सरकार को कुछ नहीं मानते ये लोग
जर्मनी में राइषबुर्गर अभियान से जुड़े लोग जर्मन सरकार को कुछ नहीं समझते. ना तो वे टैक्स भरना चाहते हैं और ना ही जुर्माना. इसके समर्थन आज भी खुद को एक काल्पनिक जर्मन साम्राज्य का हिस्सा मानते हैं.
क्या मानते हैं राइषबुर्गर
राइषबुर्गर - इस जर्मन शब्द का अर्थ है "राइष के नागरिक" और 'राइष' उनके लिए वह साम्राज्य है जो 1937 या उससे भी काफी पहले 1871 के दौर में हुआ करता था. वे मानते हैं कि उस समय की सीमाएं ही सही हैं और आज का आधुनिक देश जर्मनी असल में मित्र सेनाओं का बनाया प्रशासन है.
ये करते क्या हैं?
राइषबुर्गर सरकार को किसी भी तरह का टैक्स या जुर्माना भरने में विश्वास नहीं रखते. वे घर जैसी निजी संपत्ति को जर्मन सरकार के नियंत्रण क्षेत्र के बाहर मानते हैं. एक ओर तो ये बेसिक लॉ कहे जाने वाले जर्मन संविधान और दूसरे कानूनों को नहीं मानते लेकिन जर्मन अदालतों में खूब मुकदमे दायर करते हैं. इन लोगों ने अपने काल्पनिक पासपोर्ट और ड्राइविंग लाइसेंस तक बनाए हुए हैं.
कितने खतरनाक हैं?
सन 1980 के दशक में ये एक अलग थलग किस्म के, बिना किसी नेता वाले समूह के रूप में सामने आए. जर्मन गुप्तचर सेवा का अनुमान है कि आज जर्मनी में करीब 19,000 लोग इस अभियान से जुड़े हैं. इनमें से करीब 950 लोगों की पहचान धुर दक्षिणपंथियों के रूप में हो चुकी है. इनमें से 1,000 के करीब लोगों के पास अपने हथियार रखने का लाइसेंस भी है.
कौन लोग बनते हैं सदस्य
जर्मन प्रशासन एक औसत राइषबुर्गर को इस तरह परिभाषित करती है कि अकसर वह एक औसत 50 साल का पुरुष होता है, जिसकी सामाजिक और वित्तीय हालत अच्छी ना हो. इस अभियान के ज्यादातर सदस्य जर्मनी के दक्षिणी और पूर्वी हिस्सों में बसे हैं. इनमें से एक की पहचान मिस्टर जर्मनी का खिताब जीत चुके व्यक्ति के रूप में हुई, जिसे पुलिस पर गोली चलाने के जुर्म में 2019 में ही सात साल की जेल हुई है.
कब आया बदलाव
अक्टूबर 2017 में एक जर्मन पुलिस अधिकारी की हत्या के दोषी उम्रकैद की सजा मिली. अतिवादी गुटों के साथ जर्मन प्रशासन के निपटने के तरीकों में यहीं से एक बड़ा बदलाव आया माना जाता है. इस मामले में ना केवल जर्मनी बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोरीं और तबसे इनके हिंसा करने की संभावना को और गंभीरता से लिया जाने लगा.
जर्मन सरकार इनसे कैसे पेश आती है
जर्मन प्रशासन पर आरोप है कि उसने लंबे समय तक इनके खतरे को गंभीरता से नहीं लिया. 2017 में पहली बार जर्मनी की घरेलू गुप्तचर सेवा ने इनके द्वारा अंजाम दिए गए अपराधों के बारे में अलग से दस्तावेज रखने शुरू किए. तब से राइषबुर्गरों के ठिकाने पर अनगिनत छापे डाले गए और इनसे जुड़े कई उपसमूहों को बैन भी किया जा चुका है. पुलिस और सेना के भीतर भी किसी राइषबुर्गर के होने की भी जांच की गई.
कोई अंतरराष्ट्रीय कनेक्शन
राइषबुर्गर कई मौकों पर रूस का झंडा लहराते देखे गए हैं, जिसके कारण ऐसे आरोप लगे कि जर्मन सरकार को अस्थिर करने के लिए उन्हें रूस से मदद मिलती है. इनकी तुलना कभी तभी अमेरिकी समूह "फ्रीमेन-ऑन-दि-लैंड" से भी होती है, जो सरकार के कानूनों को नहीं मानते और केवल अपने बनाए नियम मानते हैं. (सामांथा अर्ली, रीना गोल्डेनबर्ग/आरपी)