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यूरोपीय कार उद्यमों लिए चीन का विकल्प बन सकता है इंडोनेशिया?

डेविड हट
६ मई २०२३

इंडोनेशिया खुद को इलेक्ट्रिक वाहनों के उत्पादन के प्रमुख केंद्र रूप में स्थापित करने की कोशिश में लगा है. दूसरी ओर फोल्क्सवैगन जैसी कार बनाने वाली बड़ी कंपनियां इस मौके का फायदा उठाने को उत्सुक दिख रही हैं.

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इंडोनेशिया में मर्सिडीज कार की फैक्टरी
इंडोनेशिया पर जर्मन कार कंपनियों की नजरतस्वीर: Azqa Harun/AA/picture alliance

यूरोपीय संघ और इंडोनेशिया इस साल के अंत तक एक मुक्त व्यापार समझौते की तैयारी में हैं क्योंकि इंडोनेशिया अपने इलेक्ट्रिक कार उद्योग को बढ़ाने की तैयारी में है. करीब 28 करोड़ की आबादी वाला यह देश आधुनिक कारों के निर्माण में जरूरी माने जाने वाले निकेल और दूसरे कच्चे पदार्थों के विशाल भंडार का दावा करता है. हालांकि इंडोनेशिया ने निकेल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा रखा है और बॉक्साइट के निर्यात पर भी प्रतिबंध लगाने की तैयारी कर रहा है. बॉक्साइट एक अयस्क (ore) है जिससे अल्युमिनियम निकाला जाता है.

अपनी खनिज संपदा को चीन या किसी अन्य देश को भेजने की बजाय, इंडोनेशिया अब अपने तटों पर इलेक्ट्रिक वाहनों की एक सप्लाई चेन खुद बनाना चाहता है और इसके जरिए अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की मंशा रखता है. ऐसा करके इंडोनेशिया खुद को चीन की तुलना में एक वैकल्पिक अंतरराष्ट्रीय ब्रांड के तौर पर स्थापित करना चाहता है. ऐसा लगता है कि उसकी यह रणनीति शुरू होने से पहले ही परिणाम देने लगी है. पिछले महीने, इंडोनेशिया के निवेश मंत्री बहलील लाहडालिया ने घोषणा की कि जर्मनी की कार निर्माता कंपनी फॉल्क्सवागन इंडोनेशिया में इलेक्ट्रिक कारों की बैटरी बनाने के लिए एक माहौल तैयार करने की इच्छुक है.

इलेक्ट्रिक कारों की बैटरी के लिए कहां से आये कच्चा माल

यह घोषणा हनोवर ट्रेड फेयर के दौरान की गई. तब जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स की मुलाकात इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विडोडो से हुई थी. उस समय, शॉल्त्स ने विडोडो को बताया कि वो इस समझौते को अंतिम रूप देने की तैयारी में हैं. विडोडो के साथ हुई बैठक के बाद शॉल्त्स ने बताया, "फिलहाल हम चीन से कई महत्वपूर्ण खनिजों का निर्यात करते हैं. यह जानते हुए भी कि कॉपर और निकल जैसी दुर्लभ मृदा धातुएं वहां नहीं मिलतीं, बल्कि इंडोनेशिया जैसे देशों में मिलती हैं.”

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फोर्ड और टेस्ला भी इंडोनेशिया में पांव जमाने की फिराक में हैं

दक्षिण पूर्व एशिया में सबसे ज्यादा आबादी और सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश होने के बावजूद, इंडोनेशिया के साथ यूरोपीय संघ के व्यापारिक रिश्ते बहुत कम हैं. साल 2021 में दोनों के बीच महज 24.8 बिलियन डॉलर की कीमत के सामानों का व्यापार हुआ. यह व्यापार यूरोपीय संघ और वियतनाम के बीच होने वाले व्यापार के आधे से भी कम है जबकि वियतनाम की आबादी दस करोड़ से भी कम है.

जर्मनी इंडोनेशिया के साथ अपने संबंधों को मजबूत करना चाहता है तो वहीं अमेरिका जैसे उसके प्रतिद्वंद्वी पहले से ही इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं. अमेरिका की कार बनाने वाली बड़ी कंपनी फोर्ड पहले ही इंडोनेशिया की कई कंपनियों से साझेदारी कर चुकी है, जबकि इलेक्ट्रिक वाहनों के मामले में दुनिया की अग्रणी कंपनी टेस्ला की इंडोनेशिया की सरकार से बातचीत चल रही है.

दुनिया की सबसे बड़ी रसायन निर्माता कंपनियों में से एक बीएसएफ एसई का मुख्यालय जर्मनी में है. यह कंपनी फ्रांस की मल्टीनेशनल कंपनी एरामे एसए के साथ मिलकर निकल-कोबाल्ट रिफाइनरी में निवेश करना चाह रही है. दक्षिणपूर्व एशिया में यूरोपीय संघ का व्यावसायिक प्रतिनिधत्व करने वाले संगठन के एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर क्रिस हम्फ्रे कहते हैं, "मुझे संदेह है कि इस तरह के निवेश की घोषणाएं आगे भी होंगी.”

