फ्रांस की अदालत ने टोटल एनर्जी के खिलाफ मुकदमे को किया खारिज
३ मार्च २०२३फ्रांस की एक अदालत ने अपने फैसले में पूर्वी अफ्रीका में विवादास्पद तेल और गैस परियोजना को निलंबित करने की कई गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) की अपील को खारिज कर दिया है. विशेषज्ञों का कहना है कि यह फैसला गलत मिसाल कायम कर सकता है. इसके अलावा, यह सबक देता है कि पर्यावरण से जुड़े अंतरराष्ट्रीय कानूनों को किस तरह कठोर बनाया जाए.
दरअसल, फ्रांस और अफ्रीका के छह नागरिक अधिकारों और पर्यावरण समूहों ने पेरिस की एक अदालत से टोटल एनर्जी के मालिकाना हक वाली दो परियोजनाओं को निलंबित करने की मांग की थी. यह मामला 2017 में लागू किए गए तथाकथित ‘लॉ ऑन ड्यूटी ऑफ विजिलेंस' कानून पर आधारित था.
फ्रांस की संसद ने इस कानून को 2017 में पारित किया था. यह कानून फ्रांस की बड़ी कंपनियों पर लागू होता है. इसके तहत फ्रांस की मूल कंपनियों को लिखित तौर पर बताना होता है कि विदेशों में उनकी परियोजनाओं से वहां के पर्यावरण, स्थानीय आबादी और मानवाधिकारों पर क्या असर पड़ेगा और इससे निपटने के लिए उन्होंने किस तरह के उपायों को लागू किया है.
हालांकि, अदालत ने फैसला सुनाया कि मुकदमा दायर करने वालों ने कंपनी को जरूरी औपचारिक नोटिस नहीं भेजा था और इस वजह से इस मामले को खारिज किया जाता है. त्वरित मामले की सुनवाई करने वाले न्यायाधीश ने यह भी माना कि यह मामला उनके दायरे में नहीं आता है.
डीडब्ल्यू ने अदालत का आदेश प्राप्त किया है. इसमें कहा गया है, "जब किसी फैसले के लिए डोजियर (फाइल) के गहन विश्लेषण की आवश्यकता होती है, तो केवल ट्रायल जज के पास ही फैसला लेने का अधिकार होता है.”
तथाकथित तिलेंगा और ईएसीओपी प्रोजेक्ट में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी टोटल एनर्जी के पास है. युगांडा के 400 कुएं तिलेंगा ऑयल फील्ड में शामिल हैं, जिनमें दर्जनों नेशनल रिजर्व मर्चिसन फॉल्स पार्क में स्थित हैं. इस परियोजना के तहत, जमीन से होकर गुजरने वाली 1,443 किलोमीटर लंबी पूर्वी अफ्रीकी क्रूड ऑयल पाइपलाइन (ईएसीओपी) तेल के कुएं को पड़ोसी देश तंजानियां से होते हुए हिंद महासागर से जोड़ेगी.
इन परियोजनाओं के अन्य हिस्सेदारों में चाइना नेशनल ऑफशोर ऑयल कॉर्पोरेशन (सीएनओओसी), युगांडा नेशनल ऑयल कंपनी (यूएनओसी) और तंजानिया पेट्रोलियम डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (टीपीडीसी) शामिल हैं. निर्माण कार्य पहले से ही चल रहे हैं. दोनों परियोजनाएं 2025 की पहली छमाही में चालू होने वाली हैं.
‘सतर्कता रोडमैप' की जानकारी पर्याप्त है?
मुकदमा दायर करने वालों ने तर्क दिया था कि टोटल एनर्जी ने सतर्कता रोडमैप में जो जानकारी दी है वह पर्याप्त नहीं है. उन्होंने अनुमान लगाया कि इस परियोजना की वजह से एक लाख से ज्यादा लोग प्रभावित होंगे. उनमें से अधिकांश को अब तक टोटल एनर्जी ने मुआवजा नहीं दिया है. अधिकार समूहों ने यह भी चेतावनी दी थी कि तेल और गैस निकालने से मानवाधिकारों का हनन होगा. साथ ही, पर्यावरण को भी काफी ज्यादा नुकसान होगा जिसकी भरपाई नहीं की जा सकती.
