कैमरे की नजर से सेक्स वर्कर्स के प्रति नजरिया बदलने की कोशिश
२५ नवम्बर २०२२यह पूछे जाने पर कि ‘उनका बचपन का सपना क्या था और वे बड़ी होकर क्या बनना चाहती थीं', उन्होंने कहा कि वे डॉक्टर, वकील, पुलिस अधिकारी या बुजुर्गों की देखभाल करने वाली कर्मचारी बनना चाहती थीं. पर अफसोस, उनका यह सपना पूरा न हुआ. अब वे सेक्स वर्कर के तौर पर काम करती हैं.
यह एक ऐसा पेशा है जिस पर आज भी जर्मन समाज में लोग खुलकर बात नहीं करना चाहते हैं, भले ही 2002 में कानून बनाकर वेश्यावृत्ति को वैधानिक तौर पर मान्यता दे दी गई. इसके अलावा, सेक्स वर्कर्स को सुरक्षा प्रदान करने के लिए जर्मनी की सरकार ने 2017 में वेश्यावृत्ति संरक्षण अधिनियम को लागू किया. हालांकि, वेश्यावृत्ति कानून लागू होने के दो दशक बाद भी सेक्स वर्कर्स की कानूनी और सामाजिक स्थिति में इतना सुधार नहीं हुआ है कि वे शोषण और अपराध से बच सकें.
अमालिए मानहाइम नामक परामर्श केंद्र की स्थापना महिला सेक्स वर्कर्स की सहायता के लिए की गई है. इसकी संस्थापक और सलाहकार बोर्ड की सदस्य यूलिया वेगे ने डीडब्ल्यू को बताया, "वेश्यावृत्ति कानूनी तौर पर वैध है, लेकिन इस पेशे को अपनाने वाली महिलाओं को काफी ज्यादा सामाजिक ताने झेलने पड़ते हैं. इसलिए, अक्सर वे दोहरी जिंदगी जीने को मजबूर होती हैं. यह किसी दूसरे पेशे की तरह नहीं है.”
रेड-लाइट एरिया की छिपी हुई हकीकत
वेगे ने बताया, "समाज में बड़े पैमाने पर यह धारणा बन चुकी है कि सेक्स वर्कर काफी ज्यादा पैसा कमाती हैं और वे अपनी इच्छा से यह काम करती हैं. कुछ मामलों में यह बात सही साबित हो सकती है, लेकिन ज्यादा संख्या ऐसी महिलाओं की है जो गरीबी की वजह से इस पेशे में आई हैं. जिंदगी गुजारने के लिए उन्हें कुछ पैसे मिल जाएं, इसलिए वे अपना शरीर बेचती हैं.”
उन्होंने आगे कहा, "काफी कम लोगों को ही रेड-लाइट इलाके की पृष्ठभूमि और यहां काम करने के तरीके की जानकारी होती है. बहुत सारे लोग यहां की क्रूर हकीकत से पूरी तरह बेखबर हैं.”
महिला सेक्स वर्कर्स की छिपी हुई जिंदगी को सभी के सामने लाने के लिए वेगे ने मानहाइम में मौजूद रायस-एंगलहॉर्न म्यूजियम और फोटोग्राफर हिप इर्लिकाया के साथ मिलकर ‘फेसलेस - विमिन इन प्रॉस्टिट्यूशन' नामक फोटो प्रदर्शनी की योजना बनाई. इस "फेसलेस-नेस” में चेहरे पर सफेद मुखौटा पहने महिलाओं की तस्वीरें दिखाई गई हैं. इसके जरिए दिखाया गया है कि समाज में हाशिये पर मौजूद ये महिलाएं किस तरह से अपनी वास्तविक पहचान छिपाते हुए जिंदगी जीती हैं.
निजी कहानियों का खुलासा
वेगे ने कहा, "यह प्रदर्शनी सेक्स वर्कर्स के प्रति जागरूकता, सहानुभूति, सम्मान, और प्रशंसा को बढ़ाने के लिए किया गया एक छोटा प्रयास है. हमने इसके जरिए यह बताने की कोशिश की है कि उन्हें भी सम्मान से जिंदगी जीने का अधिकार है.” उन्होंने आगे कहा कि जीवन में आईं चुनौतियों, आर्थिक जरूरतों, गरीबी और पर्याप्त शिक्षा की कमी जैसी कई वजहों से ये महिलाएं इस पेशे में आईं.
वेगे कहती हैं, "कुछ महिलाओं ने हमें यह भी बताया कि झूठे वादे करके उन्हें जर्मनी लाया गया और दलालों ने जबरन उन्हें इस पेशे में धकेल दिया. ऐसे में फोटो प्रदर्शनी एक माध्यम था जिसके जरिए वे अपनी भावनाओं, इच्छाओं, सपनों और उम्मीदों के बारे में बात कर सकती थीं.”
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इस प्रदर्शनी में दस महिलाओं ने भाग लिया. इन महिलाओं से इनके जीवन के अनुभवों के बारे में बातचीत की गई. इन्हीं महिलाओं ने यह तय किया कि किस तरह से उन्हें तस्वीरों में दिखाया जाए और वे तस्वीरें किस जगह पर खींची जाएं. वेगे ने बताया कि इस प्रदर्शनी को आयोजित करने के सभी चरणों में इन महिलाओं ने काफी अहम योगदान दिया है. जैसे-जैसे इस प्रदर्शनी की बात फैली, ज्यादा से ज्यादा महिलाओं ने टीम से संपर्क किया और जुड़ने की इच्छा जताई.
फोटोग्राफर हिप इर्लिकाया ने 2019 से लेकर 2021 तक इन महिलाओं के साथ काम किया और 1,800 से अधिक तस्वीरें लीं. इनमें से 40 तस्वीरों को इस प्रदर्शनी के लिए चुना गया.
फोटोग्राफी ही क्यों?
इर्लिकाया के लिए हाशिए पर मौजूद ऐसी महिलाओं के साथ काम करना नया अनुभव नहीं था. वह पहले भी ऐसी महिलाओं के साथ काम कर चुके हैं. उन्होंने इससे पहले बांग्लादेश में एसिड अटैक सर्वाइवर्स के साथ काम करने और उनकी तस्वीरें लेने के लिए इर्लिकाया फॉर एसिड सर्वाइवर्स ई.वी. नामक संगठन की स्थापना की थी.
र्लिकाया ने बताया कि पहले से चली आ रही धारणाओं को बदलने या कई मुद्दों पर जागरूकता फैलाने में फोटोग्राफी काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. इसलिए हमने इस प्रदर्शनी के लिए वेश्यावृत्ति से जुड़ी घिसी-पिटी तस्वीरों से जानबूझकर दूर रहने का फैसला किया.
उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "अगर गलत हाथों में पड़ जाए, तो फोटोग्राफी खतरनाक हथियार साबित हो सकती है. मैंने बांग्लादेश में ली गई तस्वीरों में महिलाओं को पीड़िता के तौर पर नहीं दिखाया था. मैं ‘वेश्यावृत्ति' को तस्वीरों के माध्यम से अलग तरीके से दिखा सकताी थाी, जैसे कि मजेदार या अश्लील तस्वीरें खींचकर. हालांकि, हमने ऐसा नहीं किया. हमने केवल महिलाओं और उनकी कहानियों पर ध्यान केंद्रित किया.”
इस तरह, इन ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीरों में महिलाओं को अपना काम करते हुए भी दिखाया गया है और मां की भूमिका में भी. साथ ही, उन्हें सफाईकर्मी के तौर पर भी दिखाया गया है. प्रदर्शनी में तस्वीरों के साथ-साथ महिलाओं के बयान और ऑडियो साक्षात्कार भी मौजूद हैं. हालांकि, पहली बार में मुखौटे विरोधाभाषी लग सकते हैं, लेकिन प्रदर्शनी की जिम्मेदारी संभाल रही स्टेफनी हरमन ने डीडब्ल्यू को बताया कि यह सेक्स वर्कर्स की जिंदगी के छिपे हुए पहलुओं को तस्वीरों के माध्यम से सामने लाने की कोशिश है.
उन्होंने कहा कि इर्लिकाया की तस्वीरों और महिलाओं के बयान एक साथ मिलकर वेश्यावृत्ति के सभी सामाजिक और जटिल मुद्दों को सामने लाते हैं.
हरमन ने आगे कहा कि 14 नवंबर को शुरू हुई इस प्रदर्शनी ने काफी लोगों को आकर्षित किया है. यहां आने के बाद लोगों को अहसास हुआ कि वेश्यावृत्ति को लेकर उनकी समझ काफी कम थी. साथ ही, कई चीजों को लेकर उनके पास गलत जानकारी थी. उन्होंने कहा, "लोगों को इस बात का अहसास दिलाना ही प्रदर्शनी आयोजित करने का मकसद था और हम इसमें सफल रहे.”
यह प्रदर्शनी 20 फरवरी 2023 तक आम लोगों के लिए खुली रहेगी.