जर्मनी: युवा महिलाओं और लड़कियों पर बेघर होने का खतरा ज्यादा
२१ सितम्बर २०२४जर्मनी में जिन लोगों के पास अपना घर नहीं है, उनमें करीब 20 फीसदी लोगों की उम्र 25 साल से कम है. यह जानकारी फेडरल वर्किंग ग्रुप ऑन होमलेस असिस्टेंस (बीएजी डब्ल्यू) की नई रिपोर्ट से मिली है. यह संगठन जर्मनी में बेघर लोगों के लिए सहायता उपलब्ध कराने वाली 227 संस्थाओं और 1,000 से ज्यादा सेवाओं का प्रबंधन करता है.
संगठन की हालिया रिपोर्ट में बेघर लोगों और बेघर होने के खतरे का सामना कर रहे लोगों की जिंदगी और रहन-सहन की जानकारी दी गई है. यहां बेघर होने का मतलब यह है कि किसी व्यक्ति के पास या तो अपना घर नहीं है या वह जिस घर में रह रहा है, उसके लिए किराये का अनुबंध नहीं है. आमतौर पर किराये का घर न होने के बावजूद लोग सड़कों पर नहीं रहते हैं. कई लोग अपने दोस्तों या परिचित के साथ रहने के लिए जगह ढूंढ़ते हैं. इसे 'काउच हॉपिंग' कहा जाता है.
बीएजी डब्ल्यू की रिपोर्ट के लेखकों में से एक मार्टिन कोजित्सा का कहना है, "हम इसे 'परोक्ष तौर पर बेघर होना' कहते हैं. आमतौर पर जब आप 'बेघर' शब्द सुनते हैं, तो आपको उन लोगों का ध्यान आता है जो सड़कों पर रहते हैं." हालांकि, 2022 में 18 साल से कम उम्र के जिन लोगों ने बेघर लोगों से जुड़ी सेवाओं में खुद को रजिस्टर किया, उनमें 16 फीसदी लोग ऐसे थे जिन्होंने पिछली रात सड़क पर बिताई थी.
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ज्यादा जोखिम में हैं युवा महिलाएं और लड़कियां
इस रिपोर्ट से एक चिंताजनक रुझान सामने आया कि बेघर महिलाओं में अधिक आयुवर्ग की महिलाओं के मुकाबले 25 साल से कम की महिलाओं और लड़कियों की संख्या कहीं ज्यादा है. 25 वर्ष से अधिक आयु की सभी श्रेणियों में बेघर महिलाओं का अनुपात 23 फीसदी से कम है. वहीं, 18 वर्ष से कम आयु के बेघर लोगों में 38 फीसदी महिलाएं हैं. 18 से 20 वर्ष के आयु समूह में यह अनुपात 40 फीसदी है.
कोजित्सा ने डीडब्ल्यू को बताया, "हमें लगता है कि युवा महिलाएं और लड़कियां आत्मनिर्भर हो जाती हैं और माता-पिता का घर जल्दी छोड़ देती हैं, लेकिन वे मदद भी जल्दी मांगती हैं. हमारा यह भी मानना है कि हिंसा और दुर्व्यवहार इसमें एक बड़ी भूमिका निभाते हैं, जो कि बेशक पुरुषों की तुलना में महिलाओं के ज्यादा होता है."
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युवाओं को दोस्तों और परिचितों के साथ रहने के लिए जगह मिलने की संभावना काफी ज्यादा होती है. 18 वर्ष से कम आयु के 43 फीसदी और 18 से 24 वर्ष की आयु के 47 फीसदी लोगों को इन जगहों पर रहने की सुविधा मिलने की संभावना होती है. विशेषज्ञों का कहना है कि यह अक्सर असुरक्षित होता है, खासकर लड़कियों और युवा महिलाओं के लिए.
बर्लिन में बेघर बच्चों के लिए बनी एक चैरिटी संस्था है, श्ट्रासेनकिंडर ई. वी. इसके बोर्ड मेंबर और सामाजिक कार्यकर्ता मार्कुस क्यूटर ने बताया कि सिर पर छत के बदले कई लोग जबरदस्ती के रिश्तों में बंध जाते हैं.
क्यूटर बताते हैं, "उन्हें रहने के लिए जगह दी जाती है और कुछ समय बाद उन्हें भुगतान करना पड़ता है. चूंकि उनके पास पैसे नहीं होते, इसलिए वे दूसरे तरीकों से भुगतान करते हैं. ड्रग डीलर और दलाल स्थिति का फायदा उठाने के लिए तैयार रहते हैं, यहां तक कि सरकारी घरों और शेल्टर में भी. स्थिति ऐसी हो जाती है कि कम उम्र की लड़कियां जल्द ही सड़कों पर आ जाती हैं और खुद को ऐसे माहौल में पाती हैं, जो उनके लिए बेहद नुकसानदेह होता है."
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एजेंसियों का चक्कर काटते रहते हैं युवा
जर्मन कानून के तहत माता-पिता और युवा कल्याण से जुड़ी सेवाओं की जिम्मेदारी है कि वे सुनिश्चित करें कि बच्चों और युवाओं के पास रहने के लिए सुरक्षित जगह हो. इस दिशा में व्यापक सहायता सेवाएं उपलब्ध हैं. इसके बावजूद श्रम और सामाजिक मामलों के मंत्रालय की 2022 में आई एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया कि जर्मनी में लगभग 2,64,000 बेघर लोगों में से 38,000 ऐसे हैं, जिनकी उम्र 14 से 27 साल के बीच है.