वहीं, टोटल एनर्जी ने कहा कि वह नुकसान को कम करने के उपायों पर काम कर रहा है. उसकी परियोजनाओं से दसियों हजार लोगों को रोजगार मिलेगा. कंपनी ने कहा कि कुल 18,000 लोग मुआवजे के हकदार हैं जिनमें से 90 फीसदी स्थानीय लोगों को मुआवजा दे दिया गया है.
पेरिस स्थित बहुराष्ट्रीय कंपनी ने डीडब्ल्यू को ईमेल से भेजे अपने जवाब में कहा, "टोटल एनर्जी पेरिस की अदालत के फैसले पर विशेष ध्यान देता है, जिसमें कहा गया है कि कंपनी ने औपचारिक तौर पर सतर्कता रोडमैप बनाया है. साथ ही, इसमें सतर्कता कानून के मुताबिक जरूरी पांच एलिमेंट शामिल किए हैं और रोडमैप में उनकी पूरी जानकारी भी दी है.”
वादी ने अदालत के फैसले को ‘बेतुका' बताया
मुकदमा करने वालों ने टोटल एनर्जी के तर्कों का खंडन किया है. इनमें युगांडा स्थित सार्वजनिक नीति अनुसंधान और स्वच्छ ऊर्जा के लिए वकालत करने वाला समूह अफ्रीका इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी गवर्नेंस (एएफआईईजीओ), फ्रांस का गैर-लाभकारी अधिकार समूह फ्रेंड्स ऑफ द अर्थ (एफओई) और युगांडा का गैर-लाभकारी वकालत समूह सिविक रिस्पांस ऑन एनवायरनमेंट एंड डेवलपमेंट (सीआरईडी) शामिल है.
एएफआईईजीओ के निदेशक डिकेंस कामुगिशा ने अदालत के फैसले की आलोचना की. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "तीन साल से न्याय की प्रतीक्षा कर रहे लोगों के लिए सुनाया गया यह फैसला बेतुका था. यह मामला काफी जटिल है. तमाम प्रक्रियाओं का पालन करते हुए इस मामले की सुनवाई होनी चाहिए. इसकी त्वरित सुनवाई का कदम सही नहीं है. मुझे लगता है कि अदालत को संज्ञान लेना चाहिए था कि इस मामले से जुड़े काफी लोग गरीब समुदाय से हैं, वे पीड़ित हैं और उन्हें न्याय मिलना चाहिए.”
कामुगिशा को डर है कि यह फैसला गलत मिसाल कायम कर सकता है. वह कहते हैं, "हम युगांडा में इस परियोजना के खिलाफ कई सारे मामले दर्ज करा चुके थे, इसलिए हम फ्रांस गए. हमारे देश की न्यायपालिका पूरी तरह स्वतंत्र नहीं है. वहां भ्रष्टाचार है. इसलिए कई मामलों की सुनवाई हुई ही नहीं. हमें उम्मीद थी कि फ्रांस जैसे विकसित देश की विकसित न्यायपालिका इन मामलों में बेहतर न्याय करेगी.”
तेल और गैस परियोजना से जुड़े विभिन्न हिस्सों पर रोक लगाने के लिए इस समूह ने युगांडा की अदालतों में पांच अलग-अलग मामले दर्ज कराए हैं. इसने इस मामले को ईस्ट अफ्रीकन कम्युनिटी (ईएसी) की न्यायिक संस्था ईस्ट अफ्रीकन कोर्ट ऑफ जस्टिस के सामने भी रखा है. ईएसी सात देशों युगांडा, तंजानिया, केन्या, बुरुंडी, रवांडा, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य और दक्षिण सूडान का संगठन है.
