क्यों खास है फिनलैंड का शिक्षा मॉडल
शिक्षा और साक्षरता के मामले में विकसित देशों में फिनलैंड का स्थान काफी ऊंचा है. इसका कारण फिनलैंड की असाधारण शिक्षा प्रणाली को बताया जाता है. देखिए क्या हैं वे खास बातें.
देर से शुरुआत
अंतरराष्ट्रीय स्कूलों की रैंकिंग में लगातार टॉप पर रहने वाले फिनलैंड के स्कूलों की सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली को आदर्श माना जाता है. पहला कारण बच्चों को ज्यादा लंबे समय तक बच्चे बने रहने देना है. यहां बच्चे करीब सात साल की उम्र में स्कूल जाना शुरु करते हैं जबकि भारत में 3 साल में.
खेल खेल में पढ़ाई
बच्चों को हर घंटे के हिसाब से कम से कम 15 मिनट खेल के मैदान में बिताने ही होते हैं. ऐसा पाया गया है कि खेल के बाद बच्चों का पढ़ाई में काफी ध्यान लगता है. जिसको ध्यान में रखते हुए फिनलैंड में बच्चों को लगातार कक्षा में नहीं बैठाया जाता.
परीक्षा का बोझ नहीं
फिनलैंड का राष्ट्रीय शिक्षा बोर्ड बताता है कि "शिक्षा का जोर परखने से अधिक सिखाने पर है." यहां हाई स्कूल में स्कूल छोड़ने के पहले एक अनिवार्य परीक्षा देनी होती है. उसके पहले की क्लासों में शिक्षक बच्चों के असाइनमेंट पर विस्तार से केवल अपना फीडबैक देते हैं, कोई ग्रेड या अंक नहीं.
शिक्षक का सम्मान
फिनलैंड में शिक्षकों को नए नए प्रयोग करने की पूरी आजादी होती है. शिक्षक का पेशा बहुत इज्जत से देखा जाता है और इसके लिए आपको कम से कम मास्टर्स डिग्री लेना जरूरी होता है. ओईसीडी का सर्वे दिखाता है कि शिक्षक बच्चों पर होमवर्क का बोझ भी नहीं डालते. फिनलैंड के किशोर हफ्ते में औसतन 2.8 घंटे ही होमवर्क में लगाते हैं.
हर हुनर की कीमत
फिनलैंड में 1960 के दशक में नए शिक्षा सुधार लाए गए. यह सबके लिए मुफ्त और उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा मुहैया कराने के सिद्धांत पर आधारित है. यहां हर बच्चे पर ध्यान देकर उसके किसी खास हुनर को पहचानने और उसे बढ़ावा देने पर जोर होता है.
डिजिटल दुनिया के लिए तैयार
दुनिया में कुछ ही देशों में बच्चों को डिजिटल युग के लिए ठीक से तैयार किया जा रहा है. फिनलैंड उनमें से एक है क्योंकि 2016 तक ही यहां के सभी प्राइमरी स्कूलों में कोडिंग उनके पाठ्यक्रम का एक मुख्य विषय होगा. कोडिंग की मदद से ही कंप्यूटर सॉफ्टवेयर, ऐप और वेबसाइटें बनाई जाती हैं.
मुफ्त पर बहुमूल्य शिक्षा
फिनलैंड में केवल स्कूल ही नहीं बल्कि कॉलेज की पढ़ाई भी मुफ्त है. यहां प्राइवेट स्कूल नहीं होते. धीमी गति से सीखने वाले बच्चों के लिए खास संस्थान हैं. सालाना करीब दो प्रतिशत बच्चे इन विशेष संस्थानों में जाते हैं.