अल सल्वाडोर: न्याय का गर्भपात
२५ सितम्बर २०२०जब तक 29 साल की सिंडी एराजो को रिहा करने का फैसला आया है तब तक वह अपनी सजा के 10 सालों में से 6 काट चुकी हैं. लैटिन अमेरिकी देश अल सल्वाडोर के कानून के हिसाब से उनके गर्भपात को गंभीर होमीसाइड माना गया. उस घटना के समय वह अपनी गर्भावस्था के आठवें महीने में थी. राजधानी सैन सैल्वाडोर के एक शॉपिंग मॉल में जब वह खरीदारी करने गईं तो वहीं के शौचालय में गर्भ में पल रहा उनका बच्चा गिर गया था.
सरकार ने अपने बच्चे की हत्या के जुर्म में सजा काट रही महिला को जेल से रिहा कर दिया है. लेकिन जिस देश में महिला को अपनी इच्छा से गर्भपात कराने की अनुमति नहीं है, वहां के लिए ऐसी घटनाओं का बहुत महत्व है.
इससे पहले भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध हुए 2017 के एक मामले में बलात्कार के कारण गर्भवती हुई 21 साल की एक महिला एवलिन हरनांडेज का गर्भपात होने पर उस पर हत्या का आरोप लगा कर जेल में डाल दिया गया. लेकिन 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की दोबारा सुनवाई का मौका दिया. अपील कोर्ट में सुनवाई के बाद उनकी 30 साल की सजा को रद्द कर महिला को रिहा कर दिया गया. इस मामले ने बाकी ऐसी महिलाओं को न्याय मिलने की उम्मीद जगाई.
कैसे हैं गर्भपात के कानून
देश के कानून में किसी भी तरह के गर्भपात को अवैध माना जाता है और गर्भवती महिला और इससे जुड़े डॉक्टर तक के लिए कड़ी सजा का प्रावधान है. यही कारण है कि घटना के दिन जब एराजो को जब शॉपिंग मॉल से अस्पताल ले जाया गया, तभी अस्पताल प्रशासन ने उन पर अपना बच्चा गिराने का आरोप लगाया था. उन्होंने लाख सफाई दी कि ऐसा जानबूझकर नहीं किया लेकिन अदालत ने उन्हें गर्भपात के दोष में 30 साल की सजा सुनाई. बाद में उनके दोष को होमीसाइड करार दिया गया और सजा को घटा कर 10 साल कर दिया गया.
सेंटर फॉर वीमेंस इक्वॉलिटी की कार्यकारी निदेशक पाओला अविला गिलेन कहती हैं कि सिंडी एराजो के मामले ने देश के "गर्भपात पर इतने सख्त प्रतिबंध होने की भयानक सच्चाई की तरफ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ध्यान दिलाया.”
रिहाई से मिला एक अहम संदेश
एराजो की रिहाई पर सिटिजंस ग्रुप फॉर दि डिसक्रिमिनेशन ऑफ एबॉर्शन से जुड़ी मोरेना हरेरा कहती हैं कि इससे "यह पुष्टि होती है कि अगर एकजुट हों तो न्याय मिलना संभव है.” मानवाधिकार समूहों के अनुसार, अल सल्वाडोर की अलग अलग जेलों में अब भी कम से कम 18 ऐसी महिलाएं गर्भपात के मामलों में सजा काट रही हैं.
इस मामले के बाद से विश्व भर के मानवाधिकार संगठनों की ओर से अल सल्वाडोर को लगातार सुझाव भेजे जा रहे हैं. इनके बारे में बताते हुए सेंटर फॉर रिप्रोडक्टिव राइट्स की कारमेन मार्टिनेज कहती हैं कि वे सब लड़कियों और महिलाओं के यौन और प्रजनन के जुड़े अधिकारों को सुधारने की मांग कर रहे हैं.
महिला का बुनियादी हक
देश की ज्यादातर आबादी कैथोलिक ईसाई धर्म को मानती है और यहां के गर्भपात कानून दुनिया के सबसे सख्त कानूनों में से एक हैं. उस स्थित में भी किसी महिला को गर्भ गिराने की अनुमति नहीं है जब उसके साथ बलात्कार के कारण गर्भ ठहरा हो, परिवार के किसी सदस्य के कारण या फिर भले ही गर्भावस्था से उसकी जान जाने का खतरा ही क्यों ना हो.
वैसे तो कानून में इसके लिए आठ साल की अधिकतम सजा का प्रवधान है लेकिन तमाम मामलों में होमीसाइड यानि जानबूझ कर बच्चे को मारने का आरोप जोड़ कर महिलाओं को 30 से 60 साल तक की सजा सुनाई जाती है. हर साल केवल अल सल्वाडोर में औसतन 25,000 महिलाएं बलात्कार के कारण गर्भवती होती हैं. इनमें से ज्यादातर को किसी तरह छुप कर गर्भपात की व्यवस्था करनी पड़ती है, जो कइयों के लिए जानलेवा साबित होता है.
आरपी/एके (एपी, डीपीए)
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