ग्लासगो से उम्मीदें
स्कॉटलैंड के शहर ग्लासगो में यूएन का जलवायु सम्मेलन चल रहा है, जिसे पृथ्वी को बचाने का आखिरी मौका कहा जा रहा है. इस सम्मेलन से पर्यावरण प्रेमियों की क्या उम्मीदें हैं, जानिए...
ग्लासगो से चाहती क्या है दुनिया
ग्लासगो में हिस्सा ले रहे नेताओं की ओर पूरी दुनिया के लोग उम्मीद भरी निगाहों से देख रहे हैं. पर्यावरणविदों का कहना है कि यह बड़े फैसले लेना का आखरी मौका है. पर वे फैसले क्या हैं?
जलवायु वित्त
विशेषज्ञ चाहते हैं कि अमीर देश जलवायु परिवर्तन की सबसे ज्यादा मार झेलने वाले देशों की आर्थिक और वित्तीय मदद करें ताकि वे इस संकट से निपट सकें.
1.5 डिग्री सेल्सियस का लक्ष्य
पेरिस में तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा न बढ़ने देने का लक्ष्य रखा गया था लेकिन तब से बहुत पानी भाप बनकर उड़ चुका है. ग्लासगो में यह लक्ष्य तय करना होगा कि पृथ्वी का तापमान सदी के आखिर तक 1.5 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा नहीं बढ़ने दिया जाएगा.
महत्वाकांक्षी योजनाएं
पेरिस समझौते को पांच साल हो गए हैं. अब समय है कि ग्लासगो में सारे सदस्य देश और ज्यादा बड़ी और महत्वाकांक्षी योजनाओं पर सहमत हों और कोशिश करें कि ज्यादा जोर लगाया जा सके क्योंकि 2050 तक कार्बन उत्सर्जन को नेट जीरो करने की योजना को भी वैज्ञानिक बहुत सुरक्षित नहीं मान रहे हैं.
जवाबदेही
बहुत सारे देशों ने कार्बन उत्सर्जन कम करने के लक्ष्यों का ऐलान तो किया है लेकिन उनकी कोई कानूनी जवाबदेही तय नहीं है. विशेषज्ञ और कार्यकर्ता चाहते हैं कि तमाम देश इन लक्ष्यों को कानूनन बाध्य बनाएं ताकि इनका ज्यादा असर हो.
सहमतों का संगठन
120 देशों का किसी एक योजना पर सहमत हो पाना आसान नहीं होगा. पेरिस में 2 डिग्री के लक्ष्य पर सहमति बनाने में ही पसीने छूटे गए थे. पर्यावरणविद चाहते हैं कि जो देश सहमत हैं वे जरूर साथ आएं और संगठित होकर काम करें.