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चाइल्ड पोर्नोग्राफी पर भारत सरकार की बड़ी कोशिश

१७ जनवरी २०१७

चाइल्ड पोर्नोग्राफी और बाल उत्पीड़न के मामले को रोकने के लिए सरकार अब गैर सरकारी संस्थाओं के साथ मिलकर करेगी काम. सभी मंत्रालयों का साथ लिया जाएगा.

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Symbolbild Pornographie im Internet
तस्वीर: Fotolia/Denys Rudyi

भारत सरकार के तमाम मंत्रालय मसलन महिला एवं बाल विकास, स्वास्थ्य, शिक्षा, तकनीक आदि इंटरनेट पर बच्चों के साथ हो रहे यौन प्रताड़ना के मामलों को रोकने के लिए पुलिस और गैर सरकारी संस्थाओं के साथ हाथ मिलाने जा रहे हैं.

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की ओर से मिली जानकारी मुताबिक, इस साझेदारी का मकसद एक ऐसा इंटरनेट पोर्टल तैयार करना है जिस पर बच्चों के साथ होने वाले यौन उत्पीड़न के मामलों को रोकने के लिए जानकारी साझा की जा सके. साथ ही समय-समय पर कानूनों और नीतियों में होने वाले बदलावों से जुड़े प्रस्तावों पर भी चर्चा की जा सके. मंत्रालय ने अपने बयान में कहा कि मोबाइल और डिजिटल तकनीकों के आने के बाद से बाल शोषण ने अपना स्वरूप भी बदला है और इसका असर बच्चों की आम जिंदगियों पर पड़ रहा है.

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साथ ही इस पोर्टल के जरिये ऐसी सामग्री को पेश करने पर जोर दिया जाएगा जिससे बाल शोषण और बाल उत्पीड़न को रोका जा सके. मंत्रालय ने कहा कि ऑनलाइन होने वाले उत्पीड़न की कोई राष्ट्रीय सीमा नहीं है. विशेषज्ञों के मुताबिक चाइल्ड पोर्नोग्राफी आज एक वैश्विक समस्या बन गई है. हालांकि अब तक ऐसा कोई ठोस डेटा उपलब्ध नहीं है जिससे यह पता चल सके कि अब तक कितने भारतीय बच्चों का पोर्नोग्राफी और अश्लील सामग्री के चलते शोषण किया गया है. इस डेटा के न होने का बड़ा कारण यह भी है कि पीड़ित डर और बदनामी के चलते इन मामलों की शिकायत दर्ज नहीं कराते.

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक 2015 में ऑनलाइन यौन प्रताड़ना के 96 मामले दर्ज किए गए थे, जो वर्ष 2014 के मुकाबले 140 फीसदी अधिक हैं. बीते सितंबर एक संस्था ने देश में पहली इंटरनेट हॉटलाइन को लॉन्च किया था जिसका मुख्य उद्देश्य लोगों में चाइल्ड पोर्नोग्राफी के मामलों को लेकर जागरूकता पैदा करना था ताकि अधिक से अधिक मामले दर्ज किया जा सके. इस हॉटलाइन को आम जनता, पुलिस, इंटरनेट कंपनियां और पीड़ित भी आसानी से हिंदी और अंग्रेजी में इस्तेमाल कर सकते हैं.

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मंत्रालय ने अपने बयान में कहा है कि यह नई साझेदारी एक ऐसी रणनीति पेश करेगी जिसके जरिये बच्चों के अधिकारों से जुड़े मसलों पर माता-पिता और शिक्षकों को जागरूक किया जा सके साथ ही यहां नए शोधों को भी साझा किया जाएगा.

एए/वीके (रॉयटर्स)