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दुनिया में बेहद गरीबों की संख्या घटी: वर्ल्ड बैंक

७ अक्टूबर २०१६

वर्ल्ड बैंक ने बताया है कि भले ही दुनिया में अर्थव्यवस्था की हालत डांवाडोल है लेकिन अत्याधिक गरीबी में रहने वाले लोगों की तादाद 10 करोड़ कम हुई है.

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Angola Slum Kinanga in Luanda
तस्वीर: DW/N. Sul d'Angola

इसी हफ्ते जारी वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक 2013 में 76.7 करोड़ लोग ऐसे थे जो रोजाना 1.90 डॉलर से कम की कमाई पर जी रहे थे. 2012 में यह तादाद 88.1 करोड़ थी. यानी लोगों की आय में बढ़ोतरी हुई है. सबसे ज्यादा वृद्धि एशिया में हुई है. एक बयान में वर्ल्ड बैंक के अध्यक्ष जिम योंग किम ने कहा, "यह गौर करने लायक बात है कि ऐसे वक्त में देशों ने गरीबी घटाना और साझा समृद्धि को बढ़ाना जारी रखा है जबकि दुनिया की अर्थव्यस्था का प्रदर्शन अच्छा नहीं है."

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विश्व बैंक के नए आंकड़ों से इस बात की पुष्टि हुई है कि बीते 25 साल में गरीबी से लड़ने में कामयाबी मिली है. 1990 से 2013 के बीच गरीबों की संख्या एक अरब घट चुकी है. संयुक्त राष्ट्र का लक्ष्य है कि 2030 तक दुनिया में एक भी अत्याधिक गरीब नहीं बचना चाहिए. संयुक्त राष्ट्र ने स्थायी विकास के लक्ष्य तय कर रखे हैं. 17 लक्ष्यों के जरिए गरीबी, असमानता और जलवायु परिवर्तन से लड़ना है. वर्ल्ड बैंक का कहना है कि इन लक्ष्यों को तभी हासिल किया जा सकेगा जबकि बढ़ती असमानता से निपटा जा सके.

वर्ल्ड बैंक के डिवेलपमेंट रिसर्च ग्रुप के वरिष्ठ सलाहकार फ्रांसिस्को फेरेरा ने कहा, "2030 तक जिन लक्ष्यों को अंतरराष्ट्रीय समुदाय हासिल करना चाहता है, उनके लिए दुनिया को असमानता से लड़ना होगा और विकास को समेकित बनाना होगा."

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जिस रिपोर्ट में गरीबों की संख्या घटने की बात कही गई है, वही रिपोर्ट बताती है कि बीते 25 साल में आय में असमानता की दरार और चौड़ी हुई है. हालांकि 40 से ज्यादा देश ऐसे हैं जहां असमानता भी घटी है. इनमें ब्राजील, पेरू, माली और कंबोडिया जैसे मुल्क शामिल हैं.

अत्याधिक गरीबी में रहने वालों की सबसे ज्यादा तादाद सब-सहारा अफ्रीका में है. वर्ल्ड बैंक के मुताबिक आधे से ज्यादा वहीं रहते हैं. एक तिहाई गरीब दक्षिण एशिया में हैं. जिन देशों ने सबसे ज्यादा गरीबी घटाई है उनमें पूर्वी एशिया और एशिया प्रशांत क्षेत्र के देश सबसे आगे हैं. खासकर चीन, इंडोनेशिया और भारत का नाम वर्ल्ड बैंक ने लिया है. बीते साल वर्ल्ड बैंक ने कहा था कि अत्याधिक गरीबी में जीने वालों की संख्या 2015 में पहली बार 10 फीसदी से नीचे जा सकती है.

वीके/एके (रॉयटर्स)