एक बदमाश जर्मन गाय का किस्सा
३ अगस्त २०१६जर्मनी की इस गाय को तो भारत के गोरक्षकों से मिलवाना चाहिए. हो सकता है कि वे इसके साथ मिलकर एक ट्रेनिंग प्रोग्राम चलाएं, भारतीय गायों के लिए. क्या नाम होगा उस प्रोग्राम का? कसाइयों से कैसे बचें या ऐसा ही कुछ. गजब गाय निकली जी यह. क्या पुलिस, क्या जनता. सबको छकाया. एक महीने तक छकाया. और ऐसा छकाया कि लोगों ने हाथ खड़े कर दिए थे.
तो किस्सा कुछ यूं है कि बात है काइजरलाउटर्न की. जर्मनी का एक शहर है. यहां के पुलिसवाले पिछले एक महीने से चैन से नहीं सो पाए थे. क्यों? क्योंकि जोआना गायब थी. जोआना मिल नहीं रही थी. रात को किसी भी वक्त फोन आ जाता कि यह रही जोआना. देखो जोआना रेल की पटरियों पर घूम रही है, देखो जोआना बाजार में मटरगश्ती कर रही है. और जब तक पुलिसवाले अपना साज ओ सामान लेकर वहां पहुंचते, जोआना गायब. एकदम लापता. मतलब, गाय है कि गायब. हाथ ही ना आए.
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दरअसल, जोआना एक कसाईबाड़े से भाग निकली थी. वहां जिस दिन उसे गोली मार दी जानी थी, उस दिन जोआना ने ठाना कि खाना नहीं बनना है. मतलब, जिन लोगों ने पालपोस कर इतना बड़ा किया, आज वही लोग खा जाने को उतारू हैं. जोआना को यह बात पसंद नहीं आई. और शैतान तो वह है ही. लिहाजा, कसाईबाड़े से भाग निकली. और जिस दिन वह भागी, उस दिन से पुलिस का जीना हराम हो गया. पहले दिन फोन आया कि एक भूरी गाय काइजरलाउटर्न के सिटी सेंटर की ओर बढ़ी चली जा रही है. जोआना सिटी सेंटर क्या करने जा रही थी, इसका खुलासा नहीं हो पाया है. लेकिन मामला गंभीर था. एक गाय अगर सिटी सेंटर की ओर जा रही है तो कुछ तो बात होगी. लिहाजा पुलिस ने कई हेलिकॉप्टर उड़ा दिए कि जाओ देखो और पकड़कर लाओ उस नामाकूल जानवर को. लेकिन जोआना कुछ भी हो, हाथ आने वाला जानवर नहीं थी. जब तक हेलिकॉप्टर वहां पहुंचे, गाय गायब हो चुकी थी. कहां गई? कुछ पता नहीं.
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उसके बाद कई दिन तक उसकी कोई खबर नहीं आई. हालांकि पुलिस वाले हैरान परेशान थे कि गई कहां. फिर एक दिन किसी ने फोन किया यह तो यहां है, शहर के बाहरी इलाके में. पुलिस वाले फौरन दौड़े. पर कोई फायदा नहीं. गाय फिर गायब. दरअसल, वहीं पास में एक जंगल है. और जोआना को समझ आ गया कि जंगल में छिप जाओ तो पुलिस के हाथ नहीं आ सकते. पुलिस तो कंक्रीट के जंगल में कुछ नहीं खोज पाती, असली जंगल में तो खाक भी ना मिले.
तो जी, उसके बाद कई दिन तक जोआना के देखे जाने की बस खबरें मिलती रहीं. जोआना यहां है. जोआना वहां है. एक दिन जोआना ने एक ट्रेन को चुनौती दे दी. ट्रैफिक रुक गया. रेल की पटरी पर गाय खड़ी है. पुलिस को बुलाया गया. क्या जोआना निराश होकर खुदकुशी करने ट्रेन के सामने आ गई थी? इसका खुलासा भी नहीं हो पाया है. लेकिन जब तक पुलिस पहुंचती, जोआना गायब हो चुकी थी. ऐसा कई बार हुआ कि जोआना ने रेलों को रुकवाया. और जब पुलिस ने देखा कि यह गाय तो गई हाथ से, तब उसके सिर पर इनाम रखा गया. प्राणी कल्याण विभाग ने ऐलान किया कि जो जोआना को लाएगा, इनाम पाएगा. कई जानवर-पकड़वा विशेषज्ञ जुट गए. पर जोआना ने भी कच्ची गोलियां नहीं खेली थीं. जोआना को हाथ नहीं आना था सो नहीं आई. विशेषज्ञों ने हाथ खड़े कर दिए.
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लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती. कहानी खत्म होती है जोआना, लिव्ड हैपीली एवर आफ्टर पर. दरअसल, फैसला किया गया है कि इस गाय को मारा नहीं जाएगा. उसे राइनलैंड-पलैटिनेट की एक सैंक्चुरी में भेज दिया गया है जहां उसे बूढ़ा होने तक रखा जाएगा. वैसे भी, ऐसी शैतान और बहादुर गाय को तो मिसाल के तौर पर जिंदा रखा ही जाना चाहिए. लेकिन अधिकारियों ने सबक सीख लिया है. इस बार मुस्तैदी ज्यादा होगी ताकि जोआना को भागने का मौका ना मिले.