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पाकिस्तान: लापता लोगों पर ईशनिंदा के आरोपों से खतरा और बढ़ा

शामिल शम्स
१७ जनवरी २०१७

पाकिस्तान में जहां सिविल सोसायटी लापता हुए सामाजिक कार्यकर्ताओं को ढूंढने के लिए अभियान चला रही है, वहीं इन लोगों के खिलाफ ईशनिंदा की एक शिकायत भी सामने आई है. इससे लापता हुए लोगों की जान को जोखिम हो सकता है.

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Pakistan Demo vermisste Blogger
तस्वीर: picture-alliance/Zumapress.com

पिछले कुछ दिनों में इन सामाजिक कार्यकर्ताओं को "जबरन अगवा किए जाने” के खिलाफ कई प्रदर्शन हुए हैं. सिविल सोसायटी की सरकार से मांग है कि लापता हुए कम से कम चार ब्लॉगरों, लेखकों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का पता लगाया जाए.

यह अभी तक साफ नहीं है कि इन लोगों को किसने अगवा किया है. कुछ लोग इसके लिए सुरक्षा एजेंसियों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं, तो कुछ इसके पीछे चरमपंथी संगठनों का हाथ बताते हैं. सरकार ने इसमें सेना की किसी भी भूमिका से इनकार किया है. साथ ही किसी चरमपंथी संगठन की तरफ से भी इस बारे में कोई बयान जारी नहीं किया गया है. अधिकारियों ने संभावित अपहरण की इन घटनाओं के जांच के आदेश दिए हैं, लेकिन अभी तक लापता लोगों में से किसी के बारे में कोई सुराग नहीं मिला है.

पाकिस्तान के जाने माने सामाजिक कार्यकर्ता और यूनिवर्सिटी प्रोफेसर सलमान हैदर 6 जनवरी को राजधानी इस्लामाबाद से लापता हो गए. इसके बाद कम से कम तीन अन्य धर्मनिरपेक्ष कार्यकर्ताओं वकास गोराया, आसिम सईद और अहमद रजा भी लापता हो गए. ये सभी लोग अलग अलग क्षेत्रों में काम कर रहे थे. लेकिन इनमें एक समानता थी. ये सभी पाकिस्तान के सुरक्षा प्रतिष्ठान और कट्टरपंथी गुटों के कड़े आलोचक थे.

ईशनिंदा का मुद्दा

लापता लोगों के मामले ने सोमवार 16 जनवरी को एक नया मोड़ लिया जब इस्लामाबाद के एक व्यक्ति ने पुलिस में इन लोगों के खिलाफ ईशनिंदा की एक शिकायत दर्ज कराई.

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पाकिस्तान में ईशनिंदा बहुत ही संवेदनशील मुद्दा है, जहां देश की 18 करोड़ की आबादी में 97 प्रतिशत लोग मुसलमान हैं. मानवाधिकार कार्यकर्ता लंबे समय से ईशनिंदा कानून में बदलाव की वकालत कर रहे हैं. यह कानून 1980 के दशक में सैन्य तानाशाह जिया उल हक के शासन में लागू हुआ था. लेकिन आलोचकों का कहना है कि निजी रंजिश निकालने के लिए अक्सर इस कानून का दुरुपयोग होता है.

ईशनिंदा की शिकायत करने वाले मोहम्मद ताहिर ने इस्लामाबाद में डीडब्ल्यू संवाददाता सत्तार खान को बताया, "मैंने इन ब्लॉगरों के खिलाफ शियाकत दर्ज कराई है और अधिकारियों से आग्रह किया है कि इन लोगों के खिलाफ ईशनिंदा कानून के तहत कार्रवाई हो.”

ताहिर के वकील असद तारिक ने डीडब्ल्यू को बताया कि लापता लोगों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने का मकसद " आम लोगों और ब्लॉगरों के समर्थकों को यह बताना है कि ये लोग सोशल मीडिया पर किस तरह इस्लाम विरोधी सामग्री पोस्ट कर रहे थे.”

पिछले कई दिनों से पाकिस्तान के कई रुढ़िवादी तबके फेसबुक पर कई धर्मनिरपेक्ष पेजों से ली गई तस्वीरें और कोट्स शेयर कर रहे हैं और उनका दावा है कि इन पेजों को हैदर और गोराया जैसे लोग चला रहे थे. हालांकि इस बात का कोई सबूत नहीं है. पाकिस्तान के कई टीवी शोज में भी लापता लोगों को राष्ट्र विरोधी और धर्म विरोधी गतिविधियों में शामिल बताते हुए उनकी आलोचना हो रही है.

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नया चलन

एक सामाजिक कार्यकर्ता जिबरान नसीर ने डीडब्ल्यू से कहा, "कुछ सोशल मीडिया वेबसाइटों पर लापता हुए लोगों के बारे में दुष्प्रचार हो रहा है. लापता लोगों के समर्थन में बोलने वालों की भी आलोचना हो रही है. मैंने सुप्रीम कोर्ट को इस संगठित मुहिम के बारे में बताया है.”

कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि अगर लापता लोग मिल भी जाएं, तो अब ईशनिंदा के आरोप लगने के बाद उनकी जिंदगी खतरे में होगी.

पाकिस्तानी मानवाधिकार आयोग के उपाध्यक्ष असद बट कहते हैं कि ईशनिंदा की शिकायत उन लोगों ने दर्ज कराई है जो देश में बढ़ते इस्लामी कट्टरपंथ का समर्थन करते हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "यह लोगों को धमकाने का एक तरीका है. इसीलिए हम सरकार से कह रहे हैं कि ईशनिंदा कानून में बदलाव होना चाहिए.”

लोगों का इस तरह लापता होना पाकिस्तान में कोई नई बात नहीं है. इससे पहले भी वहां हजारों लोग लापता हो चुके हैं. लेकिन ऐसे ज्यादातर मामले बलूचिस्तान प्रांत में देखने को मिलते हैं जहां अलगाववादी आंदोलन चल रहा है. इसके अलावा अफगानिस्तान से लगने वाले पाकिस्तान के कबायली इलाकों में भी कई लोगों को अगवा किया गया है. दोनों ही जगहों पर सेना चरमपंथियों के खिलाफ अभियान चला रही है. मानवाधिकार गुट कराची में अर्धसैनिकों बलों पर राजनीतिक कार्यकर्ताओं को गैरकानूनी तरीके से पकड़ने के आरोप लगाते हैं.

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स्थानीय मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि पिछले 12 साल के दौरान लगभग आठ हजार लोग लापता हुए हैं जिनका अब तक कोई अता पता नहीं है.

लेकिन धर्मनिरपेक्ष कार्यकर्ताओं का लापता होना पाकिस्तान में एक नया चलन है. मानवाधिकार कार्यकर्ता इससे चिंतित हैं. उनके मुताबिक यह देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए बड़ा खतरा है.

पाकिस्तान की एक जानी मानी सामाजिक कार्यकर्ता फरजाना बारी ने डीडब्ल्यू को बताया, "पाकिस्तान में लोगों को जबरन गायब करना कोई नया चलन नहीं है. पहले ऐसा सिर्फ बलूचिस्चान या सिंध प्रांत में होता था. लेकिन अब यह पूरे देश में देखने को मिल रहा है.”

उदारवाद बनाम रुढ़िवाद

इस्लामाबाद में रहने वाले नाहयान मिर्जा विकास के क्षेत्र में काम करते हैं. वह कहते हैं, "देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए सिविल सोसायटी को और एकजुट होना पड़ेगा. सोशल मीडिया के दौर में स्वतंत्र चिंतक सरकार के कुछ कदमों को लेकर विभिन्न मंचों पर अपनी आवाज उठा सकते हैं और यह उनका अधिकार है.”

वह कहते हैं, "पाकिस्तान का समाज दुर्भाग्य से बहुत हद तक दक्षिणपंथियों के हाथों में चला गया है. ये समूह सामाजिक, सांस्कृतिक और बौद्धिक बदलाव को बर्दाश्त नहीं करेंगे क्योंकि इससे उनकी ताकत को खतरा पैदा होता है. लेकिन मुझे उम्मीद है कि जल्द ही बदलाव होगा.”