1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

फ्रैंकफर्ट पुस्तक मेले में भारतीय प्रकाशकों की हिस्सेदारी

शुभांगी डेढ़गवें
२० अक्टूबर २०२३

18 से 22 अक्टूबर के बीच फ्रैंकफर्ट में पुस्तक मेला लगा है. कई देशों के पब्लिशरों के बीच भारत के भी कई स्टॉल लगाए गए. देखिए डिजिटल बदलाव के साथ किस तरह किताबों की दुनिया भी बदल रही है.

https://p.dw.com/p/4Xnff
फ्रैंकफर्ट पुस्तक मेला
फ्रैंकफर्ट पुस्तक मेले की शुरुआत 1949 में करीब 200 प्रकाशकों के साथ हुईतस्वीर: Shubhangi Derhgawen/DW

जब मैं कॉलेज गई और अकादमिक डिग्रियों की पढ़ाई में जुट गई, मैंने कोर्स से बाहर की किताबें पढ़ना बंद कर दिया. जैसे-जैसे कॉलेज में पढ़ाई डिजिटल होती गई, कागज पर छपी किताब पढ़ने के अनुभव के प्रति मेरा प्यार भी घटने लगा. फ्रैंकफर्ट पुस्तक मेले में, मुझे वो दिन याद आ गए जब मैं किताबों में इतना खो जाती थी कि क्लास के दौरान उन्हें अपनी मेज के नीचे छिपा कर पढ़ती थी.

दुनिया भर की लाखों किताबों के साथ फ्रैंकफर्ट पुस्तक मेला दुनिया का सबसे बड़ा मेला है. यहां करीब 120 देशों से पब्लिशर आते हैं. यह उपन्यासों और बच्चों की किताबों से लेकर वैज्ञानिक डेटाबेस तक हर तरह के प्रकाशकों के लिए सबसे महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेला है. 1949 से चले आ रहे इस मेले का यह 75वां साल है.

फ्रैंकफर्ट पुस्तक मेले में भारतीय पवेलियन
मेले में भारतीय प्रकाशकों के पेवेलियन में लोगों की दिलचस्पी दिखाई दीतस्वीर: Shubhangi Derhgawen/DW

भारत का पवेलियन

फ्रैंकफर्ट पुस्तक मेले के विश्व मंच पर भारत के ज्ञान, और टेक्नोलॉजी को दिखाते हुए भारतीय प्रकाशन उद्योग भारत के बैनर तले एक साथ आया. "नए भारत की नई कहानियों” के नारे के साथ ऐसा 75 सालों में पहली बार हुआ. बुधवार सुबह करीब 11 बजे इंडिया नेशनल स्टैंड का उद्घाटन फ्रैंकफर्ट पुस्तक मेले के अधिकारियों, कॉन्सुल जनरल, भारतीय प्रकाशकों और आम लोगों की उपस्थिति में किया गया.

विभिन्न भाषाओं कि किताबों को यूरोपियन व्यापारियों और लोगों के सामने रखा गया. साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता तमिल लेखकों पेरियार, सी.एन. की कृतियाां अन्नादुरई, और एम. करुणानिधि और भारत की पुस्तकों के यूरोपीय भाषाओं में अनुवाद होने की बात वहां की गई.

प्रकाशन विभाग के डिप्टी एडिटर, कुलश्रेष्ठ कमल ने डीडब्ल्यू को बताया, "हमारी कई तरह की किताबें आज भी बहुत बिकती हैं. सबसे ज्यादा हमारी हिंदी की किताबें बिकती हैं.” सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव की बात करते हुए कमल ने कहा कि भारत में भी किताबों का ट्रेंड बदल रहा है, "किताबें लोग अभी भी बहुत पसंद करते हैं लेकिन उनका रंग रूप बदल गया है. अब हम कोशिश करते हैं कि ज्यादा रंगीन कवर के साथ, अच्छी तस्वीरों के साथ किताबों को छापें.”

