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मीडियायूरोप

दुनियाभर में हमले झेल रहे हैं फैक्ट-चेकर

८ अप्रैल २०२४

भारत से लेकर दक्षिण कोरिया तक और क्रोएशिया से लेकर उत्तरी मैसिडोनिया तक, फर्जी खबरों की पड़ताल करके उनके तथ्यों को दुनिया के सामने लाने वाले फैक्ट-चेकर बहुत सी चुनौतियों से जूझ रहे हैं.

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आल्ट न्यूज के मोहम्मद जुबैर
आल्ट न्यूज के मोहम्मद जुबैर को 2022 में गिरफ्तार कर लिया गया थातस्वीर: Hindustan Times/IMAGO

दुनियाभर में फैक्ट-चेकिंग संस्थाओं के लिए यह मुश्किल वक्त है. एक तरफ दुष्प्रचार और फर्जी खबरों की बाढ़ आई हुई है, इसलिए उनके सिर पर काम का बोझ बहुत बढ़ गया है. दूसरी तरफ, कानूनी लड़ाइयां, धन की कमी और ताकतवर नेताओं व सरकारों द्वारा प्रताड़ना उनकी मुश्किलों को बढ़ा रहे हैं.

संगठन में या अकेले ही काम कर रहे फैक्ट-चेकर यूरोप से लेकर एशिया तक हमले झेल रहे हैं. दर्जनों देशों में हो रहे चुनावों के दौरान उनका काम बहुत बढ़ गया है. चुनावों में फर्जी खबरों और झूठे दावों की बाढ़ आई हुई है.

69 देशों के 137 संगठनों का प्रतिनिधित्व करने वाले इंटरनेशनल फैक्ट-चेकिंग नेटवर्क (आईएफसीएन) की ताजा रिपोर्ट बताती है कि ये संगठन और लोग जिन चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, उनमें धन सबसे बड़ी है.

बंद होने के कगार पर

दक्षिण कोरिया का एकमात्र फैक्ट-चेकिंग संस्थान सोल नेशनल यूनिवर्सिटी (एसएनयू) बंद होने के कगार पर है क्योंकि पिछले साल उसके लिए फंडिंग के सबसे बड़े स्रोत, सर्च इंजन कंपनी नेवर ने मदद रोक दी है. नेवर ने यह नहीं बताया कि उसने यह फैसला क्यों लिया.

एसएनयू में संस्थान के निदेशक चोंग युन-रेयुंग कहते हैं कि सत्ताधारी पीपल पावर पार्टी का "राजनीतिक दबाव” इसकी सबसे बड़ी वजह है. पीपीपी के नेता एसएनयू पर पक्षपात का आरोप लगाते रहे हैं, जिससे सेंटर इनकार करता है. इससे पहले देश का एक और फैक्ट-चेकिंग संस्थान फैक्ट-चेक नेट पिछले साल बंद हो गया था, जब सरकार ने उसकी फंडिंग बंद कर दी थी.

आईएफसीएन की निदेशक एंजी द्रोबनिक होलन कहती हैं, "फैक्ट-चेकर के सामने फर्जी दावों और अफवाहों का अंबार है लेकिन उनके संसाधान सीमित हैं. जो लोग सूचना-युद्ध में लगे हैं और सबूत या तर्क की परवाह नहीं करते, वे फैक्ट-चेकरों पर दुष्प्रचार और कानूनी कार्रवाई का दबाव बना रहे हैं.”

प्रताड़ना और धमकियां

आईएफसीएन ने अपने सर्वे में पाया कि 72 फीसदी संस्थाओं ने प्रताड़ना झेली है जबकि बहुत से अन्य संगठनों ने शारीरिक हमलों या कानूनी धमकियों का सामना किया है.

क्रोएशिया में फैक्ट-चेकिंग वेबसाइट Faktograf.hr की निदेशक आना ब्राकुस बताती हैं कि उन्हें तब सुरक्षा बढ़ानी पड़ी जब उसके कर्मचारियों को जान से मारने की धमकियां मिलीं. ब्राकुस कहती हैं कि महिला कर्मचारियों के बारे में अभद्र टिप्पणियां की गईं. एक कर्मचारी को मेसेज मिला कि उसकी ‘उंगलियां काट दी जाएंगी.'

ब्राकुस कहती हैं तथ्यों की जांच के अभियान पर असर ना पड़े, यह सुनिश्चित करते हुए,  "इस तरह के तनाव से निपटने के लिए कुछ उपाय करने पड़े हैं.”

भारत में दुनिया के सबसे ज्यादा सर्टिफाइड फैक्ट-चेकर हैं. वहां आम चुनाव हो रहे हैं जिनमें सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के जीतने की संभावनाएं जताई जा रही हैं. लेकिन बीजेपी सरकार पर आरोप है कि वह मीडिया की आजादी को कुचल रही है.

देश के सबसे चर्चित फैक्ट-चेकरों में से एक आल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मुहम्मद जुबैर को हर वक्त ऑनलाइन हमले झेलने पड़ते हैं. उन्हें लगातार कानूनी कार्रवाई की धमकियां मिलती हैं. 2022 में उन्हें एक चार साल पुराने ट्वीट में "हिंदू देवताओं के अपमान” के आरोप में जेल में भी डाला गया.

सोशल मीडिया साइट एक्स पर धन जुटाने की कोशिश में जुबैर ने लिखा कि भारतीय मीडिया संस्थान "अपनी जुबान बंद रखने को मजबूर किए जा रहे हैं” और ‘सरकार के मुखपत्र' बनते जा रहे हैं.

तरह-तरह के हमले

आईएफसीएन की रिपोर्ट कहती है कि कम होते संसाधनों के कारण फैक्ट-चेकरों को ‘फर्जी मुकदमों' जैसी चुनौतियों से लड़ने के लिए बाहरी स्रोत खोजने पड़ रहे हैं.

उत्तरी मैंसिडोनिया की मेटामॉरफिस फाउंडेशन के संगठन ट्रूथमीटर के खिलाफ इस साल की शुरुआत में एक बड़ा अभियान चलाया गया था. संगठन के मुताबिक उसके कर्मचारियों को निंदा और अपमान से लेकर "जान से मारने की छिपी हुई धमकियां” तक झेलनी पड़ीं.

उत्तरी मैसिडोनिया में इसी महीने राष्ट्रपति चुनाव होने हैं. मेटामॉरफिस फाउंडेशन ने कहा, "हम जानते हैं हमारे खिलाफ ये अभियान, हमले, धमकियां और हेट स्पीच जारी रहेंगी, खासकर राष्ट्रपति चुनाव के दौरान.”

यही हाल अमेरिका का है जहां नवंबर में राष्ट्रपति चुनाव होने हैं. अमेरिका में एक फैक्ट-चेकिंग संस्था चलाने वाले एरिक लित्के कहते हैं कि तथ्यों की जांच करने वालों के खिलाफ सबसे बड़ा तर्क होता है कि उनकी जांच कौन करता है.

होलन कहती हैं, "मैंने देखा है कि यह अभियान चलाने वाले फैक्ट-चेकिंग को मीडिया की सेंसरशिप का तरीका बताते हैं. विडंबना यह है कि यह एक भ्रामक तर्क है जो बहस और आलोचना को दबाने का तरीका है.”

वीके/एए (एएफपी, रॉयटर्स)

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