1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

बाल्टिक सागर में सुरंग क्यों बना रहा है जर्मनी

२२ सितम्बर २०२०

अगर बाल्टिक सागर में पानी के नीचे दो देशों जर्मनी और डेनमार्क को जोड़ने वाली 18 किलोमीटर लंबी रोड और रेल सुरंग बन जाती है, तो वह विश्व की ऐसी सबसे लंबी सुरंग होगी. लेकिन इसे लेकर कई कड़ी आपत्तियां सामने आई हैं.

https://p.dw.com/p/3ipf6
Bildergalerie Straßenverkehr
प्रतीकात्मक फोटो: 2018 में दक्षिण सागर में इस पानी के ऊपर बने सबसे बड़े पुल के अलावा पानी के नीचे एक रेल और रोड लिंक सुरंग भी बनी थी.तस्वीर: picture-alliance/Photoshot/L. Xu

जर्मन शहर लाइपजिग की अदालत में जर्मनी और डेनमार्क के बीच एक नए रोड और रेल सुरंग प्रोजेक्ट को लेकर सुनवाई होनी है. इसे बनाने की योजना तैयार करने वाले और इसका विरोध करने वाले पर्यावरण कार्यकर्ता अपने अपने तर्क रखेंगे. जर्मनी और डेनमार्क के बीच यह सुरंग बाल्टिक सागर के नीचे से गुजरेगी.

"बेल्टरेटर" अलायंस नामक गठबंधन ने इस सुरंग प्रोजेक्ट पर रोक लगाने की मांग की है. योजना के अनुसार, जर्मनी के फेमार्न द्वीप को डेनमार्क के लोलांड द्वीप से जोड़ा जाना है. फिलहाल लाइपजिग की केंद्रीय प्रशासनिक अदालत में इसका विरोध कर रहे पक्ष को मौखिक रूप से अपनी दलीलें पेश करने का मौका मिलेगा. विरोध पक्ष में दो बड़े पर्यावरण संगठनों के अलावा कई फेरी कंपनियां भी हैं.

क्यों है विरोध

पर्यावरण संस्थाओं ने चिंता जताई है कि इस सुरंग प्रोजेक्ट के कारण इलाके के समुद्री जीवन और तमाम पक्षियों के जीवन पर बुरा असर पड़ेगा. वहीं, फेरी कंपनियां इस बात पर आपत्ति जता रही हैं कि इसके कारण उनका काम छिन जाएगा और तमाम लोगों की नौकरी चली जाएगी. यह फेरी कंपनियां पानी के रास्ते लोगों और सामान को जर्मनी से डेनमार्क के बीच लाने और ले जाने का काम करती आई हैं.

22 सितंबर से शुरू होने वाली पहले दौर की सुनवाई के लिए अदालत ने सात दिन दिए हैं. इसके बाद अक्टूबर में दूसरे दौर की सुनवाई होगी. दूसरे दौर में अदालत में जर्मन शहर फेमार्न और एक किसान को इस प्रोजेक्ट में पक्ष में अपनी दलीलें पेश करने का मौका मिलेगा. इस पर फैसले के लिए अब तक किसी तारीख की घोषणा नहीं की गई है. 

फेमार्न बेल्ट सुरंग की लंबाई 18 किलोमीटर होगी. जर्मनी के फेमार्न द्वीप को डेनमार्क के लोलांड द्वीप से जोड़ने वाली इस सुरंग के लिए डेनिश कंपनी ने 2016 की कीमतों के आधार पर करीब 7.1 अरब यूरो (8.3 अरब डॉलर) की लागत आने का अनुमान लगाया था. इसे बनाने को लेकर डेनमार्क सरकार ने 2015 में अनुमति दी थी.

आरपी/एके (डीपीए)

__________________________

हमसे जुड़ें: Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore