फिर पॉपुलर होती 'एस्परांतो' भाषा
क्या आपने कभी एस्परांतो भाषा का नाम सुना है. सवा सौ साल पहले बनाई गई इस भाषा को 'शांति की भाषा' कहा जाता है. इसे आज कितने लोग बोलते हैं और इसकी क्या खासियत है. चलिए जाने हैं.
बढ़ती लोकप्रियता
एस्परांतो को बोलने वाले आज आपको दुनिया के हर कोने में मिल जाएंगे. हालांकि राजनीतिक वजहों से पिछले सदी में इस भाषा प्रसार सीमित ही रहा. लेकिन इंटरनेट के दौर में यह तेजी से लोकप्रिय हो रही है.
बनावटी भाषा?
भाषाओं को बनने में सैकड़ों और हजारों साल का समय लगता है. लेकिन एस्परांतो सिर्फ सवा सौ साल पुरानी भाषा है. एक निश्चित उद्देश्य को लेकर बनाई गई इस भाषा को कई लोग कृत्रिम, नियोजित या फिर तैयार की गई भाषा भी कहते हैं.
एस्परांतो के जनक
इस भाषा को एक पोलिश यहूदी नेत्र विशेषज्ञ एलएल जामनहोफ ने तैयार किया था. वह एक ऐसी आसान और लचीली भाषा बनाना चाहते थे, जिसे दुनिया भर के लोग मातृभाषा के बाद अपनी दूसरी भाषा के तौर पर अपनाएं और उनके बीच दूरियां कम हों.
बुनियादी 16 नियम
एस्परांतो में सभी शब्द और वाक्य 16 बुनियादी नियमों के आधार पर बनते हैं. इसमें अन्य भाषाओं की तरह जटिल अभिव्यक्तियों को शामिल नहीं किया गया है. इसके शब्द जर्मन, अंग्रेजी, फ्रेंच, स्पैनिश और इटालियन जैसी भाषाओं से लिए गए हैं.
एस्परांतो का अर्थ
यह भाषा 19वीं सदी के आखिरी बरसों में अस्तित्व में आई. हालांकि इसकी पहली किताब उनुआ लिब्रो 1887 में प्रकाशित हो गई थी. एस्परांतो का शाब्दिक अर्थ है ऐसा व्यक्ति जिसके पास उम्मीद है.
नियम कायदे
1905 में जामनहोफ की किताब 'फंदामेंतो दे एस्परांतो' आई जो इस भाषा के व्याकरण और शब्दों का संग्रह था. उसी साल फ्रांस में पहली वर्ल्ड एस्परांतो कांग्रेस हुई. इसके बाद दुनिया के अलग अलग हिस्सों में यह भाषा पहुंची.
कितने बोलने वाले
सही सही यह बताना मुश्किल है कि आज कितने लोग इस भाषा को बोलते हैं. एक अनुमान के मुताबिक ऐसे लोगों की संख्या पांच लाख से बीस लाख के बीच हो सकती हैं. इनमें से ज्यादातर लोग यूरोप में रहते हैं.
जर्मनी से भारत तक
जर्मनी में एस्परांतो भाषियों की संख्या लगभग एक लाख मानी जाती है. कुल 120 देशों में इसे जानने वाले लोग पाए जाते हैं. भारत में भी कुछ लोगों ने मिलकर ऑल इंडिया एस्परांतो संगठन बनाया है.
एस्परांतो के खतरे
नाजी जर्मनी में एस्परांतो बोलने वालों को निशाना बनाया गया था. ऐसा ही स्टालिन के दौर में सोवियत संघ भी हुआ. एस्परांतो बोलने वालों को शक की निगाह से देखा जाता था और उन्हें खतरनाक समझा जाता था.
जिंदा एस्परांतो
जानकार बताते हैं कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद दुनिया में संपर्क भाषा के तौर पर अंग्रेजी का प्रभाव तेजी से बढ़ा, जिससे एस्परांतो के लिए संभावनाएं सिमटती गईं. फिर भी कई लोगों ने इस भाषा को जीवित रखा.
ऑनलाइन एस्परांतो
इंटरनेट के प्रसार ने एस्परांतो में नई जान फूंकी है. देशों और सीमाओं के बंधन से मुक्त यह भाषा कई लोगों को अपनी तरफ खींच रही है. कई ऐसे माता पिता हैं जो अपने बच्चों को शुरू से ही एस्परांतो सिखा रहे हैं.
साइबर स्पेस में धूम
इस समय विकीपीडिया पर एस्परांतो भाषा में 2.4 लाख लेख है. लगभग इतने लेख तुर्क भाषा में है जिसे बोलने वाले 7.1 करोड़ हैं. कई साल से गूगल और फेसबुक जैसी लोकप्रिय वेबसाइटों के एस्परांतो वर्जन मौजूद हैं.