1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
समाज

क्यों जल रहा है दक्षिण अफ्रीका?

१४ जुलाई २०२१

दक्षिण अफ्रीका में विरोध प्रदर्शन बढ़कर हिंसा और जानों के नुकसान तक पहुंच गया है. लेकिन हिंसा की असल वजह क्या सिर्फ जैकब जुमा के खिलाफ आया फैसला है?

https://p.dw.com/p/3wRUJ
तस्वीर: Siphiwe Sibeko/Reuters

जलते शॉपिंग मॉल, लुटती दुकानें और पुलिस के साथ झड़पते लोग. मंगलवार को दक्षिण अफ्रीका के कई शहरों में ऐसा मंजर था, जैसा पिछले कई सालों में नहीं हुआ था. पूर्व राष्ट्रपति जैकब जुमा की गिरफ्तारी के बाद शुरू हुई हिंसा बद से बद्तर होती जा रही है. देश में दर्जनों लोग इस हिंसा की भेंट चढ़ चुके हैं.

पिछले हफ्ते जैकब जुमा की गिरफ्तारी के बाद विरोध प्रदर्शनों का एक सिलसिला शुरू हुआ था जो बहुत जल्द हिंसक हो गया. जैकब जुमा की गिरफ्तारी भ्रष्टाचार के एक मामले में जांच के लिए हाजिर न होने के बाद हुई थी. लेकिन जो हिंसा हुई है, वह सिर्फ जुमा की गिरफ्तारी के खिलाफ नहीं है.

ऐसा माना जा रहा है कि रंगभेद की नीति खत्म होने के 27 साल बाद भी देश में जारी असमानता और गरीबी के कारण लोगों के अंदर पल रहा गुस्सा फूट रहा है. कोविड-19 के कारण लगाई गई पाबंदियों के बाद आर्थिक और सामाजिक मुश्किलें और बढ़ी हैं और गरीबी भी फैली है.

सुरक्षा अधिकारियों का कहना है कि सरकार हिंसा रोकने के लिए काम कर रही है, जो सबसे पहले जैकब जुमा के गृह-राज्य क्वाजूलू-नेटल में शुरू हुई थी और अब देश के सबसे बड़े शहर जोहनिसबर्ग से होती हुई तटीय शहर डरबन तक पहुंच चुकी है. विरोध प्रदर्शनों के तौर पर शुरू हुई यह हिंसा अब लूटपाट और आगजनी में बदल चुकी है.

72 लोगों की मौत

दक्षिण अफ्रीकी पुलिस (SAPS) ने कहा है कि कम से 72 लोगों की जान जा चुकी है और 1,234 लोग गिरफ्तर किये गए हैं. दो और प्रांतों में हिंसा फैलने की खबरों के बीच पुलिस का कहना है कि "पुलिसकर्मी खतरे के तौर पर चिन्हित इलाकों में गश्त कर रहे हैं ताकि मौके का फायदा उठाकर हो रहीं आपराधिक गतिविधियों को रोका जा सके.” सेना को भी सड़कों पर उतार दिया गया है ताकि हिंसा को रोका जा सके.

79 वर्षीय जैकब जुमा को पिछले महीने सैंवाधानिक आदेश का पालन न करने के लिए सजा सुनाई गई थी. उनके कार्यकाल में भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे थे जिनकी जांच के लिए उच्च स्तरीय समिति बनाई गई है. इस समिति ने जुमा को पेश होने के लिए कहा था लेकिन वह नहीं आए, जिसके बाद उन्हें संवैधानिक आदेश की अवहेलना का दोषी पाया गया. उन्होंने आत्मसमर्पण किया जिसके बाद से वह जेल में हैं.

Südafrika - Proteste und Gewalt nach Verurteilung von Jacob Zuma
दक्षिण अफ्रीका में विरोध प्रदर्शन दंगों में बदल चुके हैंतस्वीर: Sumaya Hisham/Reuters

जैकब जुमा पर भ्रष्टाचार, धोखाधड़ी, हवाला और रैकिटीयरिंग के आरोपों में भी मुकदमा चल रहा है. मई में उन्होंने खुद को निर्दोष बताया था. जुमा की संस्था ने कहा है कि जब तक पूर्व राष्ट्रपति जेल में हैं, दक्षिण अफ्रीका में शांति नहीं होगी. एक ट्वीट में उनकी फाउंडेशन ने कहा, "दक्षिण अफ्रीका में शांति और सीधे तौर पर राष्ट्रपति जुमा की फौरन रिहाई से जुड़ी है.”

फाउंडेशन के प्रवक्ता म्ज्वानेले मानयी ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया, "हिंसा से बचा जा सकता था. यह संवैधानिक अदालत द्वारा जुमा को हिरासत में लेने के फैसले के साथ शुरू हुई. इसी ने लोगों को क्रोधित कर दिया.”

चौतरफा असर

देश में हो रही हिंसा का चौतरफा असर हो रहा है. मंगलवार को बैंकों, प्रॉपर्टी और रीटेल कंपनियों के शेयरों की कीमतों में बड़ी गिरावट देखी गई. दुकानें और पेट्रोल पंप बंद पड़े हैं. डरबन के पास इसीतेबे कस्बे में एक कपड़ा फैक्ट्री है, जहां 600 लोग काम करते हैं. टेक्सटाइल यूनियन का कहना है कि मशीनें और सामान लूट लिया गया है इसलिए फैक्ट्री को बंद करना पड़ेगा.

Südafrika - Proteste und Gewalt nach Verurteilung von Jacob Zuma
आगजनी के कारण बाजार और पेट्रोल पंप बंद करने पड़े हैंतस्वीर: Rogan Ward/Reuters

राष्ट्रपति सिरिल रैमफोसा के सुर में सुर मिलाते हुए पुलिस मंत्री भेकी सेले ने कहा, "लोगों के निजी हालात या नाखुशी की कोई भी हद हमारे लोगों को किसी को लूटने का अधिकार नहीं देती.” हालांकि उसी प्रेस कॉन्फ्रेंस में रक्षा मंत्री नोजीवीवे मापिसा-नकाकुला ने कहा कि उन्हें फिलहाल आपातकाल लगाने की जरूरत नहीं लगती.

रंगभेद के बाद

जैकब जुमा पर चल रहे मुकदमों को दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद की नीति के बाद देश में कानून के राज की स्थिति को संभालने के मानक के तौर पर देखा जा रहा है. इसीलिए, पिछले दो हफ्ते से जारी हिंसा को 1994 में आई आजादी के बाद अल्पसंख्यकों की बढ़ी उम्मीदों के ना पूरे होने से जोड़कर देखा जा सकता है.

कोविड-19 महामारी अर्थव्यवस्था इस वक्त संघर्ष कर रही है और अब भी देश में बहुत सी पाबंदियां लागू हैं. बेरोजगारी के बढ़ने के कारण लोगों में गुस्सा और बेचैनी बढ़ रही है. 2021 की पहली तिमाही में बेरोजगारी की दर 32.6 प्रतिशत के नए रिकॉर्ड पर पहुंच गई है.

वीके/एए (रॉयटर्स, एएफपी)

तस्वीरों मेंः अफ्रीका में लाल है विरोध का रंग

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी