकिन बीते साल शुरू हुई हिंसा के बाद सुरक्षा की स्थिति कुछ कमजोर होने के कारण सीमा पार से तस्करी कई गुनी बढ़ गई है. इस दौरान मणिपुर के अलावा पड़ोसी मिजोरम और असम में भी सीमा पार से आने वाली नशीली वस्तुओं की बरामदगी में तेजी आई है. वर्ष 2022-23 के दौरान पर्वतीय इलाकों में 4305 एकड़ में लगी अफीम की फसल को नष्ट किया गया था."

मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने कुछ समय पहले जारी अपने एक वीडियो बयान में बताया था, "वर्ष 2006 के बाद राज्य के म्यांमार से सटे पर्वतीय इलाकों में कम से कम 996 नए गांव बस गए हैं. इससे साफ होता है कि सीमा पार से कितने बड़े पैमाने पर घुसपैठ हो रही है. सीमा पार से आने वाले इन घुसपैठियों में ज्यादातर लोग नशीली वस्तुओं की तस्करी या अफीम की खेती से जुड़े हैं."

दरअसल, पूर्वोत्तर में सीमा पार से नशीली वस्तुओं की तस्करी की समस्या दशकों पुरानी है. लेकिन बीते साल मणिपुर में शुरू हुई जातीय हिंसा और अफगानिस्तान में अफीम की खेती पर तालिबान सरकार की ओर लगाई गई पाबंदी के बाद म्यांमार में अफीम की खेती बढ़ी है और इसमें से ज्यादातर मणिपुर और मिजोरम के रास्ते ही भारत के दूसरे शहरों में भेजा जाता है.

यूनाइटेड नेशंस ऑफिस ऑन ड्रग्स एंड क्राइम (यूएनओडीसी) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अफगानिस्तान की तालिबान सरकार की ओर से अफीम की खेती के खिलाफ शुरू किए गए अभियान के बाद वहां इसमें 95 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई. इसी वजह से वर्ष 2023 में म्यांमार दुनिया का सबसे बड़ा अफीम उत्पादक देश बन गया. म्यांमार में तख्तापलट के बाद आर्थिक अस्थिरता के कारण ज्यादातर किसान अफीम की खेती करने लगे.

राज्य सरकार के एक अधिकारी ने डीडब्ल्यू को बताया कि मणिपुर में शुरू हुई हिंसा ने इस पैदावार को खपाने में अहम भूमिका निभाई. इसके लिए सीमा पार से आने वाले लोगों को जरिया बनाया गया. दूसरी ओर, पड़ोसी मिजोरम में सीमा पार से आने वाले शरणार्थियों के कारण वहां भी शराब और नशीली दवाओं का अवैध कारोबार तेजी से बढ़ा है. राज्य में शराब पर पाबंदी है. लेकिन सीमा पार से आने वाले शरणार्थी अवैध रूप से देसी शराब बनाते और बेचते हैं.

हाल में मिजोरम की राजधानी आइजोल में आयोजित एक उच्च-स्तरीय बैठक आयोजित की गई थी. इसमें तमाम संबंधित विभागों के शीर्ष अधिकारियों के अलावा ताकतवर सामाजिक संगठन यंग मिजो एसोसिएशन के नेता भी मौजूद थे. यहां उत्पाद शुल्क और नारकोटिक्स विभाग के आयुक्त जेड. लालमंगैयाह ने बताया कि हाल के वर्षों में देसी शराब की बिक्री बढ़ी है. सरकार की ओर से जारी एक बयान में इसकी जानकारी दी गई. उत्पाद शुल्क आयुक्त लालमंगैयाह ने डीडब्ल्यू को बताया, "सीमा पार से शरणार्थियों की आवक बढ़ने के साथ ही राजधानी आइजोल और आसपास के इलाकों में अवैध शराब बनाने का काम तेज हो गया है."

इसी साल मार्च में विधानसभा में एक सवाल के जवाब में मंत्री लालनघिंगलोवा हमार ने कहा था कि पड़ोसी मणिपुर में जातीय हिंसा के कारण राज्य में नशीली दवाओं की तस्करी बढ़ गई है. उनका कहना था कि अन्य देशों से मिजोरम के रास्ते मणिपुर और त्रिपुरा में नशीली वस्तुओं की तस्करी की जा रही है. मंत्री ने स्थिति की गंभीरता पर चिंता जताते हुए इस समस्या पर अंकुश लगाने के लिए सरकार, गैर सरकारी संगठनों, चर्चों और जनता की सामूहिक भागीदारी पर जोर दिया.

मंत्री ने सदन में बताया था, "इस साल की शुरुआत से मिजोरम उत्पाद शुल्क और नारकोटिक्स विभाग ने 15 किलोग्राम हेरोइन, 96.5 किलोग्राम मेथमफेटामाइन टैबलेट और 238.6 किलोग्राम गांजा समेत भारी मात्रा नशीली वस्तुएं जब्त की गई हैं. इनकी तस्करी के आरोप में कुल 1,211 व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया है. इस साल अब तक नशीली दवाओं के इस्तेमाल से एक महिला समेत दस लोगों की मौत हो चुकी है."

राज्य गृह विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, सीमा पार से आने वाले 34 हजार से ज्यादा शरणार्थी फिलहाल विभिन्न इलाकों में बने राहत शिविरों में रह रहे हैं. इनमें 13 हजार से ज्यादा बच्चे हैं.

असम पुलिस ने इसी सप्ताह करीब दस किलो हेरोइन जब्त की है जो मिजोरम के चंफाई जिले से देश के दूसरे हिस्से में ले जाई जा रही थी. कछार के पुलिस अधीक्षक नूमल महट्टा के मुताबिक, अंतरराष्ट्रीय बाजार में इस हेरोइन की कीमत 105 करोड़ रुपए है. इस मामले में तीन लोगों को गिरफ्तार किया गया है. वह डीडब्ल्यू से बताते हैं, "हमारा अनुमान है कि इस हेरोइन को म्यांमार से मिजोरम के चंफाई होकर यहां ले आया गया था."

पुलिस के एक शीर्ष अधिकारी बताते हैं कि म्यांमार से लगी 1,643 किमी लंबी सीमा ज्यादातर जगह खुली है. नदी, जंगल और पहाड़ से घिरे इस इलाके में हर जगह कड़ी निगरानी भी संभव नहीं है. तस्कर इसी स्थिति का फायदा उठाते हैं और सीमा पार से आने वाले शरणार्थियों का इस काम में इस्तेमाल किया जा रहा है. यह शरणार्थी आसान आय के लालच में उनके चंगुल में फंस जाते हैं. उनका कहना था कि अब शायद सीमा पर कंटीले तारों की बाड़ लगने के बाद यह समस्या कुछ कम हो सकती है. लेकिन इसमें अभी कम से कम पांच साल का समय लगेगा.

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि मणिपुर की समस्या का समाधान नहीं होने तक राज्य में नशीली वस्तुओं की तस्करी पर अंकुश लगाना संभव नहीं है. म्यांमार से सटे राज्य के पर्वतीय इलाकों में कुकी जनजाति के लोगों की आबादी है. वहां फिलहाल सुरक्षा व्यवस्था बेहद कमजोर है. सीमापार से आने वाले लोग या तस्कर वहीं शरण लेते है