कोजित्सा के अनुसार, इसकी कई वजहें हैं. उन्होंने कहा, "यह जिंदगी का ऐसा पड़ाव होता है, जहां युवा लोग आमतौर पर अपने माता-पिता से नाता तोड़ रहे होते हैं, लेकिन अपने करियर में पूरी तरह स्थापित नहीं हुए होते हैं. साथ ही, उनके पास पर्याप्त आर्थिक संसाधन नहीं होते हैं."
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जर्मनी में सामाजिक कल्याण से जुड़ी सेवाएं जिस तरह से चलाई जाती हैं, वह भी युवाओं के बेघर होने की एक अन्य वजह है. युवा कल्याण सहायता 18 वर्ष की आयु के बाद भी युवाओं के लिए एक कानूनी अधिकार है, लेकिन अक्सर इन्हें यह सहायता नहीं मिल पाती है.
कोजित्सा कहते हैं, "युवाओं को अक्सर बिना घर मिले ही युवा कल्याण सेवाओं के तहत मिलने वाले लाभ बंद कर दिए जाते हैं. ऐसे कारणों से कई बार युवा अपने दोस्तों और परिचितों के पास रहने के लिए मजबूर होते हैं. यहां तक कि अगर उन्हें कहीं जगह नहीं मिलती है, तो वे मजबूरन सड़कों पर रात बिताते हैं."
जर्मनी में 'रोजगार केंद्र' के माध्यम से बेरोजगारी सहायता जैसी कल्याण सेवाओं का लाभ लिया जा सकता है, लेकिन युवाओं के लिए यह सहायता हासिल करना एक जटिल प्रक्रिया है. वे अक्सर एक एजेंसी से दूसरी एजेंसी का चक्कर काटते रह जाते हैं. कोजित्सा कहते हैं, "नगरपालिकाओं में अक्सर यह स्पष्ट नहीं होता है कि किस एजेंसी को यह जिम्मेदारी दी गई है. युवाओं को एक जगह से दूसरी जगह भेजा जाता है. कभी-कभी तो यह भी पता नहीं चलता कि सहायता मिलेगी या नहीं. यही वजह है कि हम चाहते हैं कि इस व्यवस्था को बेहतर बनाया जाए, ताकि युवाओं को सहायता मिल सके."
सामाजिक कल्याण और सहायता सेवाओं से नहीं मिल रहा लाभ
रोजगार केंद्र के माध्यम से युवाओं को आर्थिक मदद को जर्मनी में "बुर्गरगेल्ड" (नागरिकों के लाभ) कहा जाता है. युवाओं को इसमें समस्या आ सकती है क्योंकि युवा कल्याण सेवाओं के विपरीत इसमें कोई शैक्षणिक अनिवार्यता नहीं है. यहां लोगों को काम दिलाने पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है. दावेदारों को यह भी खतरा है कि अगर वे सरकारी कर्मचारियों या सामाजिक कार्यकर्ताओं की तय मांगों को पूरा नहीं करते हैं, तो उन्हें सामाजिक कल्याण के तहत मिलने वाला भुगतान रोक दिया जाएगा.
क्यूटर बताते हैं, "स्कूल से लेकर युवा कल्याण कार्यालय तक सभी सरकारी सहायता सेवाएं जटिलताओं और समस्याओं से भरी हुई हैं. ऐसा नहीं है कि उन्हें युवाओं की चिंता नहीं है. हालांकि, युवाओं की जरूरतें और मांगें इतनी ज्यादा हैं कि उन्हें संभालने में सरकार को काफी परेशानी हो रही है."
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इस साल अप्रैल में जर्मन सरकार ने 2030 तक सभी लोगों को घर उपलब्ध कराने के लिए एक राष्ट्रीय कार्ययोजना जारी की. आलोचकों का कहना है कि इस प्रस्ताव में स्पष्ट तौर पर जानकारी नहीं दी गई है. क्यूटर के मुताबिक, सरकार को अपने स्कूलों और सामाजिक सेवाओं के संचालन के तरीके पर फिर से विचार करना चाहिए. साथ ही, स्कूलों और स्वतंत्र सहायता सेवाओं के बीच सहयोग को बढ़ावा देने और किफायती आवास की गंभीर कमी से निपटने की जरूरत है. उन्होंने कहा, "जब अच्छी नौकरी वाले लोगों के लिए घर खोजना मुश्किल है, तो युवा घर कैसे ढूंढ़ पाएंगे? हम जिन युवाओं के साथ काम करते हैं, वे कतार में सबसे पीछे हैं."
श्ट्रासेनकिंडर केंद्रों में बेघर बच्चों और युवाओं को मुफ्त भोजन, स्लीपिंग बैग और कपड़े उपलब्ध कराए जा सकते हैं. साथ ही, यह उनके लिए ऐसी जगह हो सकती है जहां वे सुरक्षित महसूस कर सकें और उनकी बात सुनी जा सके.
क्यूटर ने कहा, "सड़कों पर रहने वाले बच्चे और युवा पूरी तरह से खुद को जीवित रखने पर ध्यान देते हैं. श्ट्रासेनकिंडर केंद्रों में उनके पास अपने जीवन के बारे में सोचने और बड़े सपने देखने के मौके होते हैं. हम उन्हें उनके सपनों को पूरा करने में मदद करते हैं. हमारी मदद के बिना उनके लिए ऐसा करना मुश्किल होगा."