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इतिहासजर्मनी

डच प्रकाशकों ने वापस ली ऐन फ्रैंक पर विवादित किताब

मानसी गोपालकृष्णन
२४ मार्च २०२२

प्रकाशक समूह एम्बो एन्थोस ने अपनी किताब "दि बिट्रेयल ऑफ ऐन फ्रैंक: ए कोल्ड इन्वेस्टिगेशन" को वापस ले लिया है. छह डच विशेषज्ञों ने इसकी शिकायत की थी और किताब को अपुष्ट धारणाओं पर आधारित बताया था.

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Amsterdam Anne Frank
तस्वीर: Anne Frank House Amsterdam/AP/picture alliance

एम्सटर्डम के प्रकाशन समूह एम्बो एन्थोस ने अपनी किताब "दि बिट्रेयल ऑफ ऐन फ्रैंक: ए कोल्ड इन्वेस्टिगेशन" के डच संस्करण को बाजारों से वापस लेने की घोषणा की है. छह जाने माने इतिहासकारों ने इस किताब की सामग्री पर सवाल उठाए थे और उसमें "कहीं कहीं पर उसके स्रोत को गलत समझने और उसकी गलत व्याख्या" की शिकायत की थी. इसे मानते हुए प्रकाशकों ने कहा, "कुछ प्रतिष्ठित विशेषज्ञों ने किताब में एक जांच के वर्णन को लेकर बहुत गंभीर रिपोर्ट पेश की है. रिपोर्ट के नतीजों के आधार पर हमने इस किताब को फौरन वापस लेने का फैसला किया."

प्रकाशकों ने किताब की दुकानों से इसके पूरे स्टॉक को वापस भेजने को कहा है और उन लोगों से माफी मांगी है जिन्हें इसके कारण बुरा लगा है. किताब के एक प्रसंग में जिक्र है कि ऐन फ्रैंक के परिवार को एक यहूदी नोटरी ने धोखा दिया था. 

विवादों में घिरी इस किताब को लिखा है कनाडा की रोजमेरी सुलिवन ने. उनकी लेखनी का आधार एक जांच थी जिसे अमेरिकी एफबीआई के जासूस विन्स पैनकोक ने अंजाम दिया था. उसमें दावा किया गया था कि जिस व्यक्ति ने ऐन फ्रैंक के परिवार के एम्सटर्डम वाले गुप्त ठिकाने को उजागर किया था, बहुत संभावना है कि वह आर्नोल्ड फान डेन बर्ग नाम का एक यहूदी नोटरी था. इस नोटरी की 1950 में गले के कैंसर से मौत हो गई थी. किताब में आरोप लगाया गया था कि उसने अपने परिवार को नाजी यातना शिविर में डाले जाने से बचाने के लिए जर्मन सेना को ऐन फ्रैंक के छुपने की जगह का पता बता दिया था.

छह इतिहासकारों ने लिखा है कि "इस गंभीर आरोप के लिए कोई ठोस सबूत नहीं है." इन विशेषज्ञों ने अपनी आलोचना को एक 68-पेजों की रिपोर्ट में इकट्ठा किया है जिसका शीर्षक है "दि बिट्रेयल ऑफ ऐन फ्रैंक: ए रेफ्यूटेशन" इस्राएली अखबार हारेत्स ने इस रिपोर्ट के हवाले से लिखा है कि "भला कोई क्यों खुद सुरक्षित जगह छिपा होकर दूसरे को धोखा देगा. उसके पास ऐसा करने का कोई असल मोटिव नहीं होगा जब उसके बीवी बच्चे भी सब छिपे हों? तो सब मिला कर कहें: कोई मोटिव नहीं है."

इन नतीजों को प्रकाशित करने के लिए फान डेन बर्ग की पोती मिरियम डे गोर्टर ने एक्सपर्ट्स का शुक्रिया अदा किया. उन्होंने शिकायत की थी कि उनके इंटरव्यू को किताब में सही रूप में इस्तेमाल नहीं किया गया था. उन्होंने हार्पर कॉलिन्स प्रकाशन समूह से भी अनुरोध किया है कि अंतरराष्ट्रीय बाजारों से किताब को हटा ले.

Tagebuch von Anne Frank
ऐन फ्रैंक की डायरी की एक कटपी बर्लिन के ऐन फ्रैंक सेंटर में भी रखी हैतस्वीर: Insa Kohler/dpa/picture alliance

जनवरी में इस किताब के प्रकाशन के समय से ही इस पर विवादों का साया रहा है. ऐन फ्रैंक हाउस म्यूजियम के निदेशक रोनाल्ड लेओपोल्ड ने इस किताब की धारणाओं को "एक दिलचस्प थ्योरी" बताया और कहा कि इस पहेली के कई हिस्से अभी भी खोए हुए हैं. इसे साबित करने के लिए इस थ्योरी की आगे जांच करने की जरूरत है. नीदरलैंड्स के सेंट्रल जूइश बोर्ड के प्रमुख किताब में पेश नतीजों को "बहुत अटकलबाजी वाली और सनसनीखेज" बता चुके हैं.

तो आखिर किसने ऐन फ्रैंक को धोखा दिया था? आज तक इसके जवाब में ना जाने कितने सिद्धांत पेश हो चुके हैं जिनमें वर्णन है कि अगस्त 1944 में एक नाजी छापामारी के दौरान उनके परिवार के छुपने की जगह का पता चला था. एम्सटर्डम की नहरों के जाल में ही कहीं एक जगह पर उसके किनारे बने घर के बेसमेंट में दो साल तक छुपे रहने के बाद अचानक नाजी सेना को उनका पता चल गया और फिर उन्हें यातना शिविरों में भेज दिया गया. ऐन और उनकी बहन मार्गो को बेर्गेन बेलसन भेजा गया, जहां केवल 15 साल की उम्र में ऐन की मौत हो गई. उनके परिवार में से होलोकॉस्ट से जिंदा बचने वाले केवल ऐन फ्रैंक के पिता ओटो फ्रैंक थे, जिन्होंने दूसरे विश्व युद्ध के बाद ऐन फ्रैंक की डायरी प्रकाशित करवाई.