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आपदाओं का नुकसान झेल रहे गरीब देशों की मदद कौन करेगा

१८ नवम्बर २०२२

बाढ़, तूफान और सूखा झेल रहे दुनिया के गरीब देशों की मदद कौन करे इसे लेकर आर्थिक रूप से समृद्ध देशों में सहमति नहीं बन पा रही है. जर्मन विदेश मंत्री ने ज्यादा उत्सर्जन करने वाले देशों से भागीदारी बढ़ाने की मांग की है.

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जलवायु संकट का मुआवजा उत्सर्जन करने वाले देशों को उठाना होगा
जलवायु का संकट कई देशों और समुदायों के लिए अस्तित्व का संकट हैतस्वीर: Mario Tama/Getty Images

जर्मन विदेश मंत्री अनालेना बेयरबॉक ने जलवायु परिवर्तन के कारण नुकसान झेल रहे गरीब देशों की मदद के लिए चीन से और धन देने की मांग की है. बेयरबॉक ने माना कि हाल के वर्षों में और  इस समय जो नुकसान हो रहे हैं उसकी जिम्मेदारी औद्योगिक देशों पर लेकिन भविष्य के लिए भी तो कोई जिम्मेदारी बनती है.

आज का उत्सर्जन कल का संकट

बेयरबॉक का कहना है, "यह सच है कि हम यूरोप में और उत्तरी अमेरिका जीवाश्म ईंधन से आई समृद्धि के साथ औद्योगिक देश के रूप में बीते सालों और फिलहाल जो कुछ जलवायु को नुकसान हो रहा है उसके लिए जिम्मेदार हैं." इसके साथ ही जर्मन विदेश मंत्री ने यह भी कहा, "आज उत्सर्जन करने वाले सभी देश भविष्य में होने वाले जलवायु के नुकसान के लिए जिम्मेदार हैं, सभी देश अब दिखा सकते हैं कि वो बड़े लक्ष्यों और ज्यादा भाईचारा के लिए तैयार हैं."   टीवी चैनलों को दिए एक इंटरव्यू में बेयरबॉक यह साफ कर चुकी हैं कि उनका इशारा किस तरफ है, "अगर वो अपने उत्सर्जन में भारी कटौती के लिए तैयार नहीं होते तो, चीन को फिर भविष्य में होने वाले नुकसान का मुआवजा देना होगा."

उत्सर्जन का मुआवजा देना होगा
शर्म अल शेख में अनालेना बेयरबॉकतस्वीर: Christophe Gateau/dpa/picture alliance

मात्रा के हिसाब से चीन फिलहाल दुनिया में ग्रीनहाउस गैसों का सबसे ज्यादा उत्सर्जन करता है. 130 से ज्यादा विकासशील देशों का संगठन जी77 चीन के साथ मिल कर औद्योगिक देशों से एक कोष बनाने की मांग कर रहा है जो सूखा, बाढ़ या आंधी जैसी आपदाओं से होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए होगा. ग्लोबल वार्मिंग के कारण ऐसी आपदाएं बार बार आ रही हैं.

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गरीब देशों के लिए फंड

इस मुद्दे पर चीन के रुख की आलोचना होती है क्योंकि चीन बड़ी आर्थिक ताकत और ग्रीनहाउस गैसों का प्रमुख उत्सर्जक होने के बाद भी इस मामले में जिम्मेदारी के साथ दानदाता के रूप में खुद को नहीं देखता. इस बीच जर्मनी ने तथाकथित ग्लोबल एडेप्शन फंड के लिए 6 करोड़ डॉलर का दान देने की घोषणा की है. जर्मन पर्यावरण मंत्री स्टेफी लेम्के और विदेश मंत्री बेयरबॉक ने मिस्र के शर्म अल शेख में गुरुवार को इसकी घोषणा की.

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एडेप्टेशन फंड विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते समुद्री जलस्तर या भूमि क्षरण जैसी मुसीबतों का सामना करने के लिए धन मुहैया कराता है.  पिछले साल जर्मनी ने इसके लिए 5 करोड़ डॉलर की रकम दी थी जो पर्यावरण मंत्रालय के मुताबिक अब तक का सबसे बड़ा दान है. 

जलवायु परिवर्तन की विनाशलीला
बढ़ता समुद्री जलस्तर कई समुदायों के विनाश का कारण बन सकता हैतस्वीर: Mario Tama/Getty Images

जर्मन विदेश मंत्री का कहना है कि जब जलवायु परिवर्तन से लड़ने की बात हो तो देशों यूरोपीय संघ के पीछे नहीं छिप सकते. जलवायु सम्मेलन में आखिरी समझौते के लिए बातचीत अब समय सीमा को पार कर अतिरिक्त समय में चली गई है लेकिन सभी देश किसी एक बिंदु पर सहमत नहीं हो सके हैं. इस साल का जलवायु सम्मेलन में मुख्य रूप से "हानि और नुकसान" का मुद्दा ही छाया हुआ है. विकसित और विकासशील देशों के बीच यह मुद्दा लंबे समय से एक बड़े मतभेद का कारण रहा है. शुक्रवार को यूरोपीय संघ ने जलवायु परिवर्तन के कारण आपदाओं का सामना कर रहे गरीब और कमजोर देशों के लिए एक विशेष फंड की घोषणा की. इसके बारे में अनालेना बेयरबॉक का कहना है, "सिर्फ उन्हीं देशों को इसका फायदा मिलना चाहिए जिन्हें इसकी जरूरत है ना कि उन्हें जो सिर्फ कागजों पर विकासशील देश हैं."

एनआर/ओएसजे (एएफपी)