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एक व्यक्ति के संघर्ष के सामने बेबस हुई कोयला खनन कंपनी

ओलिवर पीपर
१५ जनवरी २०२२

पश्चिमी जर्मनी स्थित गांव लुत्सेराथ में कोयले खनन होना है. यहां रहने वाले 90 लोगों को दूसरी जगह पर स्थानांतरित कर दिया गया है. सिर्फ एक व्यक्ति एकहार्ट हॉयकंप ने इस जगह से नहीं जाने का फैसला किया है.

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लुत्सेराथ गांव को बचाने में लगे एकहार्ट हॉयकंपतस्वीर: Oliver Pieper/DW

हॉयकंप  के खेत गार्त्सवाइलर की खुली खदान में खनन करने वालों के निशाने पर है. हॉयकंप  के पूर्वज लंबे समय से इस जमीन पर खेती करते आ रहे हैं. हॉयकंप  भी अपनी जमीन पर खेती करना चाहते हैं. वह कोयला खनन के लिए अपनी जमीन बेचने को तैयार नहीं हैं. 57 वर्षीय हॉयकंप  कहते हैं, "यह मेरा घर है. मैं यहीं रहना चाहता हूं.”

करीब 16 साल पहले, ऊर्जा क्षेत्र की दिग्गज कंपनी आरडब्ल्यूई ने भूरे कोयले के खनन के लिए लुत्सेराथ  की जमीन का अधिग्रहण शुरू कर दिया था. वहां मौजूद घरों को तोड़ा जाने लगा. इस गांव में रहने वाले अधिकांश लोगों को मुआवजा दिया गया और उन्हें यहां से कुछ किलोमीटर दूर बसाया गया. 2020 के अंत तक यहां 14 निवासी बचे थे. अब यह जगह पूरी तरह वीरान हो चुकी है.

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प्रतिरोध का प्रतीक बने हॉयकंपतस्वीर: Oliver Pieper/DW

इसके बावजूद, हॉयकंप  वह आखिरी व्यक्ति हैं जो यहां रह रहे हैं. वह हर संभव कोशिश कर रहे हैं, ताकि उन्हें यह जगह छोड़कर दूसरी जगह न जाना पड़े. इसे लेकर उन्होंने कोर्ट में मुकदमा भी दायर किया है. म्युंस्टर स्थित कोर्ट में अगले कुछ हफ्तों में इस मामले की सुनवाई होगी.

राजनीतिक मुद्दा बन गया हॉयकंप का संघर्ष

लुत्सेराथ की कहानी खेत को खदान में बदलने से कहीं अधिक है. हॉयकंप का संघर्ष अब एक राजनीतिक मुद्दा बन गया है. इन खेतों में खनन करने को लेकर कई सवाल खड़े हो गए हैं. सवाल यह है कि जर्मनी कोयले के इस्तेमाल को चरणबद्ध तरीके से बंद करने को लेकर कितना गंभीर है?

अगर नई सरकार वाकई में 2030 तक कोयले से ऊर्जा बनाने वाले संयंत्रों को बंद करना चाहती है, तो फिर कोयले का खनन करने के लिए खेती की जमीन को नष्ट करना कितना सही है?

अब हॉयकंप ने अपने खेतों को बचाने और खनन को रोकने के लिए विशेषज्ञों की सहायता ली है. वे कहते हैं कि खनन करने वाले लुत्सेराथ के आसपास के इलाकों में भी खनन कर सकते हैं. ऐसे में इस गांव की जमीन पर ही खनन करना क्यों जरूरी है. उन्होंने कहा, "तकनीकी रूप से आरडब्ल्यूई के लिए यह संभव है, लेकिन आर्थिक रूप से शायद उतना दिलचस्प नहीं है.”

जर्मन इंस्टीट्यूट फॉर इकोनॉमिक रिसर्च के अध्ययन से यह भी पता चलता है कि अगर जर्मनी पेरिस जलवायु समझौते के लक्ष्य को पूरा करना चाहता है और ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करना चाहता है, तो लुत्सेराथ में खनन नहीं करना चाहिए.

