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अब लग सकेगा 1-2 साल के बच्चों में ऑटिज्म का पता

१६ मार्च २०२२

ऑस्ट्रेलियाई रिसर्चरों ने ऐसे टूल तैयार किए हैं जिनसे 1 से 2 साल के बच्चों में ही ऑटिज्म का पता चल सकेगा. अब तक के टूल जल्दी से जल्दी भी इसका पता 5-6 साल की उम्र तक ही लगा पाते हैं.

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Mutter Kind Hände
तस्वीर: Wladimir Wetzel/Colourbox

ऑस्ट्रेलिया के ला ट्रोब यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों ने पांच साल तक 13 हजार से भी अधिक बच्चों पर स्टडी की. अपने बनाए एक टूल से जब उन्होंने इस समूह की जांच की तो बहुत कम उम्र में ऑटिज्म पकड़ने में सफलता मिली. इस स्क्रीनिंग टूल की जांच में 12 से 24 साल के जिन बच्चों में ऑटिज्म की संभावना निकली, बाद में जाकर इनमें से 83 फीसदी मामले सही साबित हुए.

आजकल मौजूद टेस्ट के तरीकों से बच्चों में ऑटिज्म का पता जल्दी से जल्दी भी इसके चार चाल बाद ही चलता है. रिसर्चरों का कहना है कि जितना जल्दी पता चल सके बच्चों का आगे का जीवन उतना बेहतर बनाया जा सकता है. इस स्टडी की मुख्य रिसर्चर जोसेफीन बारबरो ने डीडब्ल्यू को ईमेल से भेजे जवाब में कहा, "जिन बच्चों में जल्दी इसका पता चल जाए उनमें स्कूल की उम्र तक जाते जाते बोलने और बाकी समझने की झमता बेहतर की जा सकती है, इससे उनके सामान्य स्कूलों में पढ़ने की संभावना बढ़ाई जा सकती है और आगे चल कर भी देर से पहचाने गए बच्चों के मुकाबले कम से कम मदद की जरूरत होती है."

ऑटिज्म कोई बीमारी नहीं है और ना ही कोई मेडिकल कंडीशन जिसके इलाज की जरूरत हो या जिसका इलाज किया जा सके. यह किसी इंसान के व्यक्तित्व का हिस्सा होता है जिसके साथ ही उसे जीवन भर रहना होता है. ऑटिज्म के साथ जीने वालों को कई बार दूसरों से संवाद स्थापित करने में मुश्किलें आती हैं या फिर कुछ लोगों की इंद्रियों पर तेज रोशनी या शोर बहुत भारी पड़ते हैं.

आठ भाषाओं में डॉयग्नॉस्टिक टूल

M-CHAT जैसे मौजूदा टेस्ट 4 से 6 साल के बच्चों में ऑटिज्म का पता लगा पाते हैं. M-CHAT का पूरा नाम है मॉडिफाइड चेकलिस्ट फॉर ऑटिज्म इन टॉडलर्स. जो नया टूल ऑस्ट्रेलियाई रिसर्चरों ने बनाया है इसका नाम है SACS यानि सोशल अटेंशन एंड कम्युनिकेशन सर्वीलेंस. इसके दो हिस्से हैं. पहला SACS-रिवाइज्ड और दूसरा SACS-प्रीस्कूल.

जब SACS-रिवाइज्ड (R) और SACS-प्रीस्कूल दोनों का इस्तेमाल किया गया तो उसके नतीजे 96 फीसदी तक सही रहे. दूसरी जांच 3.5 साल की उम्र में हुई जिस समय ऑटिज्म स्पेक्ट्रम पर बच्चों की बहुत सटीक पहचान की जा सकी.

रिसर्चर बारबरो ने बताया कि 13 स्टडीज के मेटा एनालिसिस से पता चलता है कि M-CHAT की "6 फीसदी" सटीक होने के मुकाबले SACS-R's 83 फीसदी तक सही साबित हुए. नए SACS टूल का अनुवाद आठ भाषाओं में किया गया है और इनका इस्तेमाल 11 देशों में किया जा चुका है. इनमें बांग्लादेश, चीन, इटली, जापान, नेपाल, न्यूजीलैंड, पोलैंड, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया, स्पेन और ब्रिटेन शामिल हैं.

ऑटिज्म: समस्या नहीं, प्रतिभा

पता लगाया कठिन

ऑस्ट्रेलिया की ला ट्रोब यूनिवर्सिटी के ओल्गा टेनिसन ऑटिज्म रिसर्च सेंटर से जुड़ी रिसर्चर बारबरो का सपना है कि यह टूल हर जगह इस्तेमाल हो सके. उन्होंने कहा, "इस बेहद कारगर टूल को प्रशिक्षित प्राइमरी हेल्थ वर्कर के हाथों में पहुंचा दें तो अपने रूटीन चेकअप के दौरान वे यह भी चेक कर पाएंगे कि बच्चे में ऑटिज्म है या नहीं. इससे बहुत बड़ा बदलाव आ सकता है."

ऑस्ट्रेलिया की ही एक और स्टडी से पता चला है किबचपन में ही थेरेपी मिल जाने से उनमें सोशल डेवलपमेंट बहुत अच्छा होता है.

अमेरिका का सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन कहता है कि जितने देर से ऑटिज्म का पता चलता है उसमें मदद कर पाना उतना ही "कठिन" होता है. कारण यह है कि इसके लिए "ब्लड टेस्ट जैसा कोई मेडिकल टेस्ट नहीं होता." यह पूरी तरह उस डॉक्टर पर निर्भर करता है जो बच्चे के विकास और उसके हावभाव को देखकर इसका पता लगा सके. नई स्टडी जामा ओपन नेटवर्क ने प्रकाशित की है.