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चीन को चिप कंपनियां नहीं बेचेगा जर्मनी

१० नवम्बर २०२२

चीन के साथ जर्मनी के कारोबारी रिश्तों को लेकर चल रही उथल पुथल के बीच जर्मनी ने दो कंपनियों के अधिग्रहण पर रोक लगा दी है. सरकार की दलील है कि यह सौदा जर्मनी की व्यवस्था और सुरक्षा को खतरे में डाल सकती है.

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तस्वीर: Ute Grabowsky/photothek/picture alliance

चीनी कंपनी साई माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स जर्मन कंपनी एल्मोस के डॉर्टमुंड फैक्ट्री को खरीदने वाली थी. साई माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स इसे सहायक स्वीडिश कंपनी सिलेक्स के जरिये खरीदना चाहती थी. अर्थव्यवस्था मंत्रालय ने बताया कि सरकार ने अधिग्रहण को खारिज कर दिया क्योंकि "खरीद जर्मनी की व्यवस्था और सुरक्षा को खतरे में डाल सकती है."

दूसरा अधिग्रहण जिसे रोका गया, वह बवेरिया का ईआरएस इलेक्ट्रॉनिक है, जो वेफर मैन्यूफैक्चरर को कूलिंग तकनीक मुहैया कराता है.     

जर्मनी के आर्थिक मामलों के मंत्री रॉबर्ट हाबेक ने कहा है, "हमें कंपनी के अधिग्रहण पर बहुत बारीकी से नजर रखनी चाहिए जब यह अहम बुनियादी ढांचे से जुड़ा हो या जब टेक्नोलॉजी के गैर-यूरोपीय संघ के देशों के खरीदारों तक जाने का कोई खतरा हो."  

चीन को नहीं बेचेगा चिप कंपनियां जर्मनी
जर्मनी के आर्थिक मामलों के मंत्री रॉबर्ट हाबेकतस्वीर: Christian Spicker/IMAGO Images

कानूनी कार्रवाई का सहारा

एल्मोस और सिलेक्स ने इस फैसले पर "खेद" जताया है. एल्मोस ने कहा कि यह सौदा यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में सेमीकंडक्टर के उत्पादन को मजबूत करता. कंपनी कानूनी कार्रवाई पर विचार कर रहा है क्योंकि अधिग्रहण पर रोक की घोषणा समीक्षा अवधि के खत्म होने से पहले और कंपनियों को सुनवाई का मौका दिये बिना की गई. एल्मोस मुख्य रूप से ऑटोमोबाइल पुर्जे बनाती है. सिलेक्स इसे 8.5 करोड़ यूरो में खरीदना चाह रहा था.

चीन को लेकर बढ़ रही आशंकाएं

जर्मनी में बीजिंग पर ज्यादा निर्भरता और चीन से जुड़ी कंपनियों के हाथों में अहम इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट जाने को लेकर आशंकाएं बढ़ रही हैं. यूक्रेन पर रूस के हमले और उसके बाद यूरोप के गैस आपूर्ति में कमी ने चिंताओं को और बढ़ा दिया है. खासकर, माइक्रोचिप उद्योग जांच के दायरे में आ गया है, क्योंकि यह इलेक्ट्रॉनिक्स से लेकर बैटरी से चलने वाले वाहन उद्योग तक में इस्तेमाल किए जाने वाले प्रमुख पार्ट्स का उत्पादन करता है. इस साल की शुरुआत में, यूरोपीय संघ सेमीकंडक्टर में यूरोप की बाजार में हिस्सेदारी को दोगुना करने और एशिया से आपूर्ति पर निर्भरता कम करने के मकसद से 'चिप्स एक्ट' लेकर आया था.

दोस्ती से प्रतिद्वंद्विता की ओर बढ़ते दिख रहे चीन और जर्मनी

ग्रीन पार्टी के हाबेक ने कहा है कि जर्मनी निवेशकों के लिए खुला रहा, लेकिन "हम भोले नहीं हैं." उन्होंने चीन के बयानों का जिक्र करते हुए ये बताने की कोशिश की कि बीजिंग उत्पादन और विकास पर जानकारी बटोरने की कोशिश कर रहा है.

जर्मन चांसलर की बीजिंग यात्रा पर पूरे यूरोप की नजर

शॉल्त्स का विरोध

हाबेक ने हाल ही में चीन से आने वाले निवेश को लेकर चांसलर ओलाफ शॉल्त्स को निशाने पर लिया था. उन्होंने हैम्बर्ग बंदरगाह में चीनी शिपिंग फर्म कॉस्को के हिस्सेदारी खरीदने का पुरजोर विरोध किया था. इसके बाद बेचे जाने वाली हिस्सेदारी कम करने के लिए मजबूर होना पड़ा. शॉल्त्स ने बीजिंग के साथ मजबूत व्यापारिक संबंधों के महत्व को बार-बार दोहराया है जिस पर जर्मन उद्योग के दिग्गजों का भी काफी जोर है.       

जर्मनी के लिए प्रमुख बाजार है चीन

चीन जर्मन सामानों के लिए एक प्रमुख बाजार है, खासकर दिग्गज कार कंपनियों फॉल्क्सवागेन, बीएमडब्ल्यू और मर्सिडीज-बेंज के लिए. जर्मनी में बड़ी संख्या में लोगों का रोजगार भी इस संबंध पर निर्भर है. पिछले हफ्ते जर्मन कारोबारियों के एक प्रतिनिधिमंडल के साथ बीजिंग गये जर्मन चांसलर ने चीनी नेताओं से कहा कि बर्लिन व्यापार में समान व्यवहार की अपेक्षा करता है. हालांकि, इस यात्रा को लेकर काफी विवाद भी हुआ. ताइवान से लेकर कथित मानवाधिकारों के हनन तक के मुद्दों पर पश्चिम और बीजिंग के बीच तनाव के साथ, चिंताएं थीं कि हाई-प्रोफाइल यात्रा अमेरिका और यूरोपीय संघ दोनों को असहज करेगी. 

चीन पर निर्भरता घटाने में कितना गंभीर है जर्मनी

कारोबार के दिग्गज खफा

जर्मनी के शीर्ष कारोबारियों का एक समूह चीन से जुड़े व्यापार फैसलों को लेकर चेतावनी दे रहा है. उनका कहना है कि जर्मनी को बीजिंग के साथ अपने संबंधों को फिर से परिभाषित करनी चाहिए. गुरुवार को जर्मन अखबार फ्रांकफुर्टर में छपे एक लेख में आठ मुख्य कार्यकारी अधिकारियों (सीईओ) ने इस पर सहमति जताई.

इनमें सीमेंस, केमिकल निर्माता बीएएसएफ, टेक कंपनी बॉश, ऑटो पार्ट्स सप्लायर शेफलर के सीईओ शामिल हैं. उनकी दलील है कि चीन और बाकी जगहों पर जर्मन कंपनियों की साइटें उनकी प्रतिस्पर्धा में अहम योगदान देते हैं. चीन दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा और सबसे गतिशील बाजार बन चुका है तो ऐसे में "वहां हमारी मौजूदगी खासकर जर्मनी की आर्थिक ताकत के हित में जरूरी है." उनका मानना है कि चीनी बाजार की क्षमता जर्मनी में नौकरियों को सुरक्षित करने, तेजी से बढ़ने और बाकी बाजारों में ज्यादा सफल होने का मौका देती है.

केके/एनआर(एएफपी)