हॉयकंप  ने कहा, "हम 30 साल पहले वाली स्थिति में नहीं है जहां कोयले की जगह कोई दूसरा विकल्प मौजूद नहीं था. आज अक्षय ऊर्जा एक बेहतरीन विकल्प है. लोगों की संपत्ति जब्त करने, गांवों को तोड़ने, और CO2 के उत्सर्जन को बढ़ाने का क्या औचित्य है. मौजूदा समय में उपलब्ध विकल्पों को देखते हुए इस फैसले को स्वीकार नहीं किया जा सकता.”

बिजली के लिए एक हजार साल पुराने जंगल की बलि

आखिर तक डटे रहने का इरादा

हॉयकंप  पूछते हैं कि क्या उन्हें लुत्सेराथ छोड़ देना चाहिए? उन्हें पूर्वी राज्य ब्रांडनबुर्ग में चले जाना चाहिए जहां आरडब्ल्यूई ने मुआवजे के तौर पर जमीन देने की पेशकश की है? वह कहते हैं, "मैं वहां के लिए अजनबी हूं. ब्रांडनबुर्ग में सूखे के कारण मैं किसी भी फसल की अच्छी उपज नहीं कर सकता. मेरे पास आज की तुलना में जमीन तो ज्यादा होगी, लेकिन खराब मिट्टी वाली.”

उन्होंने कहा कि आरडब्ल्यूई का कोई भी प्रस्ताव उन्हें स्वीकार नहीं है. वे लुत्सेराथ में ही खेती करना चाहते हैं. वह कहते हैं, "मैं उस चीज के लिए समझौता क्यों करूं जो मेरे यहां जितनी अच्छी नहीं है.”

हॉयकंप  की कहानी जर्मनी में और जर्मनी से बाहर भी मीडिया में छायी हुई है. यह शक्तिशाली संगठन के खिलाफ एक आम आदमी के संघर्ष की कहानी है. वे अक्सर चिंतित रहते हैं कि क्या उनकी खेती उनसे छिन जाएगी? वे रात को चैन से सो भी नहीं पा रहे हैं. वह कहते हैं, "यह चिंता मेरे लिए बोझ बनती जा रही है, लेकिन मैंने लड़ाई शुरू कर दी है. मैं अंतिम समय तक डटा रहूंगा.”

जर्मनी की खाली खदानें

कार्यकर्ताओं से मदद

हॉयकंप ने यह लड़ाई अकेले शुरू की थी, लेकिन अब वे अकेले नहीं हैं. अधिकारियों ने 2018 में ही पास के हामबाख जंगल से पर्यावरण कार्यकर्ताओं को हटा दिया था. इसलिए, लुत्सेराथ पर्यावरण कार्यकर्ताओं का नया ठिकाना बन गया है.

दर्जनों युवा कार्यकर्ता हॉयकंप के घर के आसपास मौजूद हैं. उनके खेत पर पीले रंग का बड़ा पोस्टर लगाया गया है जिसमें लिखा है, "1.5 डिग्री का मतलब है: लुत्सेराथ पहले की तरह बना रहे.” पेड़ों पर कोयले के विरोध में लिखे स्लोगन वाले पोस्टर लगे हैं. यहां तक कि स्वीडिश कार्यकर्ता ग्रेटा थुनबर्ग भी सितंबर 2021 में यहां आयी थीं.

35 वर्षीय कार्यकर्ता डिर्क ने कहा, "समय हमारे पक्ष में है. जितने लंबे समय तक यहां रहेंगे हम उतने ही निश्चिंत होंगे कि लुत्सेराथ को बचाए रखने की हमारी कोशिश सफल होगी. हमने हॉयकंप को कह दिया है कि वे इस लड़ाई में अकेले नहीं हैं. हम हमेशा उनके साथ हैं.” ठंड की परवाह किए बगैर लोग यहां डटे हुए हैं. हॉयकंप के संघर्ष को सफल बनाने के लिए चंदा भी इकट्ठा किया जा रहा है, ताकि कानूनी लड़ाई लड़ने में मदद मिल सके.

कई कार्यकर्ताओं ने हॉयकंप के सम्मान में कविता भी लिखी है. डिर्क भी उनमें से एक हैं. डिर्क ने जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए खाद्य उद्योग की अपनी नौकरी छोड़ दी. वे लुत्सेराथ को बचाने के लिए कई वर्षों से लगे हैं. वे हॉयकंप के यार्ड में अस्थायी तौर पर बने घर में रहते हैं.

