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मैराथन के फाइनल में दौड़ेगा पूर्व गुलाम

ओएसजे/वीके (रॉयटर्स)१९ अगस्त २०१६

होश संभालते ही वह दर दर भागने लगा. धीरे धीरे परिवार बिछड़ गया, सारे भाई बहन मारे गए. अब वो अकेली उम्मीद है और फिर से भागने को तैयार है, इस बार ओलंपिक में.

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तस्वीर: Reuters

दक्षिण सूडान के एथलीट गौर मारियल भले ही स्वर्ण पदक के प्रबल दावेदार न हों, लेकिन सम्मान और जज्बे का मेडल वह जीत चुके हैं. कभी गुलाम रहे मारियल का सफर रियो ओलंपिक की सबसे जज्बाती कहानियों में से एक है.

सूडान के गृहयुद्ध के दौरान मारियल बच्चे थे. जान बचाने के लिए मारियल परिवार को अपना घर और इलाका छोड़ना पड़ा. इस दौरान परिवार के सदस्य कभी साथ होते तो कभी अलग अलग. कोशिश यही थी कि किसी की तो जान बचे. ऐसी जिंदगी जीने के दौरान मारियल को पता चला कि उसके परिवार के 28 लोग मारे जा चुके हैं. इनमें से आठ उसके भाई बहन थे. नाबालिग मारियल को भी दो बार अगवा किया गया. अपहर्ताओं ने आखिरकार उन्हें गुलाम बना दिया.

इस दौरान मारियल किसी तरह भाग कर मिस्र पहुंचे और फिर वहां से अमेरिका. सन 2001 में अमेरिका ने उनकी शरण की अर्जी स्वीकार कर ली और मारियल अमेरिकी नागरिक बन गए. इसके बाद एक दौड़ और शुरू हुई, अपनों को खोजने की. लेकिन लंबे वक्त तक कोई सुराग नहीं मिला. इस बीच देश का भूगोल बदल चुका था. दो दशक के रक्तपात के बाद 2005 में शांति समझौता हुआ. और उस संधि के छह साल बाद 2011 में नए देश दक्षिण सूडान का जन्म हुआ.

Olympia Rio 2016 Eröffnungsfeier Rose Lokonyen Nathike Refugee Team
इस बार ओलंपिक में रिफ्यूजी टीम भी हैतस्वीर: picture-alliance/AP Photo/M. Schrader

2012 में मारियल ने इंडिपेंडेंट एथलीट के रूप में लंदन ओलंपिक में हिस्सा लिया. तब भी उन्होंने कहा, "मैं भले ही ओलंपिक की पोशाक पहनूं, लेकिन मेरे भीतर, दिल में हमेशा दक्षिण सूडान के झंडे के साथ खड़ा मिलूंगा." लंदन में वह हालांकि कोई कमाल नहीं कर पाए लेकिन उनकी चर्चा दक्षिण सूडान तक पहुंची. धीरे धीरे मारियल को अपने जीवित मां-बाप की खबरें मिलने लगीं. 2013 में मारियल दक्षिण सूडान गए. 20 साल बाद उन्होंने बहुत कुछ खो चुके अपने मां-बाप को देखा. उस मुलाकात के बारे में मारियल कहते हैं, "मेरी मां मेरे बगल से गुजर गई क्योंकि उसने मुझे पहचाना ही नहीं. उसे पता ही नहीं था कि मैं कौन हूं. फिर किसी ने आवाज देकर बताया और उसने मुझे देखा, इसके बाद अचम्भे के कारण वो गश खाकर गिर पड़ी. जब उसे होश आया तो मैं उसे गले लगाकर गोद उठाया, वो बार बार मुझसे पूछती रही कि क्या तुम ही मेरे बेटे हो?"

अब मारियल का नाम इतिहास में दर्ज हो चुका है. पहली बार ओलंपिक में हिस्सा लेने वाली दक्षिण सूडान की टीम की अगुआई मारियल ने ही की. मारियल के मुताबिक, "रियो ओलंपिक में पहली बार मैंने दक्षिण सूडान के झंडे को अपने बदन पर लपेटा, वो यादगार पल था."

अब मारियल और उनके साथियों के सामने एक बार फिर बड़ा मौका है. रविवार को 42.2 किलोमीटर लंबी दौड़ में कुल सात सूडानी धावक होंगे. तीन दक्षिण सूडान की टीम की तरफ से और पांच ओलंपिक की पहली शरणार्थी टीम की ओर से. इन पांचों को केन्या के शरणार्थी कैंप से निकलकर रियो आने का मौका मिला है. स्वर्ण, रजत और कांस्य पदक जीतने वालों के नाम खेलों के इतिहास में जाएंगे और मारियल व उनके साथियों के नाम दिलों में.