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जलवायु परिवर्तन और इमामों की भूमिका

३० मार्च २०२०

काबुल की मस्जिदों में नमाज के लिए आने वाले नमाजियों को पर्यावरण को बचाने और प्रकृति की चिंता पर संदेश दिए जा रहे हैं. उनसे कम से कम कूड़ा फैलाने और पेड़ लगाने को कहा जा रहा है.

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Afghanistan Kabul Moschee
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/R. gul

फल विक्रेता खैरुद्दीन और उनके बेटे नियमित तौर पर जुमे की नमाज पढ़ने अन्य दिहाड़ी मजदूरों के साथ काबुल के पूर्वी क्षेत्र बगरामी स्थित मस्जिद जाते हैं. लेकिन हाल की नमाजों से पहले उन्हें जो संदेश दिया गया वह थोड़ा अलग था. नमाज के पहले उन्हें पर्यावरण संबंधी चिंताओं से अवगत कराया गया और उन्हें जलवायु परिवर्तन पर कार्रवाई की आवश्यकता के साथ-साथ कचरा कम फैलाने और पेड़ लगाने के बारे में बताया गया. नमाज के बाद मस्जिद के इमाम मौलवी ओबैदुल्लाह कहते हैं, "यह नैतिकता और इस्लामी शिक्षाओं का एक आम सबक है कि सार्वजनिक स्थानों और पानी में अतिरिक्त और खतरनाक कचरा ना फैलाएं. चाहे वह प्लास्टिक हो या फिर कोई और चीज."

थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन से बात करते हुए वे कहते हैं, "लोगों को जिम्मेदार और समझदार बनाने के लिए मुझे जितनी जानकारी है उसी के मुताबिक मैं लोगों को बताता हूं." धार्मिक उपदेश में पर्यावरण के बारे में सुनकर 40 साल के खैरुद्दीन कहते हैं कि उन्हें यह बहुत ही अलग लगा. वह कहते हैं, "समय के हिसाब से यह बहुत जरूरी और प्रासंगिक है." वह पिछले साल के भीषण सूखे और कठोर सर्दी का जिक्र करते हुए कहते हैं, "सब कुछ अल्लाह के हाथ में है...लेकिन हम थोड़ा-थोड़ा अच्छा काम कर सकते हैं." खैरुद्दीन अपने बेटों की तरफ देखते हुए कहते हैं, "मैं अपनी जिंदगी जी चुका हूं और हमें अपनी आने वाली पीढ़ी के बारे में सोचना होगा और उसके लिए काम करना होगा."

Afghanistan Kabul Islamisches Opferfest
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Marai

जलवायु परिवर्तन के बिगड़ते हालातों से अफगानिस्तान जूझ रहा है. लंबे समय तक चलने वाले सूखे से लेकर मूसलाधार बारिश और उसके बाद जानलेवा बाढ़ की विपदा तक. अफगानिस्तान के पास इन सब आपदाओं से निपटने के लिए ना तो जरूरी संसाधन है और ना ही खास तैयारी. ऐसे में अब देश के प्रभावशाली मौलानाओं को इस काम के लिए साथ लाया जा रहा है ताकि लोगों को समझाया जा सके कि क्या हो रहा है. उन्हें प्रोत्साहित किया जा सके जिससे वे देश के नाजुक वातावरण की रक्षा और सुधार कर सकें. अफगानिस्तान की राष्ट्रीय पर्यावरण संरक्षण एजेंसी (एनईपीए) ने पिछले साल हज और धार्मिक मामले के मंत्रालय के साथ एक करार किया जिसमें शहरी और ग्रामीण इलाकों में धार्मिक उपदेश के दौरान इन सब मुद्दों पर भी संदेश पहुंचाया जा सके. युद्धग्रस्त और ग्रामीण इलाकों के इमाम अब इस मुद्दे पर बात कर रहे हैं.

इस आंदोलन से जुड़े एक और इमाम मौलवी फजल करीम सिराजी कहते हैं, "लोगों को अधिक से अधिक पेड़ लगाने और उन्हें बचाने के लिए प्रोत्साहित करके, वास्तव में हम उन्हें अल्लाह के करीब ले जा रहे हैं. हम उन्हें अल्लाह की शक्तियों से अवगत कराकर ज्ञान भी दे रहे हैं, जैसे कठोर सर्दियों के बाद पेड़ों को नई जान भी देने वाला अल्लाह ही है." संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक अफगानिस्तान में पिछले साल कठोर मौसम की वजह से दो लाख से अधिक लोग विस्थापित हो गए थे. साथ ही देश के सामने खाद्य सुरक्षा का भी संकट है.

एए/सीके (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)

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