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आर्थिक सर्वे में आठ प्रतिशत जीडीपी विकास दर का दावा

चारु कार्तिकेय
३१ जनवरी २०२२

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2022-23 का आर्थिक सर्वेक्षण पेश कर दिया है. सर्वेक्षण में आगामी वित्त वर्ष में आठ से लेकर 8.5 प्रतिशत जीडीपी विकास दर का पूर्वानुमान पेश किया गया है.

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फाइल तस्वीरतस्वीर: Manish Swarup/AP/picture alliance

हालांकि सर्वेक्षण में इस विकास दर को हासिल करने के लिए कई शर्तें भी रखी गई हैं, जैसे फिर से महामारी से जुड़ी कोई आर्थिक उलटफेर न हो, मानसून सामान्य रहे, अंतरराष्ट्रीय निवेशकों द्वारा पैसा वापस खींचना तर्कसंगत रहे और अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम 70 से 75 बैरल रहें.

हालांकि इतनी शर्तों के बावजूद यह पूर्वानुमान कुछ महीनों पहले एनएसएसओ द्वारा मौजूदा वित्त वर्ष (2021-22) के दिए गए 9.2 पूर्वानुमान के मुकाबले विकास दर में गिरावट है. विश्व बैंक ने कहा था 2022-23 में विकास दर 8.7 रहेगी.

बेहतर हालात के दावे

आर्थिक सर्वेक्षण का अनुमान उससे भी नीचे हैं. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने तो 2022-23 के लिए विकास दर का पूर्वानुमान नौ प्रतिशत रखा है. वहीं एशियाई विकास बैंक ने 7.5 प्रतिशत का पूर्वानुमान दिया है.

सरकार ने सर्वेक्षण में कहा है कि 9.2 प्रतिशत की दर हासिल कर के अर्थव्यवस्था ने महामारी से भी पहले के विकास के स्तर को दोबारा हासिल कर लिया है.

याद रखने की बात है कि साल भर पहले सरकार ने खुद माना था कि 2020-21 में जहां उसे जीडीपी में 6-6.5 प्रतिशत विकास की उम्मीद थी, वहीं जीडीपी में विकास की जगह सात प्रतिशत की गिरावट देखने को मिली थी.

सरकार ने यह भी कहा है कि 2021-22 में देश में कुल खपत में भी सात प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गई है. सरकार की कमाई में भी 67 प्रतिशत का इजाफा हुआ है. औद्योगिक क्षेत्र में 11.8 प्रतिशत बढ़ोतरी होने का अनुमान है.

इसके अलग अलग अंशों में से उत्पादन में 12.5 प्रतिशत बढ़ोतरी, खनन क्षेत्र में 14.3 प्रतिशत, निर्माण क्षेत्र में 10.7 प्रतिशत और बिजली, गैस और पानी आपूर्ति क्षेत्र में 8.5 प्रतिशत बढ़ोतरी का अनुमान है.

विपक्ष के सवाल

सर्वेक्षण के मुताबिक कृषि और संबंधित क्षेत्रों में 2020-21 में हुई 3.6 प्रतिशत बढ़ोतरी के मुकाबले 2021-22 में 3.9 प्रतिशत बढ़ोतरी का अनुमान है. सेवा क्षेत्र पर महामारी का सबसे ज्यादा असर पड़ा है और इसमें 8.2 प्रतिशत बढ़ोतरी का अनुमान है.

पिछले साल तो इस क्षेत्र में 8.4 प्रतिशत की गिरावट देखी गई थी. अब देखना यह है कि सरकार के ताजा आंकड़े सच्चाई से कितना मेल खाते हैं. विपक्ष ने सरकार के दावों पर कई सवाल उठाए हैं.

कांग्रेस नेता और पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा है कि सरकार सिर्फ "शेखी बघार रही है" जबकि असलियत यह है कि "पिछले दो सालों में लाखों नौकरियां चली गई हैं, 84 प्रतिशत परिवारों की आय में कमी आई है, 4.6 करोड़ लोग गरीबी में धकेल दिए गए हैं और ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत 116 देशों में से 104वें स्थान पर पहुंच गया है."

सीपीएम नेता सीताराम येचुरी ने भी कहा है कि असलियत यह है कि देश में इस समय 20 करोड़ नौकरियों की कमी है, करीब 80 प्रतिशत परिवारों की आय गिरी है और करीब 23 अतिरिक्त लोग गरीब हो गए."

आर्थिक मामलों के कई जानकारों ने भी आर्थिक सर्वेक्षण के आंकड़ों पर सवाल उठाए हैं.

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