फ्रैंकफर्ट पुस्तक मेला
डिजिटल युग में किताबों की लोकप्रियता पर सवाल यहां भी उठातस्वीर: Shubhangi Derhgawen/DW

1949-2023: पुस्तक मेले का बदलता स्वरूप

फ्रैंकफर्ट पुस्तक मेले की शुरुआत 1949 में करीब 200 प्रकाशकों के साथ हुई जिस में लगभग 9000 लोग शामिल हुए. धीरे धीरे बढ़ते हुए आज फ्रैंकफर्ट पुस्तक मेला करीब 1,80,000 लोगों की मेजबानी कर रहा है. कोरोना के दौरान 2020 में यह मेला ऑनलाइन हुआ लेकिन तब भी बड़ी संख्या में लोग इससे जुड़े.

कोरोना के बाद पहली बार फ्रैंकफर्ट पुस्तक मेला एक हाइब्रिड तरीके से 2021 में किया गया. कुछ प्रकाशकों और लोगों के आने की अनुमति दी गई. ॐ बुक शॉप के मालिक अजय मागो ने डीडब्ल्यू को बताया कि वह साल व्यापार के तौर पर उनके लिए सबसे अच्छा रहा था.

फ्रैंकफर्ट पुस्तक मेला
डिजिटल तकनीक ने किताब प्रकाशित करने की प्रक्रिया में भी बदलाव किया है.तस्वीर: Shubhangi Derhgawen/DW

अपने अनुभव के बारे में बात करते हुए उन्होंने बताया कि उनके पिता फ्रैंकफर्ट पुस्तक मेले में करीब 1968 में पहली बार आए थे और अजय मागो 1994 से यहां आ रहे हैं. "कोरोना के दौरान बेशक चीजें बहुत ही डरावनी और खराब थीं लेकिन 2021 में जब मैं यहां आया तो वो मेरे व्यापार का सबसे बेहतरीन साल रहा. गुजरते वक्त के साथ ज्यादा प्रकाशक फ्रैंकफर्ट आ रहे हैं लेकिन अब यहां कोई डील नहीं करता है. हर साल हमारी किताबों में अगर 100 लोग दिलचस्पी दिखाते हैं तो उस में से सिर्फ 3 लोग ही आखिर में ऑर्डर देते हैं. पहले ऐसा नहीं होता था.”

फ्रैंकफर्ट पुस्तक मेला
कुछ स्टॉल में किताबों की जगह स्क्रीन पर किताबों रंगीन कवर ने ले ली तस्वीर: Shubhangi Derhgawen/DW

अजय मागो ने कहा कि 2021 का साल अलग था क्योंकि कम लोगों और प्रकाशकों के बीच ज्यादातर लोगों ने पुस्तक मेले में ही डील कर ली. प्रकाश बुक्स के पब्लिशर प्रशांत पाठक ने भी कुछ ऐसा ही अनुभव बयान किया. उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "मैं यहां 14 साल से आ रहा हूं. पहले फ्रैंकफर्ट पुस्तक मेला और भी बड़ा हुआ करता था क्योंकि उस समय यहां आना ही महज एक तरीका था जिससे आप दूसरे प्रकाशकों और व्यापारियों से मिल सकते थे. जैसे जैसे डिजिटल बदलाव हुए हैं, अब यहां आना उतना जरूरी नहीं रह गया है. अब अगर हमें कोई किताब किसी को भेजनी है या दिखानी है तो हमारे पास कई तरीके हैं ऐसा करने के लिए.”

फ्रैंकफर्ट पुस्तक मेले में डिजिटल बदलाव काफी ज्यादा देखने को मिला. जैसे ही मैं उन हॉल में गई जहां बहुत बड़े पब्लिशर जैसे पेंगुइन और मैकमिलन के स्टॉल लगे थे, किताबों का दिखना काफी काम हो गया है. अलग तरह कि स्क्रीन पर किताबों के रंगीन कवर डिस्प्ले किए जा रहे थे और भारी मात्रा में लोग छोटे छोटे मेजों पर बैठे व्यापार की डील कर रहे थे. 

दिमाग में जो चल रहा है उसे पढ़ सके AI