अनुभवी वकील कामुगिशा को संदेह है कि युगांडा की अदालतों में इन मामलों की सुनवाई भी हो पाएगी. वह कहते हैं, "फ्रांस की अदालत का फैसला इन मामलों को काफी ज्यादा प्रभावित करेगा. मेरा मानना है कि युगांडा की अदालतें ये कहेंगी कि जब फ्रांस में आपको जीत नहीं मिली, तो आप यह कैसे सोच सकते हैं कि युगांडा में आपके पक्ष में फैसला आएगा.”
जलवायु से जुड़े कानूनों को प्रभावित करेगा यह फैसला
पेरिस-इस्ट क्रेतेइल विश्वविद्यालय में कानून की प्रोफेसर कमालिया मेहतायेवा ने कहा कि जरूरी नहीं है कि अदालत का हालिया फैसला गलत संदेश दे रहा हो. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "फ्रांस की अदालत ने जो फैसला सुनाया गया है उससे जलवायु के लिए काम करने वाले लोगों को नकारात्मक अनुभव मिल सकता है, लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि इस पहले अनुभव के आधार पर रुकना नहीं है. यह देखना जरूरी है कि उन्होंने क्या खोया है. वे तकनीकी तर्क के आधार पर हारे हैं, इसलिए वे पूरी तरह नहीं हारे हैं.”
मेहतायेवा ने विस्तार से बताया, "इस फैसले से सबक लेना चाहिए. अदालत ने एनजीओ को याद दिलाया कि उन्हें कंपनी को नोटिस भेजना चाहिए था. अदालत ने यह भी कहा कि 2017 में बनाया गया कानून पूरी तरह स्पष्ट नहीं है. यह फैसला पर्यावरण की सुरक्षा से जुड़े कानून बनाने की दिशा में मील का एक अन्य पत्थर है. यह हार नहीं है.” वादी पेरिस के फैसले के खिलाफ अपील करने पर विचार कर रहे हैं.
क्या जर्मनी इस मामले से सबक ले सकता है?
जर्मनी की संसद बुंडेस्टाग में ग्रीन पार्टी की एक सदस्य कैथरीन हेनेबर्गर का मानना है कि यह फैसला एक संकेत है कि हमें पूरे यूरोप में अपने कानूनों पर फिर से विचार करना चाहिए और जरूरत के मुताबिक उनमें बदलाव करना चाहिए. जर्मन सांसद टोटल एनर्जी की परियोजना से प्रभावित लोगों से मिलने इस साल की शुरुआत में युगांडा गई थीं. उन्होंने कहा, "टोटल एनर्जी जैसी जीवाश्म ऊर्जा कंपनियों को इस तरह की बड़ी परियोजनाओं के निर्माण की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. जर्मनी को भी पर्यावरण से जुड़े अपने कानूनों को मजबूत करना चाहिए.”
वह आगे कहती हैं, "हम पिछले साल एक कानून पर चर्चा कर रहे थे कि कोयला संयंत्रों को किस तरह चालू रखा जाए या घटती गैस आपूर्ति को देखते हुए किस तरह से ऊर्जा की जरूरतों को पूरा किया जाए. इस बहस का एक पहलू यह भी था कि इससे उन क्षेत्रों पर क्या असर पड़ेगा जहां से हम कोयले का खनन करते हैं.”
हेनेबर्गर कहती हैं, "जर्मनी स्थानीय निवासियों की स्थिति को ध्यान में नहीं रखता है. उदाहरण के लिए उत्तरी कोलंबिया में, जहां से हमारा कोयला आता है, हमें सख्त नियमों की आवश्यकता है.” उनके समूह ने मौजूदा कानून में एक पैराग्राफ जोड़ा है जिसमें कहा गया है कि स्थानीय आबादी पर कोयला खनन से पड़ने वाले असर पर सरकार को रिपोर्ट देने की जरूरत है.
रिपोर्ट: लीजा लुइस