दुनिया भर में कई आदिवासी समुदायों को उन संसाधनों से बेदाखल या वंचित किया गया है, जिस पर उनका जीवन निर्भर है. भारत में भी ऐसा ही एक समूह रहता है जिसे पश्चिम बंगाल की उनकी पुश्तैनी जमीन से बेदखल कर दिया गया था. कार्यकर्ता मानते हैं कि जनजातियों को आत्मनिर्भर बनाना पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद है.