खुदाई करने वाले लुत्सेराथ के करीब बढ़ते जा रहे हैं. डिर्क कहते हैं, "वे धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे हैं. खुदाई करने वाले लंबे समय से दिन-रात काम कर रहे हैं, लेकिन मैं आखिरी दिन तक यहां रहूंगा. मुझे लगता है कि भविष्य के लिए ऐसा करना जरूरी है.”

कंपनी के लिए मुनाफे का सौदा

आरडब्ल्यूई ऊर्जा क्षेत्र की दिग्गज कंपनी है. कई कार्यकर्ताओं का यह सवाल है कि क्या लुत्सेराथ आरडब्ल्यूई के लिए हामबाख जंगल बन पाएगा? दो साल पहले जर्मनी की सरकार ने कोयले से चलने वाले ऊर्जा संयंत्रों को बंद करने और वुडलैंड को सुरक्षित करने का फैसला लिया था.

हालांकि, फैसले के दौरान सरकार ने यह तय किया था कि हामबाख जंगल बचा रह सकता है, लेकिन आरडब्ल्यूई को राइनलैंड लिग्नाइट खनन क्षेत्र में भूरे रंग के कोयले की खनन की अनुमति है. आरडब्ल्यूई के लिए यहां करीब 90 करोड़ टन कोयला है जिसकी कीमत काफी ज्यादा है.

आरडब्ल्यूई के मीडिया प्रतिनिधि गीडो स्टीफन ने डीडब्ल्यू के सवालों के जवाब में कहा, "नॉर्थ राइन वेस्टफेलिया राज्य की सरकार ने मार्च में स्पष्ट रूप से क्षेत्र के इस दक्षिणी हिस्से में खनन की अनुमति दी है. आरडब्ल्यूई अभी भी हॉयकंप को लेकर सौहार्दपूर्ण समाधान खोजने की कोशिश कर रही है.”

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मामले को टाल रही है नई सरकार

कानूनी सहायता के लिए, हॉयकंप और अन्य कार्यकर्ताओं ने हैम्बर्ग की रहने वाली वकील रोडा फेरहेयेन का रूख किया है. फेरहेयन पेरू के साऊल लुचियानो लाल्या का भी मुकदमा लड़ रही हैं. लियुया ने आरडब्ल्यूई पर मुकदमा किया है कि इस कंपनी की वजह से उनके देश में जलवायु परिवर्तन का नकारात्मक असर पड़ा है, इसलिए कंपनी को इसके बदले मुआवजा देना होगा.

फेरहेयन को 29 अप्रैल, 2021 को सबसे बड़ी सफलता मिली थी. यह जर्मन सरकार के खिलाफ संवैधानिक अदालत का एक फैसला था. अदालत ने फैसला सुनाया कि सरकार को जलवायु संरक्षण के लिए सावधानी बरतनी चाहिए और युवा पीढ़ियों के भविष्य की रक्षा करनी चाहिए. इस वजह से भी फेरहेयन को उम्मीद है कि अदालत लुत्सेराथ के पक्ष में फैसला सुनाएगी.

वह कहती हैं, "मौजूदा स्थिति को देखते हुए 2030, 2035 या 2038 तक कोयले का इस्तेमाल को बंद किए जाने की पूरी संभावना है. जर्मन संवैधानिक अदालत ने उत्सर्जन को लेकर जो लक्ष्य प्राप्त करने के लिए कहा है उसके लिए हमें जल्द से जल्द कोयले का इस्तेमाल को बंद करना होगा.”

उन्होंने कहा, "अदालत इस बात से सहमत है कि कोयला खनन के साथ हम दशकों से जो कर रहे हैं वह आम आदमी के हित में नहीं है. हर अतिरिक्त टन जो खनन किया जाता है वह आने वाली पीढ़ियों के लिए एक बोझ है.”

अगर म्युंस्टर स्थित अदालत हॉयकंप के खिलाफ फैसला सुनाती है, तो फेरहेयन और उनके मुवक्किल को संवैधानिक अदालत का रूख करना होगा. वहीं, जर्मनी की नई सरकार इस मामले को टाल रही है. सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी (एसडीपी), ग्रीन पार्टी और फ्री डेमोक्रैटिक पार्टी (एफडीपी) के नेताओं का कहना है कि लुत्सेराथ मामले का फैसला अदालत ही करेगी.