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समाज

कुंदूज का हाल देख गुस्से में हैं पूर्व जर्मन सैनिक

११ अगस्त २०२१

अफगानिस्तान का कुंदूज अब तालिबान के कब्जे में है. इस घटना ने जर्मन सैनिकों के भीतर भावनात्मक भूचाल ला दिया है. वे दुखी हैं और गुस्सा भी.

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तस्वीर: Abdullah Sahil/AP/picture alliance

अफगानिस्तान के कुंदूज में इमारतों पर तालिबान के झंडे फहरा रहे हैं. वही तालिबानी लड़ाके जो दो महीने पहले तक कुंदूज की तरफ देख भी नहीं रहे थे, अब कंधे पर बूंदकें टांगे गलियों में टहल रहे हैं. और ये दृश्य देखकर जर्मनी के कई पूर्व सैनिक न सिर्फ नाराज और दुखी हैं बल्कि बेबस भी महसूस कर रहे हैं.

इसी हफ्ते तालिबान ने कुंदूज पर कब्जा कर लिया है. यह वही शहर है जहां जर्मन सेना का मुख्य अड्डा हुआ करता था. पूर्व जर्मन सैनिकों का कहना है कि कुंदूज का तालिबान के हाथों पड़ जाना जर्मन फौज के लिए एक बड़ा मनोवैज्ञानिक धक्का है.

Afghanistan | Zwischen den Fronten | Taliban erobern Kundus
तस्वीर: Abdullah Sahil/AP/picture alliance

पूर्व सैनिक और रॉस्टोक यूनिवर्सिटी में प्रशिक्षण के प्रोफेसर वुल्फ ग्रेगिस कहते हैं, "इसने तो पूर्व सैनिकों के भीतर एक जज्बाती भूचाल ला दिया है. जितने जर्मन सैनिकों की मौत कुंदूज में हुई है, उतनी तो कहीं भी नहीं हुई थी.”

कुंदूज प्रांत में जर्मन सेना को जान ओ माल का भारी नुकसान उठाना पड़ा था. इसलिए इस जगह से जर्मन सैनिक भावनात्मक तौर पर सीधे जुड़े हैं. ग्रेगिस बताते हैं, "यही जगह है जहां जर्मन सैनिकों ने सबसे पहले यह जाना कि एक विषम युद्ध में लड़ना और मरना क्या होता है और यह कितना भद्दा हो सकता है.”

जर्मन सेना का सबसे खूनी साल

नाटो सहयोगी के तौर पर जर्मन सेना ने जब अफगानिस्तान में अपना अभियान शुरू किया था तो कुंदूज सबसे सुरक्षित जगहों में गिना जा सकता था. वहां जर्मनी ने नाटो की प्रांतीय पुनर्निर्माण टीम के रूप में इलाके को फिर से बनाना शुरू किया था.

लेकिन 2006 के बाद जंग तेज होती गई और बकौल ग्रेगिस, यह कुंदूज ही था, जहां जर्मन सेना के मकसद का सबसे कड़ा इम्तेहान हुआ. वहां कई घातक भयानक घटनाएं हुईं. जैसे कि सितंबर 2009 में एक जर्मन अफसर के आदेश पर अमेरिका ने एक तेल ट्रक पर हवाई हमला किया. उस हमले में 100 से ज्यादा आम नागरिक मारे गए.

उस घटना ने जर्मनी में बड़ा विवाद खड़ा कर दिया था जिसका खामियाजा तत्कालीन रक्षा मंत्री फ्रांत्स योसेफ युंग को इस्तीफा देकर चुकाना पड़ा. एक साल बाद जर्मनी के सैनिक पहले से कहीं ज्यादा युद्ध में उलझे हुए थे.

‘पहले से पता था'

अप्रैल 2010 की ‘गुड फ्राइडे बैटल' खासी मशहूर हुई थी जबकि जर्मन टुकड़ी और तालिबान के बीच नौ घंटे तक गोलीबारी चली थी. उस लड़ाई में तीन सैनिक मारे गए और आठ घायल हुए जिन्हें अमेरिकी हेलिकॉप्टर की मदद से बचाया जा सका.

तस्वीरों मेंः चले गए अमेरिका, छोड़ गए कचरा

इस लड़ाई के साथ उस साल की शुरुआत हुई जिसे जर्मन फौज के इतिहास का सबसे खूनी साल कहा जाता है. कुंदूज में जर्मन सेना 2003 से 2013 तक यानी दस साल तक थी जिस दौरान उसके 59 सैनिकों की जान गई.

अब उसी जगह को तालिबान के पैरों तले रौंदे जाते देख पूर्व जर्मन सैनिक हताश हैं. 2013 में अफगानिस्तान का अपना तीसरा दौर करने वाले आंद्रियास एगर्ट पूर्व सैनिकों की एसोसिएशन के अध्यक्ष हैं. कुंदूज की हार पर अपने जज्बात के बारे में वह कहते हैं, "समझाना तो बहुत मुश्किल है. मेरे भीतर बहुत सी चीजें चल रही हैं. उनमें से एक तो दुख है और दूसरा गुस्सा है.”

डीडबल्यू से बातचीत में एगर्ट ने कहा, "यह गुस्सा तालिबान पर है कि वे लोगों को फिर से अपना गुलाम बनाना चाहते हैं. लेकिन मैं जर्मनी की सरकार और रक्षा मंत्रालय के फैसले पर भी गुस्सा हूं. ये तो पहले से दिख रहा था कि ऐसी बर्बादी होगी.”

जहां बहाया खून, पसीना और आंसू

2010 से 2011 के बीच अपने सात महीने लंबे अफगानिस्तान दौरे के बारे में एक किताब लिखने वाले पूर्व कारपोरल योहानेस क्लेयर कहते हैं, "बहुत ज्यादा खराब लग रहा है. हमने वहां अपना खून, पसीना और आंसू बहाए हैं. हमारे साथी वहां मारे गए थे. और जो हो रहा है, उसका पहले से अंदाजा था. 2014 में, जब लड़ाकू टुकड़ियों को वापस बुलाया गया था, तभी यह स्पष्ट था कि अफगान सेना अपने आप इस स्थिति को काबू नहीं कर पाएगी.”

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हालांकि क्लेयर यह भी कहते हैं कि सेनाओँ का इस साल अफगानिस्तान से वापस बुलाया जाना भी निश्चित ही था क्योंकि पूरे अभियान से उत्साह खत्म हो गया था. वह कहते हैं, "मैं इसीलिए गुस्सा हूं क्योंकि वहां की मूलभूत समस्याएं हमें पहले से पता थीं. तब भी, जब मैं 2010 में वहां तैनात था, हमें पता था. फिर भी उन समस्याओं को कभी नहीं सुलझाया गया.”

जर्मन सेना ने 2013 में कुंदूज सैन्य अड्डा अफगानिस्तान सरकार को सौंप दिया था और वे अपने नए मुख्यालय मजार-ए-शरीफ में चले गए थे. इसी साल जून के आखरी हफ्ते में जर्मन सेना ने अफगानिस्तान को पूरी तरह छोड़ दिया था.

रिपोर्टः बेन नाइट

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