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अरबों की डील की अभी भी पुष्टि नहीं हुई है

इलेक्ट्रिक गाड़ियों की बैटरी के उत्पादन में इस्तेमाल होने वाला मुख्य उत्पाद मिक्स्ड हाइड्रॉक्साइड प्रेसिपिटेट यानी एमएचपी है जो कि एक इंटरमीडियेट निकल पदार्थ है. जकार्ता में मौजूद विश्लेषक और रीफॉर्मेसी इन्फॉर्मेशन सर्विसेज कंसल्टेंसी के प्रमुख केविन ओ'रूर्के इसे ‘भविष्य का कच्चा तेल' बताते हैं. ओ'रूर्के कहते हैं, "दोनों पक्षों की इच्छा है कि जर्मनी इंडोनेशिया से एमएचपी मंगाए. दोनों पक्षों के लिए ऐसा करने से चीन पर उनकी निर्भरता कम होगी, जिनकी कंपनियां अभी लगभग संपूर्ण इंडोनेशिया एमएचपी उत्पादन के लिए जिम्मेदार हैं.”

इस साल की शुरुआत में, इंडोनेशियाई अधिकारियों ने कहा था कि बीएएसएफ और एरामे  एमएचपी उत्पादन के लिए 2.6 बिलियन डॉलर की साझेदारी की योजना बना रहे हैं. हालांकि किसी भी कंपनी ने इस समझौते की कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं की है. एरामे ने कहा था कि यदि इस प्लांट को मंजूरी मिल जाती है तो यह 2026 से काम करना शुरू कर सकता है.

इंडोनेशिया में इस समय जो एमएचपी उत्पादन होता है उस पर पूरी तरह से चीन के स्वामित्व वाली कंपनियों का नियंत्रण है. ये कंपनियां एमएचपी उत्पादन के लिए हाई प्रेशर एसिड लीच यानी एचएपील प्रक्रिया का इस्तेमाल लेटराइट अयस्क से निकल और कोबाल्ट निकालने में करती हैं. ये कंपनियां इस बात का खुलासा कभी नहीं करती हैं कि इस प्रक्रिया में कितना जहरीला कचरा इंडोनेशिया के वायुमंडल में जाता है.

बैटरी की गुणवत्ता पर सवाल

ओ'रूर्के कहते हैं, "यूरोपीय संघ ने इलेक्ट्रिक वाहनों और उनकी बैटरी की सप्लाई में गुणवत्ता को लेकर सही ढंग से आवाज उठाई है, जो कि पर्यावरण के अनुकूल नहीं है, जहरीले कचरे के मामले में भी और ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के मामले में भी.” हालांकि, समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक शायद बीएएसएफ और एरामे कारखाने भी एचएपीएल प्रक्रियाओं का उपयोग करेंगे. फॉल्क्सवागेन इंडोनेशिया में चीनी कंपनी के साथ मिलकर काम कर सकती है

एमएचपी उत्पादन के कई वैकल्पिक रास्ते भी हैं और ऑस्ट्रेलिया में तो एक कार्बन-निगेटिव उत्पादन श्रृंखला शुरू भी हो चुकी है. हालांकि विश्लेषकों का कहना है कि इसमें अभी भी आशंका है कि क्या विदेशी कंपनियां इसी तरह की प्रक्रिया के लिए इंडोनेशिया में निवेश करेंगी? विश्लेषक इस स्वच्छ विकल्प को लेकर इंडोनेशियाई सरकार की प्रतिबद्धता पर भी सवाल उठाते हैं.

ओ'रूर्के आरोप लगाते हैं, "इंडोनेशिया के नीति निर्माता चीन को गंदा एमएचपी सप्लाई करते रहने में ज्यादा सहूलियत महसूस करते हैं.” और पश्चिमी देशों की कंपनियों को भी इस क्षेत्र में पहले से ही मौजूद चीनी कंपनियों के साथ सहयोग की जरूरत है. इसी महीने इंडोनेशिया के निवेश मंत्री की ओर से जारी बयान के मुताबिक, जर्मनी की कार कंपनी फोल्क्सवागेन बैटरी खनिज का उत्पादन करने वाली चीन की कंपनी झीजियांग होयेऊ कोबाल्ट के साथ साझेदारी कर सकती है. चीन को एमएचपी भेजने वाली यह पहली कंपनी है.

ब्रसेल्स और जकार्ता पर दबाव बढ़ रहा है

जर्मन एसोसिएशन ऑफ द ऑटोमेटिव इंडस्ट्री या वीडीए के एक प्रवक्ता ने डीडब्ल्यू को बताया कि इंडोनेशिया और यूरोपियन संघ के लिए यह बहुत जरूरी था कि दोनों मुक्त व्यापार समझौते को जल्द से जल्द अंतिम रूप दें. उनके मुताबिक, "यह वैश्विक स्तर पर कच्चे माल की आपूर्ति श्रृंखला के आवश्यक विस्तार और विविधता में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है जो कि इलेक्ट्रोमोबिलिटी को बढ़ावा देने के लिए बहुत जरूरी है. साथ ही वाहनों और उनके पार्ट्स को दोनों इलाकों के लिए बाजार की उपलब्धता भी बढ़ाएगा.”

इंडोनेशिया और यूरोप के कई राजनीतिज्ञ यह बात दोहरा चुके हैं कि वे इस साल के अंत तक इस समझौते को अंतिम रूप देने की तैयारी में हैं. यह समय बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि 2024 के चुनाव राष्ट्रपति विडोडो और यूरोपियन आयोग की राष्ट्रपति उर्सुला वॉन डर लेयेन दोनों की देखेंगे, जो दक्षिणपूर्व एशिया में मुक्त व्यापार के प्रबल समर्